भीड़ में क्यों तनहाँ हो तुम,
तनहाई के लिए कुछ करो,
हमसाया भी जान छुड़ाती,
परछाईं के लिए कुछ करो,
हे आलस के धारक मानव,
जमहाई के लिए कुछ करो,
क्या खोया क्या पाया छोड़ो,
भरपायी के लिए कुछ करो,
जग क्यों रुसवा है,इंसान से,
रुसवाई के लिए कुछ करो,
जनता के सुख चैन नदारद,
महंगाई के लिए कुछ करो,
कब तक सितम सहोगे यूँ,
हरज़ाई के लिए कुछ करो,
देर हो रही है, बाबू जी,
शहनाई के लिए कुछ करो,
जनता के सुख चैन नदारद,
ReplyDeleteमहंगाई के लिए कुछ करो,
कब तक सितम सहोगे यूँ,
हरज़ाई के लिए कुछ करो,
waah bahut khub
हे आलस के धारक मानव,
ReplyDeleteजमहाई के लिए कुछ करो,
yeh panktiyan bahut achchi lagin....
ek saarthak sandesh deti.... behtareen rachna....
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Bahut bahut dhanyawaad Vinod ji....
अमा एक प्रेम पत्र तो लिख ही डालो,
ReplyDeleteकम से कम , लुगाई के लिये कुछ करो॥
दो घूस, बख्शीश, या और कोई तरीका ढूंढो,
कब तक लोगे तारीख जल्द सुनवाई के लिये कुछ करो
बाह बाह बिनोद बाबू का ठेले हैं ..हम भी दो लाईन धकेले हैं....
देर हो रही है, बाबू जी,
ReplyDeleteशहनाई के लिए कुछ करो,
बहुत खुब जी... हर आदमी परेंशा है
धन्यवाद
parchhayin ke liye kuch karo,shayad koi hakikat mil jaye.....bahut badhiyaa
ReplyDeleteजनता के सुख चैन नदारद,
ReplyDeleteमहंगाई के लिए कुछ करो .......
BAHOOT HI LAJAWAAB VINOD JI .. HAASY KE SAATH VISHAY PAR BHI MAJBOOT PAKAD RAKHI HAI ... SAARTHAK RACHNA HAI ....
क्या खोया क्या पाया छोड़ो,
ReplyDeleteभरपायी के लिए कुछ करो,
सरल शब्दो के बाण सटीक है.
बहुत ही प्रभावी
बहुत ही खुबसूरत ख्याल से सज्जी है आपकी कुछ तो करो.......एक एक शेर काबिले तारिफ है .........जिसमे सन्देश भी है कुछ करने की ललक भी दिखई देती है ........एक छटपटाहट भी दिखती है कुछ कर गुजरने की एहसास भी है ..........सुन्दरता से से उकेरा है दिल के एहसासो को ........विनोद जी /बधाई!
ReplyDeleteBahut khoob! Aalas jhatak, janta jage to sahee...insaan jaage to sahee...! Kitne achhe dhang se apnee baat rakhee hai aapne! Hearty Congrats!
ReplyDeleteजग क्यों रुसवा है,इंसान से,
ReplyDeleteरुसवाई के लिए कुछ करो,
mere lie ye taza soch thee
basdhai
बहुत ही सुंदर और बढ़िया संदेश देते हुए आपने बड़ा ही शानदार और भावपूर्ण रचना लिखा है! बहुत खूब!
ReplyDeleteजनता के सुख चैन नदारद,
ReplyDeleteमहंगाई के लिए कुछ करो,
कब तक सितम सहोगे यूँ,
हरज़ाई के लिए कुछ करो,
देर हो रही है, बाबू जी,
शहनाई के लिए कुछ करो,
वाह विनोद जी बहुत सुन्दर रचना है ये तीनो शेर लाजवाब हैं बधाई
देर हो रही है, बाबू जी,
ReplyDeleteशहनाई के लिए कुछ करो !
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां ।
अच्छा लिखा है बधाई के लिये
ReplyDeleteढेरों बधाई है लिखाई के लिये
सुन्दर कविता विनोद जी आपकीपोस्ट मुझे हर बार देरी से मिलती है
ReplyDeleteक्या खोया क्या पाया छोड़ो
ReplyDeleteभरपाई के लिए कुछ करो
वाह!
सुंदर है आपकी कविताई
ReplyDeleteअब छपाई के लिये कुछ करो
य़ूंही लिख दिया पर गज़ल बहुत सुंदर है छोटे छोटे शेरों में बडी बडी समस्याओं की और ध्यान खींचती हुई ।
ये लीजिए, आपकी शानदार गजल पढकर हमने आपके ब्लॉग पर कमेंट कर दिया। अब मत कहिएगा कि कुछ तो करो।
ReplyDelete--------------
स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक
आइए आज आपको चार्वाक के बारे में बताएं
bahut badhiya rachana . vinod ji badhai....
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