राखी का स्वयंवर,
अयोध्या से भी गये थे एक वर,
क्योंकि,अब भी वहाँ के लोगों को ये यकीं है,
कि स्वयंवर-व्यमवर के मामले में,
अयोध्यावासी थोड़े लकी हैं,
बस फिर क्या एक थे,
राखी के प्यार में डूबे,
नाम था जिनका सलामत दूबे,
उछलते-कूदते किस्मत के सहारे,
स्वयंवर वाले स्टूडियो में इंट्री मारे,
मत पूछिए जनाब कितने खुश थे,
जैसे इराक़ जीतने के बाद वाले जार्ज बुश थे,
गये,सोफे पर बैठे ही थे,कि राखी जी आईं,
इन्हे देखी और मुस्कुराई,
ये भी मुस्कुराहट का रिएक्सन जताने लगे,
और पागलों की तरह ज़ोर ज़ोर,
ठहाके लगाने लगे,
थोड़ा करीब डोले,और चुटकी
लेते हुए बोले,
राखी जी,आपको हमने
अलग अलग वेश में देखा,
पर पहली बार आज फुल ड्रेस में देखा,
यह तुम खुद सिलाई हो,
या किसी से माँग कर लाई हो,
राखी झल्लाई पर खुद को संभाली,
एक भी फूटकर गाली मुँह से नही निकाली,
सीरियस रोल में हो ली,
और बहुत कंट्रोल कर के बोली,दूबे जी,
आप तो बड़े ही मजाकिया टाइप के है,
आइए,बैठिए,कुछ बात आगे बढ़ाते है,
और फिर आपको औकात में लाते हैं,
बताइए कैसे हालात है,
और मेरे बारे में आपके क्या जज़्बात है,
इतना सुनते ही दूबे जी,
भावनाओं में डूब गये,
खूब बहकनें लगे,
बातें बना बना कर कहने लगे,
कि राखी बचपन से तुम्हारे प्यार में पड़ा हूँ,
तुम्हारे प्यार के सहारे यहाँ जिंदा खड़ा हूँ,
आगे भी सहारा दो नही बैठ जाऊँगा,
यही सोफे पर पड़े पड़े ही ऐठ जाऊँगा,
जैसे लग रही थी,
वो भी कुछ लारा बुश जैसे लग रही थी,
खूब मज़े से दूबे जी बात सुनी,
फिर मुस्कुरा कर बोली,
दूबे जी सचमुच में आप भावनाओं से
भरे पड़े हैं,
पर एक समस्या है,वो ये कि
आप के बाल बहुत बड़े हैं,
मुझे बालो से कंगाल चाहिए,
वर चाहिए पर बिना बाल चाहिए,
वैसे भी शादी अभी कर नही सकती,
मजबूरी है,
प्रोग्राम की टी. आर. पी. बढ़ाना भी तो,
बहुत ज़रूरी है,
इसलिए अभी तो आप जाइए,
घर जाकर भजन कीर्तन गाइए,
वादा करती हूँ,अगली बार आप जब यहाँ आएँगे,
मुझे ऐसे ही स्वयंवर रचाते पाएँगे,
और तब तक आपके बचे-खुचे बाकी,बाल भी गिर जाएँगे.
अरे वाह जोरदार व्यंग्य ... कार्यक्रम की टी.आर.पी. बढ़वाना हो तो खूब स्वयंवर कराओ
ReplyDeleteTRP की मजबूरी जो न कराये बेचारी से.. :)
ReplyDeleteहा हा!!
मस्त व्यंग्य रचना!
मुस्कुराते पल-कुछ सच कुछ सपने
ReplyDeleteहंसते ठहाके लगाते पल
सैंकडों में बीत जाते घंटे
सच न भी हो तो
सच का सामना बन जाता है
सपनों से तनातनी का दौर
खूब जम जाता है
व्यंग्य विनोद का नि:संदेह
खूब गजब ढाता है।
अयोध्या के दूबे जी को तो तुमहीं जानो
ReplyDeleteपर इहाँ बनारस में सुना था कि
एक पाण्डेजी जो बाहर पढ़ने गए रहे
राखी सांवत के चक्कर में मारे-मारे फिर रहे हैं
कहीं ऊ...........!
