Monday, April 19, 2010

टीका,चंदन,माला,दाढ़ी,साधु बाबा बड़े खिलाड़ी----------(विनोद कुमार पांडेय)

टीका,चंदन,माला,दाढ़ी,साधु बाबा बड़े खिलाड़ी|

उजला-उजला तन पर कपड़ा,अंदर से मन काला,
रंग-भरी दुनिया के रंगों में,खुद को रंग डाला,
५२ रूप धरे बाबाजी,पब्लिक समझ न पाए,
भारी झटका लगता उसको,जो झाँसे में आए,

पर दिखते है भोले-भाले,तित पर निर्मल वाणी|
टीका,चंदन,माला,दाढ़ी,साधु बाबा बड़े खिलाड़ी||


मार-झाँस कर लोगों को,बस अपना आबाद किए,
बेटा-बेटी,बीवी सबको,धन-जेवरात से लाद दिए,
रामनाम का चादर ओढ़े,मूर्ख बनाते जनता को,
नरक द्वार पर खुद बैठे,जन्नत दिखलाते जनता को,

पढ़े-लिखे जनमानस की भी, गई हुई है बुद्धि मारी|
टीका,चंदन,माला,दाढ़ी,साधु बाबा बड़े खिलाड़ी||


चालू,चोर,निठल्ले,लोगों के, अब ऐसे काम हुए,
ऐसे बाबा के चक्कर में,कुछ अच्छे बदनाम हुए,
काले पैसे श्वेत हो रहे हैं, इस गोरख धंधे से,
घर बाहर गुलज़ार किए हैं,मिलने वाले चंदे से,

घर है भरा जिधर भी देखो,रूपिया पैसा,घोड़ा गाड़ी|
टीका,चंदन,माला,दाढ़ी,साधु बाबा बड़े खिलाड़ी|

18 comments:

  1. हुए,काले पैसे श्वेत हो रहे हैं, इस गोरख धंधे से,घर बाहर गुलज़ार किए हैं,मिलने वाले चंदे से,
    मन काला हो तो उजला कपड़ा भी मन को साफ नही कर पाता
    सुन्दर

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  2. बहुत सुंदर बात कही, लेकिन जनता बार बार इस से ऊल्लू क्यो बनती है

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  3. वाह .. बाबाओं की करतूतों के पोल खोलकर रख दिया !!

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  4. वाकई, पूरी पोल खोलक रचना!! बेहतरीन भाई.

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  5. शब्द और भाव का अद्भुत मिश्रण है आपकी रचना में...वाह...
    नीरज

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  6. साधू बाबा तो आजकल के खिलाड़ी होते ही हैं .....सटीक !!

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  7. sach kaha aapne padhe likhe logo ki bhi buddhi ko bhi kund kar dete hai aise log apni baato me uljha kar.

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  8. बाबा को उघाड़ कर रख दिया आपने

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  9. वाह !!!!!!!!! क्या बात है......शानदार जानदार और क्या कहूँ..........

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  10. बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना! उम्दा प्रस्तुती!

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  11. नरक द्वार पर खुद बैठे,जन्नत दिखलाते जनता को
    ...वाह!

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  12. चालू,चोर,निठल्ले,लोगों के, अब ऐसे काम हुए,ऐसे बाबा के चक्कर में,कुछ अच्छे बदनाम हुए,काले पैसे श्वेत हो रहे हैं, इस गोरख धंधे से,घर बाहर गुलज़ार किए हैं,मिलने वाले चंदे से,-----------------
    Bahut behatareen vyangya---apane to dhongee babaon kee achchhee khabar lee hai-----
    Poonam

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  13. वाह विनोद जी .... आज के साधू बाबाओं की सही पॉल खोल रहे हैं आप ... ऐसे बाबाओ ने साधुओं पर से विश्वास हटा दिया है ... आपके व्यंग की धार हमेशा की तरह तेज़ है बहुत ....

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  14. इन ढोंगी बाबाओं की ऐसी बाढ़ आ गई है कि सारे साधु बाबा संदेहास्पद लगने लगे हैं.

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  15. बढ़िया व्यंग्य है, विनोद भाई , अफ़सोस है कि हमारे महर्षियों कि जगह इन भगवे कपडे पहने जादूगरों ने ले ली है ! वास्तविक सन्यासी अपनी पहचान छिपाने का प्रयत्न करते हैं !

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