Sunday, October 31, 2010

भगवान भी हैरान है,क्या चीज़ है यह आदमी---(विनोद कुमार पांडेय)

पंकज सुबीर जी द्वारा आयोजित तरही मुशायरे में सम्मिलित की गई मेरी एक ग़ज़ल..आज आप सब के आशीर्वाद के लिए प्रस्तुत है..

मत पूछ मेरे हाल को बेहाल सी है जिंदगी
मैं बन गया हूँ,आजकल अपने शहर में अजनबी

जो वाहवाही कर रहे थे, आज हमसे हैं खफा
एक बार सच क्या कह दिया, ऐसी मची है,खलबली

वो दौर था,जब दोस्ती में जान भी कुर्बान थी
अब जान लेने की नई तरकीब भी है दोस्ती

हम तो वफ़ा करते रहे, सब भूल कर उसके करम
था क्या पता हमको कभी भारी पड़ेगी दिल्लगी

चट्टान को भी चीर कर जिसने बनाया रास्ता
क्या हो गया है आज क्यों, सूखी पड़ी है वो नदी

ठगने लगे हैं लोग अब इंसानियत के नाम पर
भगवान भी हैरान है,क्या चीज़ है यह आदमी

कल रात ही एक और ने भी हार मानी भूख से
पाए गये आँसू ज़मीं पे रो पड़ा था चाँद भी

Thursday, October 28, 2010

आज हरिभूमि में प्रकाशित मेरी एक व्यंग(लो फिर उछला जूता)-----विनोद कुमार पांडेय

आस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री जॉन हॉवर्ड के उपर जूते का उछाला जाना जूते उछाले जाने की परंपरा का एक बेजोड़ नमूना हैकुछ साल पहले एक इराक़ी पत्रकार नें अमेरिकी राष्ट्रपति के उपर जूता फेंककर इस रिवाज की सार्वजनिक शुरुआत की और आज यह इतना लोकप्रिय हो गया है कि अब तक ३-४ घटनाएँ सुर्ख़ियों में हैं यहाँ तक कि भारत में भी इस प्रणाली की जोरदार उद्‍घाटन हो चुकी है


अब अगर इस व्यवस्था की समीक्षा करें तो हम पाएँगे की जूते उछालने की प्रक्रिया एक प्रकार की नाराज़गी व्यक्त का तरीका है जिसमें फेकनें वाला और जिसके उपर फेंका जाता है दोनों लगभग-लगभग सुरक्षित रहते है फ़ायदे की बात यह है कि जूता फेंकने वाला व्यक्ति झटपट चर्चा में आ जाता है और वैसे भी सुर्ख़ियों में आना भला कौन नही चाहता अब वो स्थिति तो रही नही कि नेक काम से आदमी को जाना जाय तो आदमी ने कुछ दूसरा रास्ता ढूढ़ना शुरू कर दिया बस इसी जद्दोजहद में जूता फेंको खेल की शुरुआत हुई जो दिन पर दिन अपने लोकप्रियता की शिखर की ओर बढ़ती जा रही है


इस जूता फेंको खेल की सबसे बड़ी खास बात यह है कि जूता फेंकने वाला व्यक्ति तो बेइज़्ज़ती करने के उद्देश्य से फेंकता है परंतु सामने वाला व्यक्ति तनिक भी बेइज़्ज़ती महसूस नही करता बल्कि उस व्यक्ति को माफ़ कर देता हैवैसे ये सारी बातें ऊपर की खबर है अगर मीडिया से छिपकर उस जूता फेंकने वाले व्यक्ति के साथ कोई कार्यवाही की जाती हो उसके के बारे में हम कुछ नही कह सकते


चाहे कुछ भी हो एक बात साफ है दिन पर दिन राजनेताओं पर जूता फेंकने की घटना बढ़ती जा रही है जिससे राजनेताओं को जूते का ख़तरा बढ़ गया है अगर इसी तरह सब कुछ चलता रहा तो एक दिन ऐसा भी हो सकता है कि सभागार और असेंबली में लोगों को जूते पहन कर जाने की अनुमति ही ना दी जाएँ और गेट के बाहर दो-चार बॉडीगॉड पब्लिक के जूतों की निगरानी में ही लगे रहें


