आदरणीय पंकज सुबीर जी द्वारा होली के तरही मुशायरे के लिए दिए गये मिसरे पर आधारित एक मजेदार रचना.
सुबह सवेरे जो घर से निकले, खुमारी होली थी सर पे छाई,
हज़ार रंगों से रंग चेहरा, तुम्हारे घर को कदम बढ़ाई,
यूँ झूमते हम निकल पड़े थे, इब्न-बतूता का गीत गाकर,
नज़र न आया वो गंदा नाला,जहाँ गिरे हम छटक के जाकर,
नशा वहीं पर हुआ था गायब, सुधर गये हम तेरी गली में,
उतर गया था बुखार सारा, पड़े जो जूते तेरी गली में,
वहाँ से जैसे बढ़े थे आगे, जो देखे हमको लगे खिझाने,
छटांक भर के वो सारे लड़के,लगे हमारी हँसी उड़ाने,
फटी बनियान, फटी थी टोपी,व चेहरा जैसे कोई निशाचर,
पड़ी जो भाभी मेरे सामने, मैं भागा सरपट नज़र झुकाकर,
लजाती नज़रें बता रहीं थी, मेरी कहानी तेरी गली में,
उतर गया था बुखार सारा, पड़े जो जूते तेरी गली में,
तुम्हारी अम्मा ने हमको देखा,लगी थी बाबू जी को बुलाने,
खड़ा है देखो भिखारी कोई, इसे दिला दो दो-चार दाने,
वो गुझिया-पापड़ दिया था तुमने,समझ के कोई भिखारी टोली,
तुम्हारे अब्बा के डर से हमने, तनिक न अपनी ज़ुबान खोली,
गली के कुत्ते भी मेरे पीछे,निकल लिए थे तेरी गली में,
उतर गया था बुखार सारा, पड़े जो जूते तेरी गली में.
रहेगी हमको ये याद होली,ज़रा सी ग़लती क्या गुल खिलाई,
कई बरस हमने खेली होली,न ऐसी नौबत कभी थी आई,
बना था ज़ीरो जो कल था हीरो,नशे ने सब कुछ बिगाड़ डाली,
की जैसे पहुँचा मैं अपने घर पर,मिली थी स्वागत में माँ की गाली,
न पूछो कैसे मनाया हमने, हमारी होली तेरी गली में,
उतर गया था बुखार सारा, पड़े जो जूते तेरी गली में.
क्या क्या हो गया साहब तेरी गली में!
ReplyDeletemy vote for u.
ReplyDeletei like ur words.
विनोद भाई यह गली कौन सी थी बता दें
ReplyDeleteबाकी मैं यह स्थिति दुबारा नही आने दूँगा.
बहुत खूब मनाया होली
सुन्दर
उतर गया था बुखार सारा, पड़े जो जूते तेरी गली में.
ReplyDeleteअरे विनोद बाबू दुनिया चाहे कितने जुते मारे, लेकिन माशुका के दर्शन तो कर आये, इस लिये यह जुते फ़ुलो से कम मत समझो, फ़िर डां का खर्चा भी बच गया..."उतर गया था बुखार सारा :)
हा हा!! बहुत मस्त रही यह गली भी. :)
ReplyDeleteहाहा..
ReplyDeleteबहुत कुछ गलत हुआ उसकी गली में..
और कमबख्त उसी की गली में सब गड़बड़ होना था?
hello sir...
ReplyDeletemi to aap ki poems ka waise hi fan hoo...dis is nice one,keep it up sir ji...
Beautiful...........
ReplyDeletethi uski gali, aisa lagta hai,
tabhi to aap bhatak gaye
aur meri gali se uski gali me holy manane pahunch gaye...
Sunder, Ati Sunder
oho kaun si gali me chale gaye the pandey ji.....
ReplyDeleteIn galiyo se dur hi raha karo... nice one
Ha,ha,ha....bahut badhiya!
ReplyDelete"उतर गया था बुखार सारा, पड़े जो जूते तेरी गली में," - ये नौबत न आती तो अच्च्छा रहता - आ गई तब भी कोई बात नहीं - होली पर तो कुछ भी हो सकता है किसी गली में.
ReplyDeletebadhiya :)
ReplyDeleteतेरी गलियों में न रखेंगे कदम आज के बाद,
ReplyDeleteहोली पर तो घर से भी न निकलेंगे आज के बाद...
जय हिंद...
मेरे मना करने के बावजूद गए तो भुगतिये...
ReplyDeleteलड्डू बोलता है....
laddoospeaks.blogspot.com
मेरे मना करने के बावजूद गए तो भुगतिये...
ReplyDeleteलड्डू बोलता है....
laddoospeaks.blogspot.com
नशा वहीं पर हुआ था गायब, सुधर गये हम तेरी गली में,
ReplyDeleteउतर गया था बुखार सारा, पड़े जो जूते तेरी गली में,
वाह बन्धु वाह.
mazedaar....
ReplyDeleteha ha ha ye bhi khoob rahi.
ReplyDeleteविनोद बाबू, एक बार में ही बुखार उतर गया? अरे इश्क-मोहब्बत में तो न जाने कितने पापड़ बेलने पडते हैं? बिल्कुल घबराओ नहीं, तुम्हारी माँ तुम्हारे साथ है। कोई भी गली वाली हो उसे इस बार दीवाली पर अपना बना ही लाएंगे। बस तुम तो होली का रंग छुड़ाकर राजा बाबू बन जाओ।
ReplyDeleteबढ़िया मस्त कर देने वाली रचना ... बधाई विनोद जी ...
ReplyDeleteहा हा सचमुच जबर्दस्त -विनोद जी आपको भी नवरात्र की सपरिवार मंगलकामनाएं
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई !
ReplyDeleteवाह पाण्डेय जी !!
ReplyDeletegood going. मजा आ गया !!
ाप भी बाज नही आते खूब जूतों से आर्ती उतारी गयी आपकी वाह क्या सीन था । हा हा हा बहुत बडिया। आशीर्वाद इसी तरह जूते पडते रहें और आर्तियाँ उतरती रहें।
ReplyDeleteबहुत खूब ...!!
ReplyDeleteये गली के किस्से भी लुभा गए ......!!
I appreciate your humour
ReplyDeleteVinod ji, pahli baar aapke blog par aaya or kafi achha mahsoos hua yahan aakar...aapka samajik sarokar wala vyangya bada hi sarthak hai. Aise hi aapki lekhni anvarat chalti rhe..
ReplyDeleteवो गुझिया-पापड़ दिया था तुमने,समझ के कोई भिखारी टोली,तुम्हारे अब्बा के डर से हमने, तनिक न अपनी ज़ुबान खोली,
ReplyDeleteगली के कुत्ते भी मेरे पीछे,निकल लिए थे तेरी गली में,उतर गया था बुखार सारा, पड़े जो जूते तेरी गली में.
बढ़िया बहाव है आपकी कविताई में ..लगे रहें..
A nice sence of humour...
nice holi flavour
ReplyDeleteHa,ha,ha...bada maza aaya!
ReplyDeleteKya baat pandeyji... ya khoob rahi aapki holi.. lagae raho vinod baboo....
ReplyDeletePandey ji...yeh aap kis gaali ja rahe the...behke behke kadam lag rahe hain..waise bahut hi mast kavita hai...great going!!!
ReplyDeleteपांडे जी आज भी आप ने गजब कर दिया हाहाह हाहाह हाहाह हहह हसे ही जा रहा हूँ
ReplyDeleteसादर ३
प्रवीण पथिक
9971969084
वाह आपने तो सच में होली का खुमार उतार दिया ... बहुत ही लाजवाब हास्य और व्यंग का सम-आयोजन किया है ... आपके व्यंग के तो वैसे भी हम दीवाने हैं ........
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