Thursday, July 1, 2010

वो कहीं पर भी कामयाब नहीं-------(विनोद कुमार पांडेय)

बीते दिनों गिरीश पंकज जी के ब्लॉग पर तरही मिसिरा की एक लाइन पर नज़र गई तो उसी की लाइन को अपने शब्द और भाव दे कर आगे बढ़ाने में लग गया अंततः गिरीश चाचा जी के आशीर्वाद के बाद आज ग़ज़ल संपूर्ण हो गई.. गिरीश चाचा जी को समर्पित करके आज मैं यह ग़ज़ल आप के सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ..आशीर्वाद चाहूँगा..

वो कहीं पर भी कामयाब नहीं,
जिसके ज़ेहन में इंक़लाब नहीं,

ख्वाब से जिंदगी करो रौशन
आँख में खो गये वो ख्वाब नहीं,

उड़ी गई रंग यहाँ गुलशने की,
फूल तो हैं मगर गुलाब नहीं,

वैसे तो हैं यहाँ कई हीरे
चमक तो पर हैं वो नायाब नहीं,

कैसे मै अब यकीन कर लूंगा
जिनकी फ़ितरत का कुछ जवाब नही,

दिल में अपने तो प्यार है केवल ,
कोई नफ़रत, कोई रुआब नही,

दोस्ती का तेरे सिला क्या दूँ,
बेवफ़ाई का कुछ हिसाब नही,

10 comments:

  1. अच्छा तो गिरीश जी भी आपके चाचा है ! तुम्हारी यह विनम्रता बहुत कुछ दिलवाएगी गिरीश भाई जैसे महान विभूतियों से ...यह मैं तुम्हारी उम्र में नहीं सीख पाया यार :-(
    शुभकामनायें !

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  2. पहले दो शेरों में दम है, बाकी कहीं कुछ कम हैं।

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  3. दिल में अपने तो प्यार है केवल ,कोई नफ़रत, कोई रुआब नही,
    दोस्ती का तेरे सिला क्या दूँ, बेवफ़ाई का कुछ हिसाब नही,

    badhiya gjal

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  4. सुंदर अभिव्यक्ति। यूं ही जारी रहें...
    आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा। हिंदी ब्लागिंग को आप और ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है।
    इंटरनेट के जरिए अतिरिक्त आमदनी की इच्छा हो तो यहां पधारें -
    http://gharkibaaten.blogspot.com

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  5. वाह हर एक शेर नायाब हो भी क्यों ना आखिर गिरीश जी के हाथ लगे हैं। पहली गज़ल ही इतनी लाजवाब है तो आगे जरूर गज़ल के क्षेत्र मे नाम कमायेंगे। बहुत बहुत शुभकामनायें

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  6. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है विनोद जी .... हर शेर कसा हुवा ... आज के जमाने की बात करता हुवा ... लाजवाब ...

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  7. अच्छी गज़ल है विनोद , बस कहीं वज़न कुछ कम ज़्यादा है । गिरीश भाई को दे दो सही कर देंगे ।

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  8. दिल में प्यार रहे और इसको लुटाते चलें तो सारा आलम खुशनुमा होना तय है.

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  9. उड़ी गई रंग यहाँ गुलशने की,
    फूल तो हैं मगर गुलाब नहीं,
    सुन्दर गज़ल

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