आस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री जॉन हॉवर्ड के उपर जूते का उछाला जाना जूते उछाले जाने की परंपरा का एक बेजोड़ नमूना हैकुछ साल पहले एक इराक़ी पत्रकार नें अमेरिकी राष्ट्रपति के उपर जूता फेंककर इस रिवाज की सार्वजनिक शुरुआत की और आज यह इतना लोकप्रिय हो गया है कि अब तक ३-४ घटनाएँ सुर्ख़ियों में हैं यहाँ तक कि भारत में भी इस प्रणाली की जोरदार उद्घाटन हो चुकी है
अब अगर इस व्यवस्था की समीक्षा करें तो हम पाएँगे की जूते उछालने की प्रक्रिया एक प्रकार की नाराज़गी व्यक्त का तरीका है जिसमें फेकनें वाला और जिसके उपर फेंका जाता है दोनों लगभग-लगभग सुरक्षित रहते है फ़ायदे की बात यह है कि जूता फेंकने वाला व्यक्ति झटपट चर्चा में आ जाता है और वैसे भी सुर्ख़ियों में आना भला कौन नही चाहता अब वो स्थिति तो रही नही कि नेक काम से आदमी को जाना जाय तो आदमी ने कुछ दूसरा रास्ता ढूढ़ना शुरू कर दिया बस इसी जद्दोजहद में जूता फेंको खेल की शुरुआत हुई जो दिन पर दिन अपने लोकप्रियता की शिखर की ओर बढ़ती जा रही है
इस जूता फेंको खेल की सबसे बड़ी खास बात यह है कि जूता फेंकने वाला व्यक्ति तो बेइज़्ज़ती करने के उद्देश्य से फेंकता है परंतु सामने वाला व्यक्ति तनिक भी बेइज़्ज़ती महसूस नही करता बल्कि उस व्यक्ति को माफ़ कर देता हैवैसे ये सारी बातें ऊपर की खबर है अगर मीडिया से छिपकर उस जूता फेंकने वाले व्यक्ति के साथ कोई कार्यवाही की जाती हो उसके के बारे में हम कुछ नही कह सकते
चाहे कुछ भी हो एक बात साफ है दिन पर दिन राजनेताओं पर जूता फेंकने की घटना बढ़ती जा रही है जिससे राजनेताओं को जूते का ख़तरा बढ़ गया है अगर इसी तरह सब कुछ चलता रहा तो एक दिन ऐसा भी हो सकता है कि सभागार और असेंबली में लोगों को जूते पहन कर जाने की अनुमति ही ना दी जाएँ और गेट के बाहर दो-चार बॉडीगॉड पब्लिक के जूतों की निगरानी में ही लगे रहें
अगर इस प्रकार हो गया तो प्रशासन की एक बड़ी संख्या इस कार्य के लिए भी नियुक्त कर दी जाएगी की जहाँ कही नेता जी भाषण देने जाए वहाँ कोई भी जूता- चप्पल वाला आदमी दिखाई ना देक्योंकि जूता फेंकने से भले ही किसी प्रकार की जान-माल की नुकसान ना हो पर अपने राजनयिक की बेइज़्ज़ती तो है ही और इस प्रकार सरेआम इज़्ज़त उतार लेना अच्छी बात नही है अगर जनता नाराज़ है तो चाहे अकेले में नाराज़गी व्यक्त कर लें भले मौका मिलने पर दो-चार जूते मार लें पर इस प्रकार भरी भीड़ में नेता जी के ऊपर जूते ना उछाले क्योंकि सब बात तो एक जगह सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस घटना का इंटरनेशनल न्यूज़ भी बनता है जिससे पूरे विश्व को पता चल जाता है कि फलाँ देश के नेता के ऊपर जूते फेंके गये अकेले में निपट लेने से कम से कम यह स्थिति तो नही रहेगी
Ha,ha,ha!!
ReplyDeletegudd...
ReplyDeleteयदि आप किसी स्थिति में हैरान होते हैं तो शीघ्र ही परेशान भी हो जाएंगे। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
ReplyDeleteविचार-नाकमयाबी
अभी तो जूता फेंकना एक घटना बन जाता है ,सभ्यता का प्रतीक नहीं माना जाता , परन्तु ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब जूता ..........इस रिक्त स्थान का अभिन्न अंग होगा .....!
ReplyDeleteसार्थक विचार
लेकिन बाबा बेइज्जती तो उस की होती हे जिस की कोई इज्जत हो, ओर यह इज्जत नाम की चीज इन लोगो के पास नही हे. कासिम का जुता पडना चाहिये इन को.
ReplyDeleteधन्यवाद इस सुंदर लेख के लिये
हाहाहा... बहुत बढिया. जानते हैं विनोद जी, जब बुश पर जूता फ़ेंका गया था, तब जूते से ऐसी दहशत हो गई थी, कि यदि कोई मेरे ऑफ़िस में अन्दर आने से पहले, जूते उतारने की कोशिश करता था, तो मैं उसे जूते उतारने से मना कर देती थी :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व्यंग्य. प्रकाशन के लिये मुबारकबाद
ReplyDeleteयहाँ भी जूता फेंकने वालों की संख्या कम नहीं है विनोद भैया !
ReplyDeleteजब कहीं कोई सुनवाई नहीं तो जूता प्रकरण बहुत काम की चीज़ है ...
ReplyDeleteबढ़िया व्यंग प्रसंग प्रस्तुत किया है ।
ReplyDeleteउमदा व्यंग। गद्य और पद्य दोनो मे माहिर हैं विनोद जी। बहुत अच्छा लगा बधाई आपको।
ReplyDeleteBahut umda vyang.... prasangik vichar parstut kiye hain aapne....
ReplyDelete.
ReplyDeletebadhiya kataaksh !
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Vinod ji..
ReplyDeleteAapka ye kataksh bahut achha raha.
Apki dusri posts bhi padhi ...vo bhi bahut hi achhi hai .
Apke blog par aakar bahut hi achha lagaa.
हाहाहा... बहुत बढिया
ReplyDeleteबधाईयां सर जी
ReplyDeleteताज़ा पोस्ट विरहणी का प्रेम गीत