व्यस्तता के दौर से निकली सरल और सहज शब्दों में साकार, ग़ज़ल की कुछ लाइनें आप सब के नज़र करता हूँ..आशीर्वाद दीजिएगा.
सोच रहा था तुमसे मिलता,पर आना आसान नहीं,
फुरसत के कितने पल है,यह समझाना आसान नहीं,
हैरत में हूँ,मैं यह सुनकर,की मैं बदल गया हूँ अब,
मजबूरी में कदम बँधे है, कह पाना आसान नहीं,
बातें और बहाने ये सब औरों की आदत होगी,
सच्चाई से शब्द गुथे है, बतलाना आसान नहीं,
कितना भी समझा दूँ लेकिन झूठ तुम्हे सब लगता हैं,
सच की गाथा गाते हो, सच अपनाना आसान नहीं,
वैसे तो यह मन कहता है,दूरी बस एहसास है एक,
मगर ख्यालों की दुनिया में रह पाना आसान नहीं,
फिर भी नहीं समझना की मैं,भूल गया वो बीते पल,
यादों की उन महलों का भी, ढह जाना आसान नहीं,
ढूढ़ रहा हूँ कि कुछ टुकड़ा, वक्त कहीं से मिल जाए,
बँधन ही यह कुछ ऐसा है, बच पाना आसान नहीं,
चार पंक्ति का माफीनामा, ग़ज़ल बन गई है देखो,
तुम से इतनी दूरी भी तो सह पाना आसान नहीं.
दूरी बस एहसास है एक, मगर ख्यालों की दुनिया में रह पाना आसान नहीं
ReplyDeletesach kah rahen hain aap.... doori sirf ek ehsaas hi to hai.....
bahut hi achchi kavita...
बहुत सुंदर चार लाईन का माफ़ीनामा एक गजल के रुप मे, बधाई
ReplyDeleteफिर भी नहीं समझना की मैं,भूल गया वो बीते पल, यादों की उन महलों का भी, ढह जाना आसान नहीं,
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर जी. धन्यवाद
वैसे तो यह मन कहता है,दूरी बस एहसास है एक, मगर ख्यालों की दुनिया में रह पाना आसान नहीं,
ReplyDeletehum to yahee kahenge bhai ki itanee acchee ghazal kahna bhi aasaan nahi hai..
behad meethi si ghazal!!
बहुत सुंदर लगा आप का यह बहाना या फ़िर माफ़ी नामा.
ReplyDeleteधन्यवाद
हैरत में हूँ,मैं यह सुनकर,की मैं बदल गया हूँ अब,
ReplyDeleteमजबूरी में कदम बँधे है, कह पाना आसान नहीं,
-बहुत उम्दा!! वाकई बता पाना आसान नहीं.
चार पंक्ति का माफीनामा, ग़ज़ल बन गई है देखो,
ReplyDeleteतुम से इतनी दूरी भी तो सह पाना आसान नहीं.
-बहुत खूब!!
चार पंक्ति का माफीनामा, ग़ज़ल बन गई है देखो,
ReplyDeleteतुम से इतनी दूरी भी तो सह पाना आसान नहीं.
are wah
wah wah
बाते और बहाने ये सब औरो की आदत होंगी
ReplyDeleteसच्चाई से सब्द गुथे है बतलाना आसान नहीं
बहुत खूब विनोद जी !
Sach bolna aasan hai...sach ko apnana aasan nahi...
ReplyDeleteBahut khoob pandey sahib..lage raho!!!!
vakai itna bhi aasaan nahi
ReplyDeleteढूढ़ रहा हूँ कि कुछ टुकड़ा, वक्त कहीं से मिल जाए, बँधन ही यह कुछ ऐसा है, बच पाना आसान नहीं,
ReplyDeleteचार पंक्ति का माफीनामा, ग़ज़ल बन गई है देखो, तुम से इतनी दूरी भी तो सह पाना आसान नहीं.
विनोद जी .... बहुत ही उम्दा लिखा है ..... आज के दौर की त्रासदी को ...... मन के बोझ को आम शब्दों में उतार दिया है आपने ..... और ये अंतिम शेर तो जान है पूरी ग़ज़ल का ..... लेखक होने का हक़ अदा किया है इस शेर में ..
'Sach' ko apnaa lena sach me aasaan nahee..!
ReplyDeleteSaral sadagee bahree rachna!
चार पंक्ति का माफीनामा, ग़ज़ल बन गई है देखो,
ReplyDeleteतुम से इतनी दूरी भी तो सह पाना आसान नहीं.
वैसे तो यह मन कहता है,दूरी बस एहसास है एक, मगर ख्यालों की दुनिया में रह पाना आसान नहीं,
विनोद जी लाजवाब गज़ल है एक एक शेर काबिले तारीफ है। बहुत दिन बाद तो इतनी खूबसूरत रचना की आशा की जा सकती है बहुत बहुत बधाई
बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
ReplyDeleteहैरत में हूँ,मैं यह सुनकर,की मैं बदल गया हूँ अब,
ReplyDeleteमजबूरी में कदम बँधे है, कह पाना आसान नहीं !
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना, लाजवाब अभिव्यक्ति ।
मन से निकली सीधी-सच्ची बात
ReplyDeleteफिर भी नहीं समझना की मैं,भूल गया वो बीते पल, यादों की उन महलों का भी, ढह जाना आसान नहीं,
ReplyDeleteबिलकुल जावेद अख्तर वाली स्टाइल में.................
तुम्हे भी याद नहीं मैं भी भूल गया
वो लकितना हसीं था मगर फ़िज़ूल गया....!
बहुत अच्छे
विनोद जी आने में देर हुई .....क्षमा प्रार्थी हूँ.....हर शे'र बढ़िया लगा किसकी तारीफ करूँ किसकी न करूँ .....
ReplyDeleteढूढ़ रहा हूँ कि कुछ टुकड़ा, वक्त कहीं से मिल जाए,
बँधन ही यह कुछ ऐसा है, बच पाना आसान नहीं,
बहुत खूब....!!
बाते और बहाने ये सब औरो की आदत होंगी
सच्चाई से शब्द गुथे है बतलाना आसान नहीं
दिल से निकली बात......!!
चार पंक्ति का माफीनामा, ग़ज़ल बन गई है देखो,
तुम से इतनी दूरी भी तो सह पाना आसान नहीं.
वाह....वाह....वाह......!!!!!!
अगर तूफ़ान में जिद है ... वह रुकेगा नही तो मुझे भी रोकने का नशा चढा है ।
ReplyDeleteभई आठ शेर का है यह माफीनामा ..चार पंक्ति का नहीं
ReplyDelete