Sunday, January 17, 2010

जब आप सुधर गये, तो एक दिन वो भी सुधर जाएगा.

पिछले कुछ दिनों से गंभीर सामयिक रचनाओं के बाद आज फिर से अपने पुराने मजाकिया अंदाज में एक हास्य से भरी मजेदार घटना प्रस्तुत कर रहा हूँ और साथ ही साथ उम्मीद करता हूँ कि आपको पसंद भी आएगी..धन्यवाद..

फर्स्ट स्टैंडर्ड के एक बालक को,
आधुनिकता के सर्वोच्च सुचालक को,
पिता जी अँग्रेज़ी पढ़ा रहे थे,
अपने महाज्ञानी बच्चे का ज्ञान बढ़ा रहे थे.

हिन्दी से अँग्रेज़ी का ट्रांसलेशन समझा रहे थे,
बीच बीच में रिमोर्ट का बटन भी दबा रहे थे,
टेलीविजन के बड़े शौकीन थे,
शायद इसीलिए कुछ ऐसे सीन थे,

पढ़ाई के इसी दौर में,
अपने नटखट बच्चे से फिर पूछे,
"पानी ठंडा है"इसका अँग्रेज़ी अनुवाद बताओ,
सही तरीके से ट्रांसलेशन करके दिखलाओ,
बच्चे ने पहले तो अपनी ज़ोर लगायी,
पर बात कुछ बन नही पायी,
थोड़ी देर सोचने के बाद अचानक ही,
उसके दिमाग़ की बत्ती जली,
चेहरा कुछ इस कदर खिला,
जैसे कोई खजाना मिला,
मुँह खोला और ज़ोर से बोला,
पानी मतलब वाटर और ठंडा मतलब कोकाकोला,
इसलिए सही ट्