Friday, January 6, 2012

रहे इश्क की इंतेहा चाहता हूँ-----(विनोद कुमार पांडेय)

मित्रों,एक लंबे अंतराल के बाद,एक ग़ज़ल के साथ फिर से ब्लॉग-जगत में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा हूँ|आप सब के प्रेम और आशीर्वाद का सदा आभारी रहूँगा|और उम्मीद करता हूँ यह प्रेम निरंतर बना रहेगा| धन्यवाद...

रहे इश्क की इंतेहा चाहता हूँ
वफ़ा कर रहा हूँ वफ़ा चाहता हूँ

बहुत पैरवी की,न हासिल हुआ कुछ
मुक़दमा कोई अब नया चाहता हूँ

इरादे न अब तक समझ पाएँ उनके
उन्ही से अब एक फ़ैसला चाहता हूँ

इशारों में बातें नही मुझको आती
मैं शायर हूँ अपनी ज़ुबाँ चाहता हूँ

नही मन को भाए, ये दुनिया के मेले
ख्यालों में डूबी फ़िज़ा चाहता हूँ

चकोरी से ज़ज्बात दिल की कहूँ मैं,
कि अपना अलग आसमाँ चाहता हूँ

दुखे दिल का किसी का जो मुझसे कभी तो
उसी पर मैं उसकी सज़ा चाहता हूँ

न रुपया,न पैसा,न सोना न चाँदी
मिले माँ की हरदम दुआ चाहता हूँ

8 comments:

  1. चकोरी से ज़ज्बात दिल की कहूँ मैं,
    कि अपना अलग आसमाँ चाहता हूँ

    बहुत खूब

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  2. इशारों में बातें नही मुझको आती
    मैं शायर हूँ अपनी ज़ुबाँ चाहता हूँ

    शायर तो अब आप बन ही गए हैं ।
    लेकिन लिखते रहिये । इतनी लम्बी जुदाई सही नहीं ।
    शुभकामनायें ।

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  3. चकोरी से ज़ज्बात दिल की कहूँ मैं,
    कि अपना अलग आसमाँ चाहता हूँ

    -गज़ब विनोद....वाह!!!

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  4. इरादे न अब तक समझ पाएँ उनके
    उन्ही से अब एक फ़ैसला चाहता हूँ

    वाह .. गज़ब की बात कही है विनोद जी ...
    आपका स्वागत है दुबारा पारी खेलने के लिए ... आशा है सब ठीक चल रहा होगा ...
    आपको नया साल बहुत बहुत मुबारक हो ...

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  5. क्या खूब कही है विनोद आपने.
    सच में मन भीगा, मन प्रसन्न हुआ.

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  6. बेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा रचना ! बधाई !

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  7. bahut khoob vinod ji. nav varsh kee hardik shubhkaamna.

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