1) बनते थे मेरे यार, आते नही नज़र
भूले सभी करार,आते नही नज़र
पहले तो रोज मिलते थे,होती थी हाल-चाल
जब से लिए उधार, आते नही नज़र
2) नफ़रत पनप रही है, अपनों की आड़ में
दुनिया लगी पड़ी है,अपने जुगाड़ में
कुछ ने बना लिया है,अब मूल-मंत्र ये
अपनी कटे मज़े में,सब जाएँ भाड़ में
3) गायब थे जो कल तक, वहीं मशहूर हो गये
धोखे-फरेब अब नये,दस्तूर हो गये
फैशन का भूत सबके, सर पर सवार है
बच्चें भी खिलौनों से बहुत दूर हो गये
बहुत खूब ..............आपकी व्यंग्यात्मक शैली अच्छी लगी
ReplyDeleteबहुत खूब ..............आपकी व्यंग्यात्मक शैली अच्छी लगी
ReplyDeleteबढ़िया मुक्तक ..
ReplyDelete@बनते थे मेरे यार, आते नही नज़र
ReplyDeleteभूले सभी करार,आते नही नज़र
पहले तो रोज मिलते थे,होती थी हाल-चाल
जब से लिए उधार, आते नही नज़र
बहुत खूब ...
बढ़िया मुक्तक है । विशेषकर दूसरा और तीसरा ।
ReplyDeleteबहुत बढिया मुक्तकए लगे जी धन्यवाद
ReplyDeleteनफ़रत पनप रही है, अपनों की आड़ में
ReplyDeleteदुनिया लगी पड़ी है,अपने जुगाड़ में
कुछ ने बना लिया है,अब मूल-मंत्र ये
अपनी कटे मज़े में,सब जाएँ भाड़ में
विनोद जी नमस्कार ... आप तो हर विधा में अपना मूल मंत्र नही छोड़ते ... यही आपकी खूबी है ...
यहाँ ही लाजवाब व्यंग है, सच्चाई है आज की जिसको ग़ज़ब पेश किया है आपने ...
नफ़रत पनप रही है, अपनों की आड़ में
ReplyDeleteदुनिया लगी पड़ी है,अपने जुगाड़ में
कुछ ने बना लिया है,अब मूल-मंत्र ये
अपनी कटे मज़े में,सब जाएँ भाड़ में ...
So true!
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अच्छे अर्थपूर्ण मुक्तक.... व्यंग का पुट अच्छा बन पड़ा है....खूब ..............
ReplyDeleteteeno muktak bahut achchhe lage ..
ReplyDeleteWow... Mazaa aa gaya :)
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteशुभकामनायें !!
kya khoob likha hai sir.
ReplyDeletepadhkar aananad aa gaya ..
badhayi
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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
bahut badhiya vyang...badhai
ReplyDeletevinod ji
ReplyDeleteaapko pahli baar padha bahut acha laga aapke muktak bahut lajawab hain