चार दिन की जिंदगी है, जिये जा
मौज सारे जिंदगी के, लिये जा
सभ्यता के नाम पर मॉडर्न हो
छोड़ कर ठर्रा विदेशी पिये जा
क्या पता कल हो न हो,ये सोचकर
सब्र को हर रोज फाँसी, दिये जा
बाप ने जितना बचा कर है रखा
छान-घोंट सब बराबर किये जा
हादसों का है शहर तुम क्या करोगे
देख कर बस होंठ अपने सिये जा
बहुत अच्छी कविता।
ReplyDeleteहिन्दी की प्रगति से देश की सभी भाषाओं की प्रगति होगी!
वाह विनोद, मज़ा आ गया!
ReplyDeleteरोचक। मनोरंजक।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिख रहे हो भैया ...बढ़िया व्यंग्य ! शुभकामनाएं
ReplyDeleteहास्य में भी व्यंग है ..बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteअति सुन्दर प्रस्तुति के लिये, आप का धन्यवाद!!
ReplyDeletewonderful creation !
ReplyDeleteसही व्यंगात्मक हास्य ।
ReplyDeleteshaabaash.mazaa aa gayaa. haasya bhi hai aur vyangya bhi aisa kam hota hai ki dono kasantulan banaarahe. sundar kavita ke liye badhaai.
ReplyDeleteपढ़ कर अच्छा लगा . एक सीधी सादी नाक की सीध में चलती रचना.
ReplyDeleteबाप ने जितना बचा कर है रखा
ReplyDeleteछान-घोंट सब बराबर किये जा ..
बहुत खूब ... ग़ज़ब के हास्य और व्यंग का मिश्रण है विनोद जी .....
acchi hai
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