गम यूँ मिला की वो,आँसुओं में डूब गया,
किसी मैखत में जाने की,कभी नौबत नही आयी.
अपनों ने ही सीखा दिए उसे,जमाने के उसूल,
गैरों को आज़माने की, कभी नौबत नही आयी.
कई सपने संवर कर टूट जाते, रात भर में अब,
सुबह के गुनगुनाने की, कभी नौबत नही आयी.
बाप बनकर जिसे सदा दी,जिंदगी के हर मोड़ पर,
उसे हक़ भी जताने की,कभी नौबत नही आयी.
जीवन पथ पर चलता रहा, कंधे पर बोझ लिए,
चहक कर मुस्कुराने की,कभी नौबत नही आयी.
घर की आँगन में ही दीवार, उठा लिए उसके अपने,
हसरते आशियाने की, कभी नौबत नही आयी.
बुढ़ापे में खुदा से जो मिला,यह तोहफा उसको,
जिसे जग से छुपाने की,कभी नौबत नही आयी.
पड़ोसी भी नुमाइस देखकर, हँस कर निकल जाते,
किसी से गम बताने की,कभी नौबत नही आयी.
अपनों ने ही सीखा दिए उसे,जमाने के उसूल,
ReplyDeleteगैरों को आज़माने की, कभी नौबत नही आयी.
Vinod ji........ bahut shandar kavita..... in lines ne to dil hi chhooo liya....
घर की आँगन में ही दीवार, उठा लिए उसके अपने,
हसरते आशियाने की, कभी नौबत नही आयी.
wah! ghar ke aangan mein hi deewar apnon ne utha liya....bahut hi sateek pankti hai........
behtareen shabdon ke saath ek khoobsoorat rachna.......
जीवन पथ पर चलता रहा, कंधे पर बोझ लिए,
ReplyDeleteचहक कर मुस्कुराने की,कभी नौबत नही आयी.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
बधाई!
अपनों ने ही सीखा दिए उसे,जमाने के उसूल,
ReplyDeleteगैरों को आज़माने की, कभी नौबत नही आयी....
KYA BAAT KAHI HAI VINOD JI .... SUBHAAN ALLA ...
घर की आँगन में ही दीवार, उठा लिए उसके अपने,
हसरते आशियाने की, कभी नौबत नही आयी.
YATHAART HAI YE JEEVAN KA ....
VINOD JI .....SANAAJ KA AAINA HAI AAPKI GAZAL ....
जीवन पथ पर चलता रहा, कंधे पर बोझ लिए,
ReplyDeleteचहक कर मुस्कुराने की,कभी नौबत नही आयी.
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जीवन के सन्दर्भो को शब्द दिया है आपने. करीबी एहसास और भाव
नौबत आनी भी नहीं चाहिए
ReplyDeleteनियामत खूब बरसनी चाहिए
।
बुढ़ापे में खुदा से जो मिला,यह तोहफा उसको,
ReplyDeleteजिसे जग से छुपाने की,कभी नौबत नही आयी.
क्या बात है एक एक शेर अलग ही दर्द लिये है, आज का सच लिये.
धन्यवाद
बहुत अछ लिखे हो
ReplyDeleteकई सपने संवर कर टूट जाते, रात भर में अब,
ReplyDeleteसुबह के गुनगुनाने की, कभी नौबत नही आयी.
बाप बनकर जिसे सदा दी,जिंदगी के हर मोड़ पर,
उसे हक़ भी जताने की,कभी नौबत नही आयी.
पाण्डेय जी नमस्कार
सुन्दर लगा आपकी ये कविता
congs! really it's gud poem.
ReplyDeleteउम्दा सोच
ReplyDeleteप्यारे शे'र
मज़ा आया
___लगे रहो दादा !
nice
ReplyDeleteकई सपने संवर कर टूट जाते, रात भर में अब,
सुबह के गुनगुनाने की, कभी नौबत नही आयी.
वाह भाई बहुत सुंदर
ReplyDeleteअच्छे अशआर हैं ।
ReplyDeleteJai ho.........
ReplyDeleteअपनों ने ही सीखा दिए उसे,जमाने के उसूल,
ReplyDeleteगैरों को आज़माने की, कभी नौबत नही आयी.
वाह ....वाह ....वाह ....!!
घर की आँगन में ही दीवार, उठा लिए उसके अपने,
हसरते आशियाने की, कभी नौबत नही आयी.
बहुत सुन्दर ...!!
विनोद जी गहरे भावः हैं आपके शे'रों के ....!!
पहले तो सोचा किसी एक शेर को ही उठा कर उसकी शान मे कुछ बोलूँ..मगर इतने सारे उम्दा अशआर आपने एक साथ पिरो दिये हैं कि एक शेर उठाना नाइंसाफ़ी होगी बाकी के साथ..बस गजब लिखा है..Hats off!!
ReplyDeleteज़िन्दगी के सारे उसूल अपने ही सिखाते हैं,
ReplyDeleteदर्द भी वही देते हैं और सलाह भी............
बहुत ही डूबकर अपने एहसासों को लिखा है
apano ne hi......naibat nahee aai.
ReplyDeletebahut hee sundar kavita.
अपनों ने ही सीखा दिए उसे,जमाने के उसूल,
ReplyDeleteगैरों को आज़माने की, कभी नौबत नही आयी.
वाह!! क्या बात है..
आपकी इस कविता को पढ़कर मैं निशब्द हो गई! बहुत ही सुंदर और दिल को छू लेने वाली कविता है!
ReplyDeleteबाप बनकर जिसे सदा दी जिन्दगी हर मोड़ पर
ReplyDeleteउसे हक़ भी जताने की कभी नौबत नहीं आई !
वाह, क्या बात कही आपने पाण्डेय साहब !
गम यूं मिला ... बहुत ही सुन्दर पंक्तियां, गहराई लिये भावपूर्ण रचना, बधाई ।
ReplyDeleteपने लिये आपकी शुभकामनाओं के लिये अभिभूत हूँ धन्यवाद । रचना तो कमाल है हमेशा की तरह धन्यवाद्
ReplyDeleteअपनो ने ही सिखा दिए उसे ज़माने के उसूल
ReplyDeleteगैरों को आज़माने की कभी नौबत नहीं आई
--इस शेर की जितनी भी तारीफ की जाय कम है।
--अच्छा लिख रहे हो भाई
...बधाई
क्या बात है....
ReplyDeleteहर सेर अपने आपको वाह लेने को मजबूर कर रहा है....