Wednesday, July 14, 2010

धन से मालामाल बहुत है,पर दिल से कंगाल बहुत है----(विनोद कुमार पांडेय)

धन से मालामाल बहुत है,
पर दिल से कंगाल बहुत है,

इस दुनिया का हाल न पूछो,
इसके बिगड़े चाल बहुत है,

धमा-चौकड़ी,हल्ला-गुल्ला,
बे-मतलब जंजाल बहुत है,

भागमभागी बस पैसों की,
सब के सब बेहाल बहुत है,

बिन बातों की पंचायत है,
घर-घर में चौपाल बहुत है,

तौल रहें रिश्ते को धन में,
ऐसे भी चंडाल बहुत है,

दारू पीकर लोट रहें जो,
भारत माँ के लाल बहुत है,

घर में बर्तन तक गिरवी है,
पर बाहर भौकाल बहुत है,

पढ़े-लिखे भी शून्य बनें हैं,
ऐसे घोंचूलाल बहुत है,

नही चाहिए पिज़्ज़ा-बर्गर,
हमको रोटी-दाल बहुत है.

24 comments:

  1. पढ़े-लिखे भी शून्य बनें हैं,
    ऐसे घोंचूलाल बहुत है,
    नही चाहिए पिज़्ज़ा-बर्गर,
    हमको रोटी-दाल बहुत है.
    --
    अच्छी ललकार है!
    --
    बहुत बढ़िया गजल!

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  2. भाव अच्‍छे हैं। शब्‍दों के चयन को और दुरस्‍त कर लें तो अच्‍छी रचना हो जाएगी।

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  3. taul rahe हैं rishto को dhan से , aise भी chandaal बहुत है ..
    kya baat kahi ...in logo के लिए baap bada ना bhaiya sabse bada rupya .

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  4. bahut sundar prayas.kaheen-kaheen sudhar ki gunjaish hai,lekin dheere-dheere yah bhi theek ho jayegee. nirantar nikharate ja rahe ho, yah khushi ki baat hai. badhai.

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  5. नही चाहिए पिज़्ज़ा-बर्गर,
    हमको रोटी-दाल बहुत है.द
    बहुत सुंदर भाव लिये है जी आप की यह रचना. धन्यवा्द

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  6. धमा-चौकड़ी,हल्ला-गुल्ला,
    बे-मतलब जंजाल बहुत है,...
    हमारे राजनेता तो सबसे बड़ा उधाहरण हैं इन बातों के लिए ...
    तौल रहें रिश्ते को धन में,
    ऐसे भी चंडाल बहुत है,
    ये आज के समय पर प्रहार करता सटीक व्यंग है ...
    नही चाहिए पिज़्ज़ा-बर्गर,
    हमको रोटी-दाल बहुत है...
    सुखी रहने का मंत्र तो यही है विनोद जी .... घर के रोटी डाल से जो सुखी है वही जीवन आनंद से जी रतहा है .....

    बहुत कमाल की रचना है ... आज के परिवेश में यथार्थ ....

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  7. बहुत अच्छे भाव हैं ग़ज़ल के ।
    अच्छी रचना ।

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  8. तौल रहें रिश्ते को धन में,
    ऐसे भी चंडाल बहुत है,

    नही चाहिए पिज़्ज़ा-बर्गर,
    हमको रोटी-दाल बहुत है

    पढ़े-लिखे भी शून्य बनें हैं,
    ऐसे घोंचूलाल बहुत है,
    एक से एक बढ कर अच्छा शेर है। समाज की विसंगतियों पर आपकी नज़र हर रचना मे नज़र आती है
    बहुत बहुत आशीर्वाद।

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  9. vinod ji..100 aane sach hai..wah!

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  10. वाकई बहुत अच्छी गजल है. इतनी जल्दी इतनी तरक्की..! सहसा विश्वास नहीं होता है.

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  11. वाकई बहुत अच्छी गजल है. इतनी जल्दी इतनी तरक्की..! सहसा विश्वास नहीं होता है.

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  12. वह बहुत अच्छी गजेल..
    धमाल ही धमाल है.

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  13. बहुत सुन्दर ग़ज़ल

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  14. हमको तो रोटी-दाल बहुत है

    पर इस रोटी को हासिल करने निकलो तो
    लोगों के सवाल बहुत हैं
    बहुत सुन्दर रचना

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  15. धन से मालामाल बहुत है,पर दिल से कंगाल बहुत है,
    इस दुनिया का हाल न पूछो,इसके बिगड़े चाल बहुत है,
    लाजवाब!!!! हर एक शब्द नपा तुला हर एक बात सच

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  16. बहुत ही अच्छी सार्थक अभिव्यक्ति ,शानदार और कुछ सोचने को प्रेरित करती पोस्ट...

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  17. नही चाहिए पिज़्ज़ा-बर्गर,
    हमको रोटी-दाल बहुत है.

    सुंदर भाव!

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  18. नहीं चाहिए पिज्जा-बर्गर
    हमको रोटी दाल बहुत है

    बहुत खूब......सर्वथा नया प्रयोग ....अच्छा लगा ....!!

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  19. विनोद भैया !
    आज तो तुम्हारी पहली ६ लाइन पढ़ कर एक विचार मन में कौंधा सो लिख रहा हूँ आगे पढने से पहले !

    "आज तो चमत्कृत कर दिया विनोद ! जबरदस्त प्रतिभाशाली यह लड़का, बहुत आगे जायेगा !
    दिली शुभकामनायें !"

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  20. आज से तुम्हें फालो कर रहा हूँ विनोद ...

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  21. एकदम नए प्रयोग के साथ ...बहुत अच्छी व् सुंदर रचना...

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  22. बहुत कमाल की ग़ज़ल कही है आपने...वाह...दाद कबूल करें...
    नीरज

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  23. विनोद कुमार पांडेय जी
    कमाल का लिखते हो यार आप तो !

    धन से मालामाल बहुत है
    पर दिल से कंगाल बहुत है


    क्या मत्ला लिखा है !
    वाह !!
    तौल रहे रिश्ते को धन में
    ऐसे भी चंडाल बहुत है

    तल्ख़ी के ये तेवर ?
    मान गए आपको !!
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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