Saturday, April 24, 2010

सरकारी सारे प्रयास कितने सक्षम है,क्या बोलूँ,उन्नतशील हो रहा भारत,मगर उन्नति जै श्री राम----(विनोद कुमार पांडेय)

सरकारी सारे प्रयास कितने सक्षम है,क्या बोलूँ,
उन्नतशील हो रहा भारत,मगर उन्नति जै श्री राम,


गाँव-शहर सब चीख रहा है,मँहगाई है,चारो ओर,
पेट पालना भी मुश्किल है,आया है, कैसा यह दौर,
जनता आख़िर किससे बोले,कौन सुने इनकी फरियाद,
मौन पड़े बैठे हैं सारे,संसद में जाने के बाद,

वो अपने ए. सी. में मस्त,बाहर झल्लाती आवाम,
उन्नतशील हो रहा भारत,मगर उन्नति जै श्री राम,


भूख,पेट राशन की बातें,सबको लगती है बेकार,
झूठी-झूठी आस दिखना,आज हो गया है व्यापार,
जो भी उपर से आया, कुछ इधर गया,कुछ उधर गया
जनता के हिस्से में ठेंगा,पता नही सब किधर गया,

लाखों रुपये खर्च कर दिए,मंत्री जी शिक्षा के नाम,
उन्नतशील हो रहा भारत,मगर उन्नति जै श्री राम,


सरकारी स्कूलों की,हालत भी बदतर बन बैठी,
टीचर बैठा एक ओर,मैडम जी एक तरफ बैठी,
मिड मील के नाम पे बच्चे,कभी कभी आ जाते हैं,
देख दशा स्कूलों की सारे पब्लिक शरमाते हैं,

पढ़ना कम बच्चों को ज़्यादा,खेल में मिलता हैं आराम,
उन्नतशील हो रहा भारत,मगर उन्नति जै श्री राम,

बेरोज़गार बढ़ रहें दिन-दिन,और नौकरी छूमंतर,
अब भी पंडित,ओझा,औघड़ बाँध रहे,मंतर-जंतर,
अब भी घर से बेटी का बाहर जाना अपराध बना,
अब भी मंदिर-मस्जिद देखो राजनीति का साध बना,

अब भी पढ़े लिखे जनमानस,रुपयों के हो गये गुलाम,
उन्नतशील हो रहा भारत,मगर उन्नति जै श्री राम.

सरकारी सारे प्रयास कितने सक्षम है,क्या बोलूँ,
उन्नतशील हो रहा भारत,मगर उन्नति जै श्री राम.

Monday, April 19, 2010

टीका,चंदन,माला,दाढ़ी,साधु बाबा बड़े खिलाड़ी----------(विनोद कुमार पांडेय)

टीका,चंदन,माला,दाढ़ी,साधु बाबा बड़े खिलाड़ी|

उजला-उजला तन पर कपड़ा,अंदर से मन काला,
रंग-भरी दुनिया के रंगों में,खुद को रंग डाला,
५२ रूप धरे बाबाजी,पब्लिक समझ न पाए,
भारी झटका लगता उसको,जो झाँसे में आए,

पर दिखते है भोले-भाले,तित पर निर्मल वाणी|
टीका,चंदन,माला,दाढ़ी,साधु बाबा बड़े खिलाड़ी||


मार-झाँस कर लोगों को,बस अपना आबाद किए,
बेटा-बेटी,बीवी सबको,धन-जेवरात से लाद दिए,
रामनाम का चादर ओढ़े,मूर्ख बनाते जनता को,
नरक द्वार पर खुद बैठे,जन्नत दिखलाते जनता को,

पढ़े-लिखे जनमानस की भी, गई हुई है बुद्धि मारी|
टीका,चंदन,माला,दाढ़ी,साधु बाबा बड़े खिलाड़ी||


चालू,चोर,निठल्ले,लोगों के, अब ऐसे काम हुए,
ऐसे बाबा के चक्कर में,कुछ अच्छे बदनाम हुए,
काले पैसे श्वेत हो रहे हैं, इस गोरख धंधे से,
घर बाहर गुलज़ार किए हैं,मिलने वाले चंदे से,

घर है भरा जिधर भी देखो,रूपिया पैसा,घोड़ा गाड़ी|
टीका,चंदन,माला,दाढ़ी,साधु बाबा बड़े खिलाड़ी|

Thursday, April 15, 2010

जंगल के राजाओं की एक गुहार- एक व्यंग रचना(विनोद कुमार पांडेय)


कल हरिभूमि में प्रकाशित में प्रकाशित मेरी एक व्यंग रचना...

