Saturday, September 26, 2009

विनम्र निवेदन है भगवान राम जी से एक बार फिर पृथ्वी पर आने की कृपा करें.

विजय पर्व दशहरा की सभी को हार्दिक बधाई..आज इस विजय पर्व पर काव्य की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत है.

एक दशहरा और आ गया,सोच के मन में उठे विचार,
इतने रावण घूम रहें हैं, राम कहाँ गायब हैं, यार.

आतंको से आतंकित है,
बस्ती,कस्बा,गली,मोहल्ला,
चारो ओर मचा है देखो,
छीना,झपटी,हल्ला-गुल्ला,
झूठ की जय-जय कार हो रही,
सत्य सनातन आहत है,
पापी नाच रहें हैं,धुन पर,
पुण्य की रोज शहादत है,

सालों-साल बढ़ रहे रावण,जो कल सौ थे,हुए हज़ार
इतने रावण घूम रहें हैं, राम कहाँ गायब हैं, यार.

रावण के जड़ से विनाश का,
वो दिन प्रभु कब आएगा,
त्रेता युग की रामायण को,
कलयुग कब दोहराएगा,
जाति-पाँत,ईमान-धरम,
से कब पहरे हट जाएँगे,
शबरी का विश्वास जीतने ,
कब पुरुषोत्तम आएँगे,

जाति धर्म को पीछे कर के,जिसने अपनाया था प्यार,
इतने रावण घूम रहें हैं, राम कहाँ गायब हैं,यार


मानव को मानव से भय है,
भाई को भाई पर शंका,
शोर-शराबा,मारा काटी,
हुई अयोध्या भी अब लंका,
क्यों विभीषण रोज हैं,मरते,
सत्य का जो दामन पकड़े,
रोज हरण होता है सिय का,
क्यों हैं राम अबूझ पड़े,

बड़ी ज़रूरत आन पड़ी है, फिर से ले लो प्रभु अवतार ,
इतने रावण घूम रहें हैं, राम कहाँ गायब हैं, यार.

आज भी कुछ भूखे सोते हैं,
कहने को विकास है बस,
कुछ महलों में राज कर रहे,
कुछ झोपड़ियों में बेबस,
आँखों में बस एक आस है,
दुख के बादल कब जाएँगे,
कब आएँगे रामचंद्र जी,
रामराज्य को कब लाएँगे,

इसी दशहरे पर आ जाओ, साथ मनाते हैं त्योहार,
इतने रावण घूम रहें हैं, राम कहाँ गायब हैं,यार.

Wednesday, September 23, 2009

एहसास


नित पुष्प खिला कर,खुशियों के,
मन बगिया महकाया तुमने,
आँखों के आँसू लूट लिये,
हँसना सिखलाया तुमने,
सूना,वीरान,अधूरा था,
तुमसे मिलकर परिपूर्ण हुआ,
दिल के आँगन में तुम आई,
जीवन मेरा संपूर्ण हुआ,

किस मन से तुझको विदा करूँ,
तुम ही खुद मुझको बतलाओ,
मैं कैसे कह दूँ तुम जाओ.

मैं एक अकेला राही था,
संघर्ष निहित जीवन पथ पर,
तुम जब से हाथ बढ़ायी हो,
यह धरती भी लगती अम्बर,
व्याकुल नयनों की आस हो तुम,
मेरी पूजा तुम,विश्वास हो तुम,
हर सुबह तुम्ही से रौशन है,
हर एक पल की एहसास हो तुम,

एहसासों का मत दमन करो,
विश्वासों को मत दफ़नाओं,
मैं कैसे कह दूँ, तुम जाओ,

सब बंद घरों में क़ैद पड़े,
मैं किससे व्यथा सुनाऊँगा,
सुख में तो देखो भीड़ पड़ी,
दुख किससे कहने जाऊँगा,
बरसों तक साथ निभाया है,
अब ऐसे मुझको मत छोड़ो,
हम संग विदा लेंगे जग से,
अपने वादों को मत तोडो,

मत बूझो मेरे मन को यूँ,
मत ऐसे कह कर तड़पाओ,
मैं कैसे कह दूँ, तुम जाओ.

Wednesday, September 16, 2009

रोज दिखावे करते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर.



