Saturday, August 8, 2009

प्लीज़, नो स्मोकिंग

व्यस्तता के चलते कुछ नया नही लिख पाया और एक पुराना लिखा हुआ संदेश फिर से आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ इस उम्मीद के साथ की जल्द ही कुछ नया लेकर आऊंगा..

सुबह न्यूज़ मे पढ़ा था,
तो सभी से मज़े लेने पर अड़ा था,
की भारत की जागरूक भावी पीढ़ी देखो,
अब सिगरेट के डिब्बों पर छ्पेगें,बीमार फेफड़े,
और गुटकों के पैकेट दिंखेगे बिच्छू और केकड़े,
खाओ,पिओ फिर देखना,
जल्द ही जब आप एक्सरे कराएँगे,
तो जनाब आपके फेफड़े, ऐसे ही नज़र आएँगे,
और गुटका का मसाला अभी नही,बाद मे असर करेगा,
जब लड़कपन और जवानी की ग़लती, आपका बुढ़ापा भरेगा।

जो भी मिलता सबको बता रहा था,
और इस तरह चिढ़ाने मे हमको खूब मज़ा आ रहा था,
की भाई सच्चाई देखो,
अब तो सुधर जाओ,
जीवन की गति को ऐसे मत गड़बड़ाओ।

अपने अमूल्य शब्दो का बिन मोल व्यापार करता रहा,
और बिना लहर सामाजिक सुधार का प्रचार करता रहा,
परंतु ये प्रचारिक माहौल, ज़्यादा देर तक नही चलने नही पाया,
एक दुकान दार मिला उसने फिर बैठ कर समझाया, बोला सुनो,
तुम्हारे ऐसे चिल्लाने से कुछ भी असर नही हो रहें है,
क्योंकि जिसे तुम जगा रहे हो,
वो सब आधुनिकता की गहरी नींद मे सो रहें है।
वो मुझे चुप करा कर अपनी बात पर अड़ा,
बोला चाहे जितना दिखे,बिच्छू और केकड़ा,
जब तक आपके देश का,
ये होनहार पीढ़ी सोएगा,
तब तक कोई भी, परिवर्तन नही होएगा,

उसकी सच्ची बात,मेरे दिलोदिमाग़ पर छा गयी,
और वो कड़वा अनुभव,कविता बन कर, आपके समक्ष आ गयी,
सरकार चाहे जितना करे प्रचार,
परिवर्तन तो तभी आएँगे,
जब हर व्यक्ति, सोचेंगे,समझेंगे अपने अंदर वो विचार लाएँगे।

बस सभी से यही योगदान चाहता हूँ,
हर नुक्कड़,शहर और प्रदेश के जीवित प्राणियों से ये अभियान चाहता हूँ,
मेरी इस भावपूर्ण कविता को,
अपने प्रयासों से अनूठी कर दो,
खुद को सच कर,उस दुकानदार के बातों को झूठी कर दो।

24 comments:

  1. लगता है किसी ख़ास मूड में ...लिखी गयी है..

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  2. नो स्मोकिंग ... बढ़िया रचना .

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  3. दुकानदार जब भी बोलता है
    सच बोलता है
    वो अपने मन के तराजू पर
    जब भी तोलता है
    तो उसका अनुभव बोलता है।

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  4. जब तक आपके देश का,
    ये होनहार पीढ़ी सोएगा,
    तब तक कोई भी,
    परिवर्तन नही होएगा,

    ये बात वैसे तो सही है............. इन सब का मोह त्यागने के लिए.......... जागना होगा............. संकल्प लेना होगा........

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  5. there is lot difference b'wwn "kannon(law)"and "jagrookta(awareness)" and you were able to defince it accruately.

    People wear seta belt an helmet to save themselves from challan instead to save their precious life....
    ...this is bull S@#t !!

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  6. Bilkul sahi kaha, jab tak har individual nahi sochega tab tak kuch nahi hoga. Bond bond se hi sagar bharta hai

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  7. बहुत सच्चा सन्देश देती हुई रचना है आपकी...सच है चित्र छपने से बहुत अधिक असर नहीं पड़ता...मन में इन बुराईयों से लड़ने की चाह होनी चाहिए...
    नीरज

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  8. आजकल आप सामयिक विश्यों पर बहुत बडिया रचनायें लिख रहे हैं एक अच्छा और सार्थक सन्देश देती रचना के लिये बधाई

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  9. आपका जागरूकता अभियान सफल हो ...इसी कामना के साथ .....!!

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  10. मित्र बहुत ही बेहतरीन रचना पने सामाजिक सरोकार से दूर होती और पश्चिमी प्रगति की अंधी दौड़ में शामिल आज की पीढी को जगाने का प्रयाश करती उम्दा रचना

    मेरा

    प्रणाम स्वीकार करे

    सादर

    प्रवीण पथिक

    9971969084

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  11. वाह बहुत ही सुंदर रचना लिखा है आपने! अब देखा जाए तो लोग इस बुरी आदत को छुडा नहीं पाते ! अच्छा संदेश भरा रचना है! बहुत बढ़िया लगा!

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  12. बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति, आभार्

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  13. Yaad dila diya wo geet," bachpan khel me khoya, jawanee neend bhar soya ,budhapa dekh kar roya..wahee qissa purana hai.."
    Aksar budhape me aql aatee hai..aur tabtak bachhe baap ko khapti samajhne lagte hain!

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  14. ज़ोरदार है जी!

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  15. हर कोई इस बिडम्बना को जानता है
    पर पता नही क्यो वो नही मानता है
    ---
    हम भी शामिल हुए इस अभियान मे

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  16. Sundar sandesh deti rachna...no smoking Please !!

    "वन्देमातरम और मुस्लिम समाज" को देखें "शब्द-शिखर" की निगाह से...

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  17. आज कल आप सामाजिक विषयों पर कुछ ज़यादा ही लिख रहे है|यह तो सही है की यह काविटा आपने कुछ अलग ही मूड में लिखी है|बहुत ही सुंदर चोट उन लोगो को जो जानते हुए भी की यह सब सेहत के लिए हानिकारक है फिर भी अपने ही शीरीरइक देह को भौतिक कंकाल बनाने में लगे है|

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  18. विनोद भाई .........नशा मुक्ती का नशा बहुत ज़रूरी हैं अब . जिंदगी का नशा ही सबसे अच्छा, मैं कोशिश में हूँ इस तरह की परियोज़ना को साकार रूप दिया जाय . सभी की मदद की ज़रूरत हैं

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  19. "मेरी इस भावपूर्ण कविता को,
    अपने प्रयासों से अनूठी कर दो,
    खुद को सच कर,उस दुकानदार के बातों को झूठी कर दो।"
    सन्देश देती हुई रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....

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  20. आपकी पोस्ट से गुलज़ार का वो गीत याद आ गया
    जब भी सिगरेट जलती है
    मैं जलता हूँ...

    पर लोग इस बात को अक्सर धुएँ में उड़ा दिया करते हैं।

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