जिनकी अम्मा रो रहीं,देख पूत के काज.
मलमल का कुर्ता पहिन,घूम रहें हैं गाँव,
खबर नही क्या चल रहा,आटा-दाल का भाव.
आलस में डूबे हुए,इतने हैं उस्ताद,
घर में आते हैं मियाँ,दिन ढलने के बाद.
बीड़ी व सिगरेट में,फूँक दिए कुल देह,
बेच दिए बर्तन कई,घर में मचा कलेह.
नही कोई परवाह इन्हें,घर हो या परिवार,
चाहे भैया फेल हो,या हो बहिन बीमार.
जिंदा जब तक बाप है,तब तक है आराम,
फ्यूचर इनका क्या कहें,इज़्ज़त राखे राम.
आलस में डूबे हुए,इतने हैं उस्ताद,
ReplyDeleteघर में आते हैंमियाँ,दिन ढलने के बाद.
बीड़ी व सिगरेट में,फूँक दिए कुल देह,
बेच दिए बर्तन कई,घर में मचा कलेह.
बहुत सही चित्रण किया....
सच.... इज्ज़त राखे राम.....
आलस में डूबे हुए,इतने हैं उस्ताद,
ReplyDeleteघर में आते हैंमियाँ,दिन ढलने के बाद.
बीड़ी व सिगरेट में,फूँक दिए कुल देह,
बेच दिए बर्तन कई,घर में मचा कलेह.
वाह क्या बात है और
मलमल का कुरता पहन घूम------
सटीक अभिव्यक्ति । स्माज का सजीव चित्र बधाई आपको
कुछ नहीं बहुत सारे पाले हुए है इस देश में पांडेय जी, ठोस प्रहार करती रचना !
ReplyDeleteजिंदा जब तक बाप है,तब तक है आराम,
ReplyDeleteफ्यूचर इनका क्या कहें,इज़्ज़त राखे राम.
विनोद पाण्डेय जी!
बहुत सुन्दर दोहे लिखें हैं आपने!
वर्तमान का सही नक्शा खींच दिया है!
सच में पाण्डेय जी हमेशा की ही तरह समाज की कडवी सच्चाई पर नजर रखते हुए बेहतरीन रचना हर लायन अपने में एक बड़ी भारी विषमता समेटे हुए
ReplyDeleteसादर
प्रवीण पथिक
बहुत बढिया रचना .. वैसे कुपुत्र तो समाज में हमेशा से हैं !!
ReplyDeleteमलमल का कुर्ता पहिन,घूम रहें हैं गाँव,
ReplyDeleteखबर नही क्या चल रहा,आटा-दाल का भाव.
बहुत सुंदर जी आप की कविता से सहमत है
जिंदा जब तक बाप है,तब तक है आराम,
ReplyDeleteफ्यूचर इनका क्या कहें,इज़्ज़त राखे राम.
वाह क्या बात है. शानदार व्यंग्य रचना.
बहुत बढ़िया वाकई ऐसा ही हो रहा हैं ...बहुत बढ़िया रचना बधाई पांडेजी
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा व्यंग है...सही समय पर नहीं चेतने वाले नौजवानों के लिए...
ReplyDeleteअभिव्यक्ति तो ऐसी।
ReplyDeleteफेसबुक एवं ऑर्कुट के शेयर बटन
बेहतरीन प्रस्तुति,धन्यवाद.
ReplyDeleteभैय्या कुछ ही है न.....
ReplyDeleteक्योकि यहाँ हम भी हैं......
एक सुन्दर कविता और बढ़िया कटाक्ष...
काश इसका असर भी हो....लोगो पर....
बीडी व् सिगरेट में , बेच दिए कुल देह
ReplyDeleteबेच दिए बर्तन कई , घर में मचा कलेह
सही चित्रण.....ऐसे ही पूत कपूत होते हैं ..... हमारे बगल में ही है हर दिल घर का कोई न्कोई सामान गायब होता है ......!!
बहुत सुन्दर कविता विनोद जी !
ReplyDeleteजिंदा जब तक बाप है,तब तक है आराम,
ReplyDeleteफ्यूचर इनका क्या कहें,इज़्ज़त राखे राम.
विनोद जी आपके दोहे बिल्कुस सटीक हैं आज के कुछ नौजवानों पर ........ बहुत ही अच्छा व्यंग है ....
वाह बहुत सुन्दर कविता लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी! इस उम्दा कविता के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा ।
ReplyDeleteजिन्दा जब तक बाप है, तब तक है आराम
ReplyDeleteफ्यूचर इनका क्या कहें,इज्जत राखे राम.
...वाह.
अच्छी फुलझड़ियाँ हैं.....तेवर और लफ्ज़ दोनों ही अच्छे हैं दोस्त...लिखते रहिये.
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
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