Wednesday, August 18, 2010

तेरी आँचल की छाया में,मुझको तो संसार दिखे----(विनोद कुमार पांडेय)

ग़ज़ल के पोस्ट को कुछ दिन विश्राम देते हुए इस महीने केवल कविता पोस्ट करने का निर्णय लिया. इसी क्रम को आगे बढ़ाता हूँ आज के इस भावपूर्ण कविता के साथ..धन्यवाद!!!

तेरी आँचल की छाया में,मुझको तो संसार दिखे,

याद नही पर सब कहते हैं,
जब घुटनों पर चलता था,
पथरीले आँगन में अक्सर,
गिरता और संभलता था,

चोट मुझे जब-जब लगती थी,
दर्द तुम्हे भी होती थी,
हर एक ठोकर पर मेरे,
तुम भी तो साथ में रोती थी,

सोच रहा हूँ आज बैठ कर अब तक कितनी दूर चला,
मेरे हर एक पग पे मैया, तेरा ही उपकार दिखे,


मैने बस महसूस किया,
तुम हर वो बातें जान गई,
मेरे अंदर छिपी भावना को,
झटपट पहचान गई,

कष्ट न जानें कितने झेलें,
मगर हमें इंसान बनाया,
खुद भूखे-प्यासे रह कर के,
हमको अमृत कलश पिलाया,

पहली कौर खिलायी तूने भले नही हो याद मुझे,
पर उस पहली कौर के आगे,फीका हर आहार दिखे,


मेरे हर अपराध की माता,
सज़ा तुम्हे भी मिलती थी,
दुनिया की कड़वी बातें,
पग-पग पर तुमको खलती थी,

फिर भी तुमने हँसते-हँसते,
हमको इतना बड़ा किया,
ज़िम्मेदारी हमें सीखा कर,
के पैरों पर खड़ा किया,

रक्षंबंधन,ईद,दशहरा,होली और दीवाली सब है,
आशीर्वाद नही जब तेरा,सुना हर त्योहार दिखे,


सारे रिश्ते-नाते देखे,
तुझ जैसी ना कहीं दिखे,
तेरी ममता सब पर भारी,
जिधर देखता वहीं दिखे,

अब तक जो कुछ,भी पाया हूँ,
सब कुछ आशीर्वाद तुम्हारे,
याद मुझे हैं तेरी वाणी,
सद्दविचार संवाद तुम्हारे,

जितना भी अब तक पाया हूँ,तुच्छ है सब कुछ माँ के आगे,
चुटकी जैसा यह भौतिक सुख, भारी माँ का प्यार दिखे.

तेरी आँचल की छाया में,मुझको तो संसार दिखे,

Saturday, August 14, 2010

आज़ाद भारत के आज के स्वरूप का एक सूक्ष्म विश्लेषण ..जय-जय हिन्दुस्तान------(विनोद कुमार पांडेय)

समस्त भारतवासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई,आइए एक सूक्ष्म समीक्षा के साथ, आज़ादी पर्व मनाते हैं.

आज़ादी का पर्व मनाओ,जय भारत जय बोल कर,
है,कितने आज़ाद यहाँ हम,देखो आँखे खोल कर,
जय जय हिन्दुस्तान ,
भारत देश महान.

आज़ादी बस नाम का है,जित् देखो तित लाचारी है,
धनी धनों से खेल रहा है,निर्धन बना भिखारी है,
बंदिश में भगवान यहाँ,और क़ैद में यहाँ पुजारी है,
नज़रें डरी डरी रहती हैं,चारो ओर शिकारी है,

देश की हालत परख सको तो,परखो थोड़ा डोल कर,
हैं,कितने आज़ाद यहाँ हम,देखो आँखे खोल कर,
जय जय हिन्दुस्तान,
भारत देश महान,

जूझ रहें हैं सब जीने को,कैसी है यह युग आई,
एक तरफ पानी की किल्लत,एक तरफ है मंहगाई,
आँसू सूख गये अम्बर के,धरती भी है शरमाई,
भरा पड़ा था जहाँ खजाना,वहाँ भी कंगाली छाई,