---मजा आ गया, हंसने हंसाने का दौर यूँ ही जारी रहे..
रोने के लिए बहुत गम हैं जमाने में।
-शुभकामनाएँ।
हा हा हा दूबे जी से कहिए तैयार रहें सुना है ईलेश बाबू का नंबर कट ही गया है....बस स्वयंवर पार्ट टू में तो दूबे जी ही होंगे पक्का ....
ReplyDeleteहा हा हा ह आहा हा हा ... बेचारी ..राखी ...टी आर पी बढाने के लिए क्या न कर दे..... पूरे कपडे भी पहन लेगी.....
ReplyDeleteहा हा हा ... बहुत मजेदार लगी यह रचना.....
हा हा हा मस्त है भाई
ReplyDeleteबहुत ही मज़ेदार ....
ReplyDeleteha ha ha ha ha
ReplyDeletegazab bhayo raamaa zulum bhayo re..
ha ha ha
बहुत बढ़िया विनोद जी!
ReplyDelete"वर तो चाहिए!
पर विना बाल चाहिए!!"
तब तो अगले स्वयंवर ने हम गंजों का बी नम्बर
आ जाएगा!
बस फिर क्या सब थे राखी के प्यार के भूखे !
ReplyDeleteअफ़सोस विनोद जी, आप और हम क्यों चूके ?
हा-हा-हा..
bahut sundar विनोद जी
बहुत ही सुन्दर व्यंग्यात्मक प्रस्तुति, आभार ।
ReplyDelete:)
ReplyDeleteबहुत ही बढिया व्यंग्य रचना....
लाजवाब्!
Wahwa....
ReplyDeleteवादा करती हूँ,अगली बार आप जब यहाँ आएँगे, मुझे ऐसे ही स्वयंवर रचाते पाएँगे, और तब तक आपके बचे-खुचे बाकी,बाल भी गिर जाएँगे.
ReplyDeleteबेचारे दूबेजी ।
... waah-waah !!!
ReplyDeleteadbhut rachna hai pandey ji!!!!
ReplyDeleteHa,ha ha! Maza aa gaya!
ReplyDeleteवाह विनोद जी ..... करारा व्यंग है ......... इन टी वी वालों को बस अपनी टी आर पी से मतलब है ....... बहुत ही अच्छा हास्य और व्यंग ........
ReplyDeleteहा हा हा कमाल का व्यंग है । विनोद जी क्या सही तस्वीर खींची है बधाई इस सुन्दर व्यंग के लिये
ReplyDeleteबहुत ही बढिया व्यंग्य रचना....
ReplyDeleteलाजवाब्!
ये टी आर पी क्या न करवाए.......दुबे जी जैसे लोग क्या करें...!
ReplyDeleteवाह ....आपने तो सारा कच्चा चिटठा खोल कर रख दिया .....बहुत खूब .....!!
ReplyDeleteBahut asardar aur seedha prahar karatee vyangya rachanaa.hardik shubhkamnayen.
ReplyDeletePoonam
priy vinod,meri kvita par aapki pratiukriya dekh to aap tak pahunchaa. aapke haasy ki 'gambheerata' dekhate hi banati hai. achchha yah dekh bhi laga ki aap bhi banaeas ke hai. mera janm bhi banaras ka hai.ab to chhattisgarh me hi jeena-marana hai. mai hasy nahi vyangy likhata hu. 8 vyangy sangerh, 3 vyangy upanyas prakashit hai. haan, vaise ek haasy chaaleesa bhi likhi hai bhejunga kbhi. isee tarah likhate raho. kafee sambhavana hai. shubhkamnaye.
ReplyDeleteaap hasane mein safal hue ..bandhaii
ReplyDeleteबढ़िया हास्य व्यंग है भाई, बधाई।
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