रोज दिखावे करते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर,
ज़ख़्मों पे मरहम धरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.

घर तक है नीलाम पड़ा,दारू की ठेकेदारी में,
देखो फिर भी दम भरते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर.

इंसानों से कब का रिश्ता, तोड़ चुके हैं ये साहिब,
इंसानियत कहरते है,बस झूठी शोहरत के खातिर.

लिए गुरूर-अहम सत्ता का,हैवानो से हाथ मिलाते,
हैवानियत से डरते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर.

हरकत गिरी हुई है,जिनकी आदत से लाचार हैं जो,
बड़ी बड़ी बातें करते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर.


रोज ग़रीबों की आहों पर, नाम लिखा होता है जिनका,
मानवता पर वो मरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.

गंगाजल को तरस गये, बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,
मरघट पर आँसू गिरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.

Sunday, September 13, 2009

साहित्यशिल्पी के वार्षिक समारोह में ब्लॉगर्स और कवियों की उपस्थिति में समारोह के सफलता की आँखो देखी प्रस्तुति

साहित्यशिल्पी के वार्षिक समारोह में ब्लॉगर्स और कवियों की उपस्थिति में समारोह के सफलता की आँखो देखी प्रस्तुति

सफल रहा यह स्नेह मिलाप ,निहित है इसमे सबका प्यार,
चलो सुनाता हूँ मैं सबको, ब्लॉगर्स सम्मेलन का सार.

हुआ बड़ा ही दिव्य प्रयोजन,दिल हर्षित मन था उत्साहित,
देख भीड़ ब्लॉगर,कवियों की, स्नेह की उर्जा हुई समाहित,
वर्षगाँठ साहित्यशिल्पी की,बड़ी ही सुंदर मन को लागी,
हिन्दी वास्ते ग़ज़ब समर्पण,देख हुआ यह मन अनुरागी,


सर्व प्रथम देना चाहूँगा राजीव रंजन को आभार,
चलो सुनाता हूँ मैं सबको, ब्लॉगर्स सम्मेलन का सार.

पत्रकार फोटो लेने को इधर उधर थे घूम रहे,
प्रेम बचन राजीव रंजन की सब के दिल को चूम रहे,
अभिषेक जी और मोहिंदर सब ने दिल में जगह बनाया,
अतिथि का स्वागत कर के, इस महफ़िल को खूब सजाया,

साहित्यिक पुस्तक के प्रेमी, अद्भुत कुन्दरा जी का प्यार,
चलो सुनाता हूँ मैं सबको, ब्लॉगर्स सम्मेलन का सार.

मुख्य अतिथि जो आए थे, कैसे बतलाऊँ मैं नाम,
हास्य-व्यंग और हिन्दी युग में जिनके बड़े बड़े थे काम,
सारी दुनिया को समझाया, सारे जग में हिन्दी की जय,
प्रेम में जन्मे ऐसे जन को,कहते है प्रेम जन्मेजय,

डॉक्टर पद से भी सम्मानित है,ये व्यंग के पालन हार,
चलो सुनाता हूँ मैं सबको, ब्लॉगर्स सम्मेलन का सार.

महफ़िल की कुछ और शान थे,दीपक गुप्ता और मौदगिल,
जिनके आने से मत पूछो, हास्य सुमन कुछ और गये खिल,
एक इशारा सबका ही था, हिन्दी भाषा की है जय,
चाहे वो अविनाश जी हो,चाहे हो डॉक्टर जन्मेजय,

जय जय करना है आगे भी, आप भी कर लो यह स्वीकार,
चलो सुनाता हूँ मैं सबको, ब्लॉगर्स सम्मेलन का सार.

बागी काका,वेद वशिष्ट सब ने बेहतर काव्य सुनाये,
पवन जी चंदन और दिनेश जी सुंदर गीत से मन हर्षाए,
नामिता जी और अनिल की ने भी कुछ मनभावन शेर कहें,
अब्दुल ,अमन व शोभा जी ने शब्दों के संदेश कहें,

और तनेजा जी भी आए लिए हुए हास्य का हार,
चलो सुनाता हूँ मैं सबको, ब्लॉगर्स सम्मेलन का सार.