अगर इस प्रकार हो गया तो प्रशासन की एक बड़ी संख्या इस कार्य के लिए भी नियुक्त कर दी जाएगी की जहाँ कही नेता जी भाषण देने जाए वहाँ कोई भी जूता- चप्पल वाला आदमी दिखाई ना देक्योंकि जूता फेंकने से भले ही किसी प्रकार की जान-माल की नुकसान ना हो पर अपने राजनयिक की बेइज़्ज़ती तो है ही और इस प्रकार सरेआम इज़्ज़त उतार लेना अच्छी बात नही है अगर जनता नाराज़ है तो चाहे अकेले में नाराज़गी व्यक्त कर लें भले मौका मिलने पर दो-चार जूते मार लें पर इस प्रकार भरी भीड़ में नेता जी के ऊपर जूते ना उछाले क्योंकि सब बात तो एक जगह सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस घटना का इंटरनेशनल न्यूज़ भी बनता है जिससे पूरे विश्व को पता चल जाता है कि फलाँ देश के नेता के ऊपर जूते फेंके गये अकेले में निपट लेने से कम से कम यह स्थिति तो नही रहेगी

Friday, October 22, 2010

धत्त तेरी मँहगाई-----(विनोद कुमार पांडेय)

ग़ज़ल के सिलसिले को एक अल्प विराम देते है और आप सब को अपनी एक हास्य-व्यंग कविता से रूबरू करवाता हूँ...आज के ताज़ा हालत पर आधारित है....उम्मीद करता हूँ मेरा यह प्रयोग भी आप सब को अच्छा लगेगा..साथ ही साथ एक खुशी और व्यक्त करना चाहूँगा की प्रस्तुत कविता ब्लॉग पर मेरी १०० वीं पोस्ट है..मैने भी शतक लगा दिया आप सब ने मुझे पढ़ा-सुना-समझा और इतना प्यार दिया सभी का दिल से आभारी हूँ....धन्यवाद!


धत्त तेरी मँहगाई|

जब से यह सरकार बनी,
भौहें रहती तनी तनी,
भाव करें फिर जेब टटोले,
ठंडा पड़के पीछे हो ले,
पब्लिक की हालत है खस्ती,
चीज़ नही कोई भी सस्ती,
मुरझाए हरदम रहते हैं,
मन ही मन में ये कहते है,

कैसी शामत आई |धत्त तेरी मँहगाई

दाम सुने लग जाए टोना,
सब्जी जैसे चाँदी-सोना,
भिंडी-टीन्डा साग टमाटर,
लगे देखने में ही सुंदर,
आलू,बैगन,कटहल,लौकी,
झटपट भज जाती है सौ की,
सब्जी लेकर जब भी आएँ,
दाम जोड़ते ही चिल्लाएँ,

हे सरकार दुहाई |धत्त तेरी मँहगाई

बजट भी डाँवाडोल हो गई
छप्पन की पेट्रोल हो गई,
चाय की प्याली भार हुई
चीनी चालीस पार हुई,
दाम बढ़ गये गैसों के भी,
दूध,दही व भैसों के भी,
गगन छू रही दाम दाल की,
ऐसी-तैसी हुई हाल की

ये हालत पहुँचाई |धत्त तेरी मँहगाई

भीषण रोग बनी मँहगाई
जनता बस पिसने को भाई,
कैसे होगा बेड़ा पार,
कुछ तो सुन लीजे सरकार,
सब अधिकार तुम्हारे पास,
मत तोड़ों सबका विश्वास,
मँहगाई पर कसो लगाम,
खुश हो भारत की आवाम,

ऐसे बनो नही कस्साई |धत्त तेरी मँहगाई|

Sunday, October 3, 2010

शेर-बाघ के गये जमाने,कनखजूरे सरदार हो गये----(विनोद कुमार पांडेय)

यार सभी बेकार हो गये
दिल में सबके खार हो गये

शब्दबाण जो अपनों के थे
सीने के उस पार हो गये

स्वारथ सब रिश्तों पर भारी
मतलब के व्यवहार हो गये

ना जीने ना जीने देना
जीवन के आधार हो गये

नवयुग की परिवार प्रणाली
अम्मा-बाबू भार हो गये

लाभ मिला उनसे तो जानो
वो फूलों के हार हो गये

खून चूसने वाले अब तो
वोट जीत सरकार हो गये

शेरों के लद गये जमाने
देख गधे सरदार हो गये