Saturday, September 25, 2010

आधुनिक बदलाव का एक और रूप---एक व्यंग रचना---विनोद कुमार पांडेय

बिगड़े युवाओं के बारे में बहुत कुछ कह चुका हूँ..अब एक हास्य-व्यंग रचना दूसरी पक्ष में जाती हुई...कुछ विशेष के लिए ही है अतः सभी से अनुरोध है, इसे अन्यथा ना लें और इसे किसी विवाद का कारण भी
ना
बनाएँ..बस रचना का आनंद लें..और आशीर्वाद दें........धन्यवाद

धन से तो बिगड़ी-बिगड़ी हैं,मन से भी बिगड़ी हैं
चार हाथ लड़कों से आगे,कुछ लड़की भी खड़ी हैं

कैसा ये बदलाव हो रहा,कुछ अच्छा,कुछ बुरा
रख देंगी सब बदल कर,ज़िद पे अपने अड़ी हैं

फैशन के इस दौर में, डूब गई इतनी
झूठी चकाचौंध ले संग, पंख लगा कर उड़ी हैं

मम्मी-पापा ढूढ़ रहें हैं हिन्दुस्तानी दूल्हा
जिनकी बिटिया बीयर-बार में टल्ली हुई पड़ी हैं

नये जमाने के रंगों में,यह भी भुला दिया
उनके सपनों से भी महँगी,पापा की पगड़ी है

16 comments:

  1. हाँ जी , आज कल ऐसा भी देखने में आता है ...सही लिखा है ...

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  2. बहोत ही अच्छी लगी आज की पोस्ट...

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  3. वास्तविक चित्रण हमारी नंगई का ! शुभकामनायें विनोद भैया!

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  4. अरे वाह आप तो सच्ची सच्ची बाते लिखने लग गये जी... लेकिन इस मै कसुर बच्चो का नही मां बाप का हे. धन्यवाद इस सुंदर रचना के लिये

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  5. मम्मी-पापा ढूढ़ रहें हैं हिन्दुस्तानी दूल्हा
    जिनकी बिटिया बीयर-बार में टल्ली हुई पड़ी हैं

    हा हा हा ! बहुत खूब । सही कहा है ।

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  6. हमारा तो छोटा सा मिडिल क्लास सर्कल है , अभी तक तो ऐसी विरली हस्तियों से मुलाकात नहीं हुई। लेकिन सुना है कुछ माँ-बाप खुद में इतने व्यस्त हैं की संतान कहाँ बह रही है , उन्हें भान ही nahin hai.

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  7. मम्मी-पापा ढूढ़ रहें हैं हिन्दुस्तानी दूल्हा
    जिनकी बिटिया बीयर-बार में टल्ली हुई पड़ी हैं

    नये जमाने के रंगों में,यह भी भुला दिया
    उनके सपनों से भी महँगी,पापा की पगड़ी है

    विनोद जी जो आपने लिखा वो भी एक सच्चाई है इसमें नाराज़गी कैसी .....?
    और आपने बहुत खूब लिखा ...

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  8. मम्मी-पापा ढूढ़ रहें हैं हिन्दुस्तानी दूल्हा
    जिनकी बिटिया बीयर-बार में टल्ली हुई पड़ी हैं
    जील ने सही कहा है। कुछेक के कारण सभी लडकियो के बारे मे ऐसा नही कहा जा सकता। रचना बहुत अच्छी है। होता है ये सब मगर कहीं कहीं। शुभकामनायें

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  9. बीयर-बार में टल्ली. हा हा.

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  10. भई यह तो बहुत गम्भीर रचना है ।

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  11. वाह! बहुत खूब लिखा है आपने ! सच्चाई को बड़े ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! शानदार रचना!

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  12. मम्मी-पापा ढूढ़ रहें हैं हिन्दुस्तानी दूल्हा
    जिनकी बिटिया बीयर-बार में टल्ली हुई पड़ी हैं
    सच ही कह रहे हैं आप तो चलो मैं इस कविता में ही टल्ली हो जाती हूँ

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  13. नये जमाने के रंगों में,यह भी भुला दिया
    उनके सपनों से भी महँगी,पापा की पगड़ी है ..

    हर शेर सच का आईना है .... आज समाज की दिशा बदल गयी है .... और ये अंतिम लाइने तो कमाल हैं विनोद जी ... बाप की पगड़ी आज सारे आम उछाली जाती है ...

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  14. धन से तो बिगड़ी-बिगड़ी हैं,मन से भी बिगड़ी हैं
    चार हाथ लड़कों से आगे,कुछ लड़की भी खड़ी हैं

    Kya khub likha hai aapne .....!
    aaj ke dour ki sunder abhivyakti ke liye hardik badhai

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  15. विनोद जी,

    आनंद लिया जी खूब लिया.........
    आपकी रचना में भी और अपने चारो तरफ फैली ऐसी ही हकीकतों का भी...........

    वास्तविकता को उजागर कराती आपकी यह रचना सचमुच आशीर्वाद के काबिल है............

    हार्दिक बधाई......

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  16. शब्दबाण अपने-अपनों के
    सीने के उस पार हो गये
    क्या बात कही है विनोद जी .... आज कल दुश्मनों की ज़रूरत नही होती .. अपने ही बहुत हैं मारने के लिए ...

    जीओ मगर जीने मत देना
    जीने के आधार हो गये
    हर कोई आयेज जाना चाहता है ... चाहे दूसरों की लाश पर चढ़ ही क्यों न हो .... क्या बात कही है ...


    नवयुग की परिवार प्रणाली
    अम्मा-बाबू भार हो गये
    और इस शेर ने तो मजबूर कर दिया ... यथार्थ के बहुत करीब है ... घर घर की हक़ीकत बन गया है ये दौर ....

    सलाम है आपकी लेखनी को ... इतनी कमाल की ग़ज़ल लिखी है ... हर शेर जीवन की सच्चाई से रूबरू कराता है ....

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