बड़ा ही अफ़सोस हो रहा है लिखते हुए की क्या जमाना आ गया है कभी एक दौर था जब शेर-बाघ का नाम सुनते ही लोगों के पसीने छूट जाते थे,आवाज़ सुनते ही घिग्घियाँ बँध जाती थी, भले आवाज़ किसी टी. वी. या रेडियो से प्रसारित की गई हो और आज वहीं बेचारे अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहें हैं. सामाजिक संस्थाएँ और सरकार भी उन्हे बचाने के लिए तरह तरह के अभियान चलाने की घोषणा कर रहे हैं हालाँकि इसमें से कुछ घोषणाएँ तो सिर्फ़ घोषणाएँ ही रहने वाली है, फिर भी यह सोचने वाली बात है की जंगल के राजाओं के साथ ऐसा कैसे संभव हो सकता है,की आज उनकी जनसंख्या वृद्दि भारत के जनसंख्या वृद्दि के इनवर्सलि प्रपोसनल चल रही है, पर दुर्भाग्य इस बात का कि सालों साल से यह पुष्टि नही हो पा रही की इनकी घटती हुई आबादी के पीछे किसका हाथ है?मीडिया भी कभी कभी फ़ुर्सत में जब कोई मसाला न्यूज़ नही मिल पता तो यही न्यूज़ लेकर आ जाती है की बाघों की घटती संख्या पर सरकार को चिंता, अब आप ही बताइए खाली चिंता करने से कुछ काम बन पता तो कश्मीर मुद्दा कब का ख़तम हो गया होता और देश में सालों लाखों लोगो की जान भुखमरी से नही जाती, उन्हे ये भी जानना होगा की हर समय चिंता करना अच्छी बात नही कुछ काम भी करते रहनी चाहिए ताकि चिंता दूर हो सकें.

ये तो रही एक बात पर मेरी समझ में ये नही आता की आख़िर बाघों की संख्या इतनी तेज़ी से घट क्यों रही है, कौन से बाहरी घुसपैठियें है जो इनकी राजधानी में दखल कर के इन्हे ही वहाँ से टरकाने के मूड में आ गये है, काफ़ी कुछ सोचने के उपरांत इतना तो लगता ही है कि किसी और जंगली जानवरों में तो ऐसा दम नही जो अपने ही राजा के खिलाफ कोई मुहिम छेड़ सके. इसके अतिरिक्त अगर कोई और बचता है तो वह है आदमी वैसे भी बड़े बूढ़े कहते है भैया आदमी जो है वो जानवर से भी ज़्यादा शक्तिशाली और ख़तरनाक होता है क्योंकि उसके पास एक दिमाग़ होता है और वो उसे शातिर भी बना सकता है,वैसे भी कुछ उदाहरणों को देखते हुए कहा जा सकता है की आदमी में कुछ अलग ही बात है.तो फिर बात घूम फिर कर वही आ जाती है कि अब आदमी से जंगल के राजा को कैसे बचाया जाय,उनके खेमे में भी इस बात को लेकर खामोशी छाई रहती है तभी तो आज कल बेचारे चिड़ियाघर में भी मुरझाए से रहते है, और आदमी के सामने आने से बचते रहते है.

सरकार बहुत से सरकारी प्रयास कर रही है यहाँ तक की प्रधानमंत्री जी भी बाघ प्रजाति के बचाव के लिए आगे आ गये हैं और अपने ये प्रधानमंत्री बिल्कुल महंगाई के जैसे हैं,जो एक बार आगे बढ़ गये गये तो पीछे नही जाते इस प्रयास से शायद कुछ हल निकल जाए पर हमेशा की तरह एक सच्चे भारतीय होने के नाते हमें इस बात के लिए भगवान से प्रार्थना भी करनी पड़ेगी की सरकारी प्रयास सफल हो.

अगर शेर बाघ प्रजाति की रक्षा के लिए कुछ हो जाए तो बढ़िया है अन्यथा वो दिन दूर नही जब देश के साथ साथ देश के जंगलों की सत्ता भी गीदड़ और भेड़ियों के हाथ में आ जाएगी.

Thursday, April 1, 2010

कई रंग हमने जमाने के देखें,कहीं भूखमरी है,कहीं धन भरा है-----(विनोद कुमार पांडेय)

समझ में न आए,कि क्या माजरा है,
ये इंसान है,या कोई सिरफिरा है,

ये पैसा,ये रुपया,ये दौलत,ये शोहरत,
समझता है सब कुछ इसी में धरा है,

ग़रीबों की आहों पे महलें उठाता,
लगे जैसे आँखों का पानी मरा है,

वहीं आज बनता है,सबसे बड़ा,
हज़ारों दफ़ा जो नज़र से गिरा है,

मोहब्बत की ऐसी हवा लग गई,
जहाँ दर्द मिलता वहीं आसरा है,

कई रंग हमने जमाने के देखें,
कहीं भूखमरी है,कहीं धन भरा है,

ये दुनिया की सच्चाई है,मेरे भाई,
भले आप बोलो,कि थोड़ा खरा है.