Thursday, February 25, 2010

जमाने के कुछ रंग,होली के संग...बुरा न मानों होली हैं.(विनोद कुमार पांडेय)

आप सभी भाइयों,बहनों और माता जी लोगों को होली की हार्दिक शुभकामना..प्रस्तुत है होली के संदेश के साथ साथ भोजपुरी में एक गुदगुदाती हुई रचना .

रंग लगायअ,भंग जमायअ,
गुझिया,पापड़ जम के खायअ,
होली क मस्ती हौ छाईल,
नाचअ,गायअ,धूम मचायअ,

कारोबार क चिंता छोड़अ,
मनवा के अपने तनि मोड़अ,
खाली खोपरि देखअ जेकर,
रंग भरअ,गुब्बारा फोड़अ,

पुरवइया सा मंद बहअ,
मज़े से दिल क बात कहअ,
दुनिया में बा दर्द बहुत,
पर ई दिन तू मस्त रहअ,

देखअ जमाना कईसन हौ,
फ़टल जींस भी फईसन हौ,
कहे के हौ बदलाव मगर,
हालत जईसन तईसन हौ,

घर-घर के तस्वीर अनोखा,
माई चटनी बाबू चोखा,
लड़का चोट्टा,लड़की ड़ाइन,
बाप के दूनो देवे धोखा,

उल्टा-पुल्टा आज क पीढ़ी,
डगमगात है अगली सीढ़ी,
लुढ़क रहा चेला दारू में,
गुरु लिप्त पीने में बीड़ी.

चाहे जईसन बोली हौ,
पर बात में हँसी ठिठोली हौ,
हमके इहे नीक लागेला,
बुरा न मानो होली हौ.

Saturday, February 13, 2010

खास कर युवा दिलों के लिए फ़रवरी महीना स्पेशल-3,जब वैलेंटाइन आता है, दिल बाग-बाग हो जाता है.

दोस्तों,मेरे ऐसे भाव से यह मतलब नही कि यह सब ग़लत है..मैने बस नज़रिए को सामने रखा और जैसा कि आप सभी अवगत होंगे कि मनोरंजन कराना भी मेरी कविताओं का एक खास एक उद्देश्य होता है तो कृपया इसे दूसरे अर्थ में ना लें. वैलेंटाइन डे एक प्रेम और स्नेह का दिन हैं,प्रेम का सही अर्थ समझने वाले सभी लोगों को हमारी ओर से इस दिन की हार्दिक शुभकामनाएँ.


जब वैलेंटाइन आता है,
दिल बाग-बाग हो जाता है,
सूने वीराने पतझड़ में,
हरियाली सी छा जाती है,
रिमझिम सी घटा बरसती है,
इस माध-पूस के सावन में,
मन किशन-कन्हैया हो जाए,
दीवानो के वृंदावन में.

करते हैं याद सभी वो दिन
जब साथ घूमने जाते थे,
हिलते-डुलते उन झूलों में,
वो भी पूरे हिल जाते थे,
पर पास में कोई रहता था तब,
झूठी हिम्मत शो करते,
अंदर से दिल घबराता था,
बाहर से हो-हो करते.


कुछ ऐसे वीर अभी भी है,
जो याद संजोए रहते है,
गत साल मिला जो सिला इन्हे,
बस उसमें खोए रहते है
इतने लाचार हैं आदत से
अब भी ये पगला जाते हैं,
गैरों की हरकत देख-देख,
खुद हरकत में आ जाते हैं



दिल की धड़कन मत ही पूछो,
दुगुने स्पीड से भाग रहा,
सारी दुनिया जब सोती है,
आशिक़ परवाना जाग रहा,
करवट बदले बिस्तर पर बस,
नैनों में नींद न रुकती थी,
खुद में उलझे, खुद में सुलझे,
यह देख चाँदनी हँसती थी,

यह प्यार का मारा आशिक़ है,
अपने ही उपर ज़ोर नही,
कितने झटके अब तक खाए,
फिर भी देखो कमजोर नहीं,
अब भी स्कूटर लेकर के,
मंदिर के पीछे जाता है,
बस एक झलक उसकी पाकर,
मन ही मन खुश हो जाता है.

Friday, February 12, 2010

खास कर युवा दिलों के लिए फ़रवरी महीना स्पेशल-2,तीन किस्तों में वैलेंटाइन का दिखावा आपके सामने हैं.

ये कविता है कुछ उन लोगों के लिए जिनका प्यार बस बातों की झूठी बुनियाद पर टिका रहता है और अंत में सारा तथ्य सामने आ जाता है..पूरा पढ़िए खुद समझ जाएँगे.

वैलेंटाइन स्पेशल पार्ट-१(प्रेम के शुरुआती दौर में निकले जज़्बात)

सुना था दोस्त बनते है,नये ख्वाबों में ख़यालों में,
कभी सोचा नही मैं भी, फसूँगा इन बवालों में,
मगर जब से मिली हो तुम,मिला एक दोस्त का फन,
मेरा दिल खुश तो है,लेकिन फँसा है कुछ सवालों में.


यहाँ सब दोस्त बनते हैं,मगर कब तक निभाते हैं,
सही बातें छुपाते हैं, बड़ी बातें जताते हैं,
अगर दिल से निभाओ तो, जहाँ सारा महक जाएँ,
नही कहते ये बातें हम,मेरे दादा बताते हैं.


लगेगा आपको की, जिंदगी भी मुस्कुराती है,
यहाँ बातें हँसाती है, यहाँ बातें रूलाती है,
इसी दुनिया में देखो तो, आपसे लोग रहते हैं,
जो अपने चार लफ़्ज़ों से नये रिश्ते बनाते हैं,

उजाला दिल को जो देता, तुम्हारा ही रवि हैं ये,
चमकते चाँद को देखा, लगा तेरी छवि है ये,
मेरा दिल भी धड़कता है तेरी हर एक आहट पर,
मेरे ज़ज्बात को समझो, नही आशिक, कवि है ये.


वैलेंटाइन स्पेशल पार्ट-२( दोस्ती टूटने के बाद के जज़्बात-लड़को के)

कई बातें कहीं जाती, हक़ीकत और होता है,
जान कर भी है फँस जाते, न दिल पर ज़ोर होता है,
चलो अच्छा हुआ, जो तुम गई उलझन गई मेरी,
आज कल देख के तुझ को, ये दिल भी बोर होता है,

मेरी किस्मत थी रूठी, जो तेरे चक्कर में मैं आया,
पलक थी बंद ये मेरी, नशा तेरा था बस छाया,
खुली आँखे लगा मुझको कहाँ से मिल गई थी तुम,
तुम्हे खो कर लगे मुझको, नई कोई खुशी पाया.

वैलेंटाइन पार्ट-३( दोस्ती टूटने के बाद के जज़्बात- लड़कियों के)

शक्ल ना देखते अपनी,तरस मुझ पर जो खाते थे,
कहाँ बातें गई वो सब जो दादा जी बताते थे,
मुझे पाए हुए थे कब, जो खो कर खुश तुम इतना,
तुम्हारी दिल की बातें थी, खुदी से जो बनाते थे.

Wednesday, February 10, 2010

७ फ़रवरी को आयोजित दिल्ली ब्लॉगर्स सम्मेलन में मेरे पहुँचने की कहानी सुनिए मेरे ज़ुबानी

दिल्ली ब्लॉगर्स सम्मेलन,
सुनते ही उछलने लगा मन,
जैसे ही हमने सुबह छोड़ी चारपाई,
अविनाश चाचा जी को फ़ोन मिलायी,
पर ये क्या उधर से,
नॉट रिचेबल की मधुर आवाज़ आई,
दूसरी बार फिर मैने घंटी मारी,
उस वक्त इन्होनें ने कोई रेस्पॉन्स नही दिया,
बाद में उल्टा १ रूपिया काल बैक में खर्चा किया.

फोन करते ही पूछें,पहुँच गये?
नही बस चलने ही वाला हूँ,
कृपा करके एक बार फिर पता बताइए,
और कोई आस पास का जगह भी समझाइये,
अविनाश जी भी मज़े में बोले,
हास्य के तरकश, ज़ुबान से खोले,
बोले इसमें क्या समझाना है,
ठीक राघू पैलेस के पिछवाड़े आना है.

अब फिर क्या मैं भी फटाफट उठा,
बन कर, ठन कर,
एक दो कपड़े पहन कर,
जूते पैर में डाले,बाल बनाया,
और मुस्कुराते हुए ऑटो स्टॅंड पर आया,
ऑटो के बाद मैट्रो धरा,
गिरते संभलते डाइरेक्ट लक्ष्मी नगर उतरा,

उतरते ही एक भाई से पूछा,
राघू पैलेस कहाँ है? कृपया बताएँगे?,
कुछ जानकारी हो तो हमें भी समझाएँगे?,
वो बोला भाई जगह तो मुझे पता है,
पर राघू पैलेस आज कल लापता है,
देखो दो मंज़िलों के आगे जो सुनसान है,
वहीं राघू पैलेस का मैदान है.

कंफ्यूज़न में मैने फिर चाचा को फोन लगाया,
पर ये क्या आवाज़ सुनते ही दंग था,
अविनाश जी का ये कौन सा रंग था,
ब्लॉगर्स सम्मेलन में आते ही आवाज़ बदल डाले,
पर नही इस बार तो अजय भैया बोल रहे थे,
मेरे कान के अंडरस्टॅंडिंग को तोल रहे थे,
फिर से पता पूछने पर समझाया,
इस बार कोई सांस्कृतिक भवन बतलाया,
जो हमें कहीं मिल ही नही पाया,

थोड़ा इधर उधर टहलने के बाद,
भूलभुलैया में चलने के बाद,
एक बार फिर फोन लगाया,
और फिर से राघू पैलेस के खंडहर के सामने आया,
इस बार अविनाश जी से डीटेल में पूछा,
तो उन्होंने बोला सामने क्या दिख रहा है?
मैने कहा कुछ नही बस संतरे बिक रहा है,
बोले अरे यार कोई कॉलोनी नज़र आ रही है?
मैने कहा हाँ एक है जो फायर ब्रिगेड की ओर जा रही है,
बोले बस बस उसी में चले आओ,
अब देर ना लगाओ,

मैं और सरप्राइज़ हो गया,
धीरे धीरे फायर ब्रिगेड की ओर जाने लगा,
सोच कर दिमाग़ खुजलाने लगा,
कि ये ब्लॉगर्स सम्मेलन है?
या सब आग बुझाने की ट्रैनिंग ले रहे है,
या क्या पता आग लगने की आशंका हो,ऐसा प्रोग्राम है,
इसीलिए बुझाने का भी बढ़िया इंतज़ाम है.


फायर स्टेशन से आगे बढ़ा,
तो मुस्कुराहट से चेहरा खिला,
जहाँ से टर्न लेना था, वहीं पर,
पप्पू का दुकान मिला,
तब समझ में आ गया की हाँ,
अविनाश जी यही कहीं होंगे,
ढूढ़ते-ढूढ़ते आगे बढ़ता रहा,
धूल-मिट्टी का रंग कपड़ों पर चढ़ता रहा,
एकदम पूरे इंसान बन गये थे,
सहारा मरुस्थल का रेगिस्तान बन गये थे.

चलते-फिरते, उछलते-कूदते,
सामने जी. जी. एस. फास्ट फूड कैंटीन दिख गई,
फटाफट कपड़ें झाड़-पोंछ कर अंदर गये,
तो जाने-पहचाने चेहरे दिखे,
कुछ नये कुछ पुराने स्टार सरीखे,
ये वहीं अपने ब्लॉगर्स,बड़े भाई,चाचा लोग थे,
जिनका प्यार हमें यहाँ तक खींच लाया,
और उस कहानी को इस मजेदार लफ़्ज़ों में हमने,
आप लोगों के सामने फ़रमाया.

Sunday, February 7, 2010

राज भाटिया जी और कविता वाचक्‍नवी जी के आगमन पर आयोजित आज दिल्ली ब्लॉगर्स सम्मेलन की एक छोटी सी रिपोर्ट एक अलग अंदाज में

दिल्ली ब्लॉगर्स सम्मेलन आज था,
हुआ भी और बेहतरीन,
आए थे बड़े बड़े नामचीन,

ज़्यादातर दिल्ली की सरज़मीं से आए थे,
पर कविता वाचक्‍नवी जी यू. के.,
और राज भाटिया जी जर्मनी से आए थे,

दिल्ली के ब्लॉगर्स में डॉ. टी. एस, दराल जी थे,
सतीश जी के साथ ग़ज़ल की महान हस्ती जमाल जी थे,
अपने देशनामा के खुशदीप सहगल जी भी वहाँ पाए गये,
विनीत कुमार जी भी स्कूटर से लाए गये,

अजय भैया ने बेहतरीन ढंग से महफ़िल सज़ायी थी,
और अविनाश वाचस्पति जी की ब्लॉग एकता रंग लायी थी,
हँसते हँसाते रहो के संदेश से महफ़िल खिले
इसलिए राजीव तनेजा जी भी सपरिवार वहाँ मौजूद मिले,

संजू तनेजा जी और प्रतिभा कुशवाहा जी उपस्थित थी,
पद्‌म सिंह जी,वत्स जी,तारकेश्वर गिरी जी
और हमारे खास मित्र प्रवीण जी भी आए थे,
मिथिलेश दूबे जी,निशु जी,अंतर सोहिल जी ने भी,
महफ़िल में चार चाँद लगाए थे,

नीरज जाट जी, कनिष्क जी,
यशवंत जी थोड़ी देर कर दिए आने में,
पर कोई कसर नही छोड़ी अपने सुंदर विचार चिपकाने में,

जाते जाते वर्मा जी का भी मिला प्यार,
और अगर किसी का नाम भूल रहा हूँ तो माफ़ करें,
उन सभी का भी बहुत बहुत आभार,


बहुत हो गई आने वालों के नाम,
अब करते है सम्मेलन में क्या चर्चा हुआ,
बैठकी में क्या परिचर्चा हुआ,
ब्लॉगर्स की बैठक में,सब ने अपने विचार दिए,
कुछ कान से निकल गया, कुछ सुन लिए
और चुपचाप अच्छी बात चुन लिए,

सार्थक लेखनी की हालात पर चर्चा हुई,
बेनामी के बढ़ते औकात पर चर्चा हुई,
टिप्पणियों के भयंकर आघात पर चर्चा हुई,
गुटबाजी,बेबाकी,और अपशब्द बात पर चर्चा हुई,

एक दूसरे को समझें,समझाए,
मिल जुल कर फोटू भी खिचवाएँ,
सबने अपने अपने तरीके बताए जो सही थे,
की कैसे ब्लॉगिंग को सामाजिक उपयोग में लाए,
और ब्लॉगिंग से समाज को महकाए,
अपने दिल की बात खुल कर करें,
और फालतू बातों से एकदम ना डरें,

चर्चा के बाद अब करते हैं खर्चा की बात,
झा जी और अविनाश जी मेजबानी मस्त थी,
चाय,काफ़ी की व्यवस्था जबरदस्त थी,
सब मेजबान महोदय जी का काम था,
ये तो बाद में पता चला,
लंच का भी चकाचक इंतज़ाम था,
इतनी बढ़िया की इस बात का गम हो गया,
इतना ज़्यादा आइटम की लास्ट में,
प्लेट में जगह कम हो गया,
पर हमने भी दिमाग़ लगाया,
चावल के उपर पापड़ को लिटाया,
और गुलाब जामुन अलग दूसरे प्लेट में लेकर आया,

लंच के बाद फिर चर्चा,
बढ़िया लग रहा था,
पर मुझे बीच में ही आना पड़ा,
तो आगे के हाल का पता नही,
अब इसमें मेरी कोई खता नही,
जितना देखा उतना बतलाया,
अपने अंदाज में आप तक पहुँचाया.

सभी को ऐसे मेल मिलाप के लिए आभार कहता हूँ,
और दूसरे ब्लॉगर्स सम्मेलन का बेसब्री से इंतज़ार करता हूँ.

Thursday, February 4, 2010

खास कर युवा दिलों के लिए फ़रवरी महीना स्पेशल-१

बढ़ गई कुछ लोगों की धड़कन,
कुछ की धड़कन मंद,
जब से चालू हुआ फ़रवरी,
बाकी बातें बंद,

बाकी बातें बंद इस कदर,
रहा न कुछ भी याद,
हुए फ़रवरी के चक्कर में,
लाखों जन बर्बाद,

लाखों जन बर्बाद,
मगर कोई फ़र्क नहीं,
प्यार बन गया है श्रद्धा,
कोई तर्क नहीं,

कोई तर्क नहीं,
बस रेस लगाना है,
१४ तारीख से पहले,
कुछ कर ही जाना है,

कुछ कर ही जाना है,
यहीं सोचते हैं,
पगलाए सर के बालों को,
स्वयं नोचते हैं,

स्वयं नोचते है बालों को,
बीते साल के आशिक़,
वैलेंटाइन के कारण,
जो जम कर खाएँ किक,

जम कर खाए किक इतना,
की हड्डी बोल पड़ी,
चेहरे का नक्शा बदला,
और आँखें गोल पड़ी,

आँखें गोल पड़ी,
जैसे कुछ हुआ अजूबा,
सागर का तैराकी,
चुल्लू में डूबा,

चुल्लू में डूबा इस बात का,
करता है एहसास,
जो रखता इस साल भी,
निज मन में विश्वास,

निज मन में विश्वास,
मगर चेहरे पर थोड़ा डर,
पिछला दर्द भुला कर देखो,
दौड़ रहा सुंदर,

दौड़ रहा सुंदर शायद,
बन जाए कोई कहानी,
ठहरी हुई जिंदगी को,
मिल जाए थोड़ी रवानी,

मिल जाए थोड़ी रवानी,
चाहे हो कोई भी साथ,
चाहे टाँग टूटे इस खातिर,
चाहे टूटे हाथ.