अब ब्लॉगर की बात करे तो सबसे पहले विनीत कुमार,
गाहे बेगाहे के मालिक बेहतर शब्दों के सरकार,
अपने रखे विचार बड़ा ही सुंदर लगा इसे सुनकर,
अपनी बात और हालात खूब बताए धून-धुन कर ,

ब्लॉग के ज़रिए जन सेवा, सच में ख़त्म करो व्यापार,
चलो सुनता हूँ मैं सबको, ब्लॉगर्स सम्मेलन का सार.

सतरंगी जी,और इरसाद जी ने थी अच्छी बात कही,
सहगल जी, मजेदार मेरठ कल्चर ही हालात कही,
क्षमा करे मैं भूल रहा हूँ, कुछ मित्रों के नाम,
लेकिन दिल से करता हूँ मैं उनको बातों का सम्मान,

मीडिया मंत्र के मालिक ने भी ,सुंदर प्रस्तुत किया विचार,
चलो सुनाता हूँ मैं सबको, ब्लॉगर्स सम्मेलन का सार.

अविनाश चाचा जी ने की हिन्दी पर सुंदर चर्चा,
सार्थक सृजन के यादव की सार्थक थी परिचर्चा,
शेफाली जी की कविता भी सबको खूब ही भायी थी,
साहित्य प्रेम के वश मे होकर हल्द्वानी से आई थी,


झा जी कहिन के झा जी का कल देखा सुंदर व्यवहार,
चलो सुनाता हूँ मैं सबको, ब्लॉगर्स सम्मेलन का सार.

कविता की इक सीमा को मैं अब करता हूँ याद,
और सभी ब्लॉगर कवियों से करता हूँ ,फरियाद
फिर से क्षमा करे मुझे जिसका उल्लेख नही कर पाया,
लेकिन यह सच है, सब ने आयोजन को सफल बनाया..

यही खुशी हैं रहे बना अपना यह ब्लॉगर का संसार,
चलो सुनता हूँ मैं सबको, ब्लॉगर्स सम्मेलन का सार.

मैं भी उस महफ़िल में था पर कैसे करूँ तारीफ़,
आप लोग ही कुछ कह देना अब तो हो ही गये वाकिफ़,
जो थे नही उपस्थित उनसे यही प्रार्थना हैं मेरी,
अगली बार उपस्थित हो, कर के कुछ हेरा फेरी,

जल्द ही होगी फिर सम्मेलन,रहिए सब ब्लॉगर्स तैयार,
चलो सुनाता हूँ मैं सबको, ब्लॉगर्स सम्मेलन का सार.

एक बार फिर से कहिए राजीव रंजन जी का आभार,
और हमारे चाचा जी अविनाश जी का आभार,

सब ब्लॉगर्स को पहुँचे मेरा प्यार भरा नमस्कार
अब मैं करता हूँ पूरा आँखो देखा यह संसार..

Wednesday, September 9, 2009

फरीदाबाद ब्लॉगर्स स्नेह सम्मेलन मे ब्लॉगर्स के चटपटें कारनामे..अगर सभी उपस्थित हुए तो-एक मजेदार परिकल्पना

12 सितंबर दिन शनिवार,ओल्ड फरीदाबाद मॉडर्न स्कूल सेक्टर-17 में आयोजित ब्लॉगर्स स्नेह सम्मेलन में होने वाले धूम धमाके की एक परिकल्पना.

फरीदाबाद मे लगेगा ब्लॉगर्स का मेला,
जुटेगे बड़े बड़े महाशय,
सबके होंगे अलग अलग आशय.

अब मैं बताता हूँ,कैसे कैसे सीन हो सकते है,
देखिएगा आप मेरी कल्पनाओं मे खो सकते है,
थोड़ी देर के लिए सच को भी मत पहचानिएगा,
कुछ अनुचित भी लगे,तो भी बुरा मत मानिएगा.

क्योंकि कोई भी अपनी आदत से बाज़ नही आता है,
और करता वही है,जो उसके मन को भाता है,
अब ज़रूरी नही जो हमारे मन को भाए,
वो ब्लॉगर्स सोसाइटी मे,भी महत्वपूर्ण योगदान निभाए.

इसलिए हम अलग अलग हो सकते है,विचारो मे,
दुनियाँ भर की घटनाओं और सामाजिक प्रचारों मे,
फिर भी अपने अंदाज मे ही रंग भरेंगे,
और देखिएगा कैसे कैसे दूसरों का ध्यान भंग करेगें.

कोई अपनी कहेगा,कोई दूसरे की सुनाएगा,
कोई बैठ के बिना सुन ताल के गीत गाएगा,
कोई कहेगा मेरे पोस्ट पर कमेंट किया करो भाई.
और कुछ देंगे नयी नवेली, सरकार को दुहाई.

कुछ आज पर प्रवचन देंगे,कुछ लोग कल पर,
कुछ कर्म प्रधान कहेंगे,कुछ ज़ोर देंगे फल पर,
कुछ मायानगरी के मायावी,बसिन्दो की बात करेंगे,
कुछ उड़ना सिख रहे,नये नये परिंदो की बात करेंगे.

अविनाश जी अपने दूरसंचार और परेशानी जनता को बतलाएँगे,
सुभाष जी ब्लॉग को सुरक्षित रखने के नुक्से बताएगे,
विजय कुमार जी अपने कविताओं को मन से बाहर लाएँगे,
सुरेश शर्मा जी बैठ कर खूब कार्टून बनाएँगे.

संगीता जी अपने ज्योतिष् शास्त्र की कहानी बताएँगी,
निर्मला जी हिन्दी साहित्य मंच की शोभा बढ़ाएँगी,
राजेश जी ब्लॉगर्स को उत्साहित भावनाएँ देंगे,
और समीर जी बस दूर से ही शुभकामनाएँ देंगे.

शास्त्री जी,शब्दों के दंगल में उच्चारण करेंगे,
तनेजा जी, हँसने और हंसाने का कारण कहेंगे,
साहित्यशिल्पी हिन्दी के मान को बढ़ाएगी,
यूनुस जी की रेडियोनामा भी गुनगुनाएगी.

भाटिया जी के शिकायत दूर किए जाएँगे,
महेंद्र जी समयचक्र की महिमा बताएँगे,
दर्पण शाह जी हमे प्राची के पार ले जाएँगे,
सब आचार्य सलील जी के दोहे सुनाएँगे.


अलबेला जी राजनीति पर चोट करेंगे,
योगेंद्र जी हास्य व्यंग से सभी को लोट-पोट करेंगे,
हिंदयुग्म भी एकता के परचम लहराएगी,
ओम जी की मौन कविता सब कुछ व्यक्त कर जाएगी.

विनीत कुमार मोहल्ले को मीडिया मंत्र सिखाएँगे,
कुलवंत जी खिड़की खोलने और खुलवाने का तंत्र सिखाएँगे,
दिनेश जी अदालत से तीसरा खंभा हिला देंगे,
सुशील कुमार जी पतझड़ मे भी फूल खिला देंगे.

छोक्कर जी,आपके उत्सुक मन की तलाश उलझा देंगे,
संजय बैरागी,तरकसी से समस्त पहेली सुलझा देंगे,
आदित्य रंजन स्वाद और स्वास्थ्य की दवा देंगे,
विवेक रस्तोगी कल्पतरु बन कर शीतल हवा देंगे.

हम बैठ कर आप सब से कुछ सिख लेंगे,
अच्छा लगेगा और हृदय की पन्नो पर लिख लेंगे,
अमल करके मैं भी आप सब के बताए पथ का राही बन जाऊँगा,
और ब्लॉग जगत का जीता जागता सिपाही बन जाऊँगा.

बस यही शुभकामना है,ये मिलन समारोह सफल रहे,
हम सभी के शुभ विचारों का शुभ प्रतिफल रहे,
ऐसे ही सबको हँसाते रहे,
विश्व संप्रदाय पर एक विश्वास सा छाते रहे,
हिन्दी और हिन्दुस्तान की उन्नति करे,
ताकि हमारे उपर हँसने वाले नज़र उठाने से भी डरे.




Tuesday, September 8, 2009

ब्लॉगर्स महासम्मेलन ...ज़रूर आईएगा..

ब्लॉगर्स सम्मेलन मे सभी का स्वागत है अपनी उपस्थित से सभा को मजबूती प्रदान करें एवम् हिन्दी के उत्थान में सहयोग .दें


बहुत दिनों से इंतज़ार था,हमे ही नही हर ब्लॉगर को,
वह सम्मेलन जिसमे हम सब,खुशियाँ बाँटे,खुशियाँ लें.

इसी सितंबर में 12 को शनिवार के दिन होगा,
महासभा ब्लॉगर,कवियों का,धूम मचाएगा जम के.

बात है पक्की,दिन है निश्चित,इसीलिए सूचित करता हूँ,
इस सुंदर महफ़िल में आकर,महफ़िल को रंगो से भर दें.

3 दिनों की बेसब्री है,मिलेंगें फिर हम सब महफ़िल में,
मॉडर्न स्कूल,सेक्टर-17,ओल्ड फरीदाबाद में,

हिन्दी के उत्थान मे उस दिन जम कर परिचर्चा होगी,

हास्य व्यंग के रंग मे भी,मिलकर हम रंग भरेंगे.

अविनाश जी और अजय जी,और भी कुछ ब्लॉगर बंधु,
जिनके अथक प्रयासों से,यह सम्मेलन सच हो पाया.

साहित्यशिल्पी के बंधुगणो,का योगदान भी सच्चा है,
मैं धन्यवाद देता हूँ सबको, अपने अंतर्मन से .

सब से यहीं निवेदन है कि,कोशिश कीजिएगा आने का,

अपने उपस्थिति से आप,आयोजन को सफल बनाएँ.

Thursday, September 3, 2009

द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देखते ही मर जाते.

शिक्षक दिवस की सभी को हार्दिक बधाई..आज के परिवर्तन और बदलते माहौल में शिष्य और गुरु के रिश्ते भी बदल रहें हैं, तो आइए थोड़ा देखते है की क्या क्या बदल रहा है तब और अब में,जब कभी द्रोणाचार्य जैसे महान गुरु और एकलव्य जैसे महान शिष्य हुआ करते थे.आज इस माहौल को देखते तो सच मेंउन महान आत्मा को बहुत कष्ट होता. वैसे इस कविता में सारे विचार मेरे व्यक्तिगत है तो मैं प्रार्थना करता हूँ की कोई बंधु जन इसे इसे किसी प्रकार का मानवीय भावनाओं पर प्रहार ना समझे..यह बस कुछ सीमित लोगों पर लागू होता है.

हुए नदारद प्रेम समर्पण,बदलें गुरु शिष्य के नाते,
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देखते ही मर जाते.

शिक्षक दिवस बधाई है,

वह पद,जहाँ कमाई है,

शिक्षक गर चाहे तो कर ले,

लूट पाट कर जेबें भर ले,

गुरू कभी थे, गुरू घंटाल,

आज हुए है,मालामाल,

किधर पढ़ाते हैं,मत पूछो,नकल करा के पास कराते,

द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देखते ही मर जाते.


शिक्षा,शिक्षक सब में झोल,

जैसे ढोल के अंदर पोल,

सम्मिलित व्यवहार मे है,

शिक्षा अब बाजार मे है,

लोग लगाते दाम यहीं,

कुछ लोगों का काम यही,

विद्या अर्थ विस्मरण करके,विद्या से बस अर्थ कमाते,
द्रोणाचार्य अगर होते तो, इसे देखते ही मर जाते.

गुरु शिष्य का प्रेम,समर्पण,

ख़त्म हुआ अब वो आकर्षण,

परिवर्तन का चढ़ा असर,

शिष्य बनाया गुरु पर डर,

क्षीण हुए गुरु के अधिकार,

आख़िर हो कर गुरु लाचार,

रख कर के बंदूक जेब में,क्लास मे लेक्चर लेने जाते,
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देखते ही मर जाते.


नवयुग की इस बेला में,

रेलम,ठेलम-ठेला में,

भाग रहे हैं इधर उधर,

कहाँ गुरु और शिष्य किधर,

कौन करे अंगुली का दान,

एकलव्य सा कौन महान,

आज गुरु की कॉलर पकड़े,शिष्य बहादुर हैं गरियाते,
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देखते ही मर जाते.