पीने का पानी भी मिलता है,भारत मे तोल कर,
हैं,कितने आज़ाद यहाँ हम,देखो आँखे खोल कर,
जय जय हिन्दुस्तान,
भारत देश महान,

पूछो खुद से यह कैसी,आज़ादी की परिभाषा है,
धर्म क़ैद में,जाति क़ैद में,क़ैद मे घुटति भाषा है,
चार दीवारी मे दब जाती,लाखों की अभिलाषा है,
आज़ादी के नाम पे मिलता, उनको सिर्फ़ हताशा है,

आज़ादी का रूप यही है,बोलो हृदय टटोल कर,
हैं,कितने आज़ाद यहाँ हम,देखो आँखे खोल कर,
जय जय हिन्दुस्तान,
भारत देश महान,

सुबह जो निकला घर से,क्या वो शाम को वापस आएगा,
आतंको से देश हमारा कब, छुटकारा पाएगा,
यह भय दूर हो जब मन से,आज़ाद देश हो जाएगा,
तब जाकर सच्चे वीरों का, सपना सच कहलाएगा,

जिस आज़ादी के खातिर वो,जहर पिए थे घोल कर,
हैं,कितने आज़ाद यहाँ हम,देखो आँखे खोल कर,
जय जय हिन्दुस्तान,
भारत देश महान,

भगत सिंह,आज़ाद को सोचो,उनको नमन करो जाकर,
आज़ादी का अर्थ पढ़ो फिर,पहरे से बाहर आकर,
सत्य सनातन कभी डरे ना,किसी झूठ से भय पाकर,
मन की चलो बेड़ियाँ काटो,मन मे आज़ादी लाकर,

नाम करो भारत भूमि की,निज जीवन अनमोल कर,
हैं,कितने आज़ाद यहाँ हम,देखो आँखे खोल कर,
जय जय हिन्दुस्तान,
भारत देश महान,

Friday, August 6, 2010

वो बूढ़ा इंसान नही है,वो तो इक भगवान है.-----(विनोद कुमार पांडेय)

वो बूढ़ा इंसान नही है,
वो तो इक भगवान है.
जो यह बात समझ न पाया,
वो पागल-नादान है|



बचपन से लेकर के अब तक,
हर पल साथ तुम्हारे है,
जब से तुम दुनिया में आए ,
हर पल तुम्हे संवारें है,

सूरज से तप रही धूप में,
वो शीतल परिधान है |


तू कुछ पा जाए इस खातिर
उसने सब कुछ खोया था,
यह मत पूछो कब-कब तेरी,
तकलीफ़ों पर रोया था,

चँदा-सूरज भी गवाह है,
लेकिन तू अंजान है|


कहते हैं उपर वाले ने,
हमको यह आकार दिया.
मगर धरा पर इस बूढ़े ने,
हमें सहज साकार किया.

गर्व हमें आता है उन पर,
वो अपना अभिमान है|


आज समय नें ली है करवट,
रिश्ते-नाते टूट रहे,
पैसों की माया के आगे,
अपने ही अब रूठ रहे,

आज आदमी की नज़रों में,
मानव इक सामान है |


जिसनें बेटे को समझाया,
मर्म मान-सम्मान का.
राह बताया था नेकी का,
धर्म-कर्म ईमान का.

आज वही बेटा कहता है,
बाबू जी बेईमान है |


दिन दूनी औ रात चौगुनी,
तुमने तो विस्तार किया,
मगर याद उनको रखना तुम,
जिसने ये आधार दिया.

भूल नही जाना उसको तुम,
जो तेरी पहचान है|


दुनिया का ऐसा रिवाज है,
सबको बूढ़ा होना है,
जब तक साँसे है यह जीवन,
फिर तो सबको सोना है,

अभी जाग जा रे तू बंदे,
तेरे भी संतान है|