अभी सुबह ५ मिनट की बूंदा-बंदी के बाद शांत पड़े बादल जी के नाम एक पत्र है काव्य रस से ओत प्रोत शायद सभी को पसंद आए..
लो फिर टिपटिपा के चले गये|
खुशी हुई तुम आए थे,
थोड़ी देर ठहरते तो,
ऐसी भी क्या हुई बेरूख़ी,
थोड़ी देर बरसते तो,
मौसम खूब बनाए थे,पर बस भरमा के चले गये|
आँधी के झोंकों ने तेरे,
स्वागत में संगीत बजाई,
बिजली रानी तड़प-तड़प के,
अपने मन की व्यथा सुनाई,
सारी बातें अनदेखी कर,कान दबा के चले गये|
गर्मी के गर्म थपेड़ों से,
धरती भी हलकान पड़ी,
हाथ उठा कर तुमको पीने,
सारी दुनिया हुई खड़ी,
वो सब प्यासे आस लगाए,तुम तड़पा के चले गये|
चलो ठीक है अबकी जाओ,
पर जल्दी दोबारा आना,
दिन-दिन गर्मी बढ़ती जाती,
थोड़ी शीतलता पहुँचना,
मैं विनती करता हर बार,तुम बहका के चले गये|
हम भी टिपटिपाने ही आय हैं मगर पूरा पढ़ने तक ठहरे..लम्बा लिखते तो लम्बा ठहरते. :)
ReplyDeleteबढ़िया रचना!
टिप टिप बरसा पानी...पानी ने आग लगा दी...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.. :-)
बादल आपकी पुकार अवश्य सुनेंगे!
ReplyDelete--
हमारे यहाँ तो प्रति दिन कृपा कर ही देते हैं!
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मैं उनसे कहूँगा कि वो आपको भी स्नेहसिक्त कर दैं!
अरे आप को भी तो एक अच्छी कविता दे कर चले गए.
ReplyDelete...बधाई.
बहुत बढ़िया ...टिप टिप
ReplyDeleteआज फिर एक बदली छाई
ReplyDeleteआज फिर एक फुहार आई ।
चलने लगी है हौले हौले
आज फिर से वही पुरवाई।
आपकी कविता का असर हो गया । हम पर भी , मौसम पर भी ।
टिप्पणी की टिप टिप हम भी कर देते हैं बहुत अच्छी रचना बधाई
ReplyDeletedil ko chhoo lene valaageet hai vinod...badhai.
ReplyDeleteYah bhi khoob kahi..ham bhi 'baraste' mausam ke intezaar me hain!
ReplyDeleteहम भी जब सुबह सोकर उठे थे, तो हर जगह छिडकाव हो रखा था। लेकिन बादल महाराज चले गये तो चले गये। उनकी मर्जी।
ReplyDeleteबहुत ही हृदयस्पर्शी रचना है...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुंदर जी, अब इस पत्र को पतंग के साथ बांध कर बादलो को भेजे ना
ReplyDeleteबहुत खूब विनोद !
ReplyDeleteयह खुला ख़त बहुत अच्छा लगा शायद बादल कुछ शर्मिंदगी महसूस करें और बापस आ जाएँ ! भीषण गर्मीं में एक खूबसूरत रचना देने के लिए हार्दिक शुभकामनायें !
Our life is full of mirages. These clouds are also playing hide and seek with us. In a way teaching us the philosophy of life to live in moments.
ReplyDeleteहम तडपते रह गये वो मुस्कुरा के चल दिये...
ReplyDeleteअभी सुबह ५ मिनट की बूंदा-बंदी के बाद शांत पड़े बादल जी के नाम एक पत्र है
ReplyDelete........
वाह..... बादल जी चिट्ठी आई है ....आई है ...विनोद जी की चिट्ठी आई है ......
बहुत खूब .....!!
बादल पर बहुत अछा लिखा है आप् ने
ReplyDeleteइन बादलों की आँखमिचोली तो चलती रहेगी .... पर जब जब ये जाम कर बरसेंगे तो क्या होगा .... सुंदर काव्य रचना है विनोद जी ... हर पंक्ति रंग में रंगी हुई ...
ReplyDeleteइन बादलों की आँखमिचोली तो चलती रहेगी .... पर जब जब ये जाम कर बरसेंगे तो क्या होगा .... सुंदर काव्य रचना है विनोद जी ... हर पंक्ति रंग में रंगी हुई ...
ReplyDeleteAti subder Rachna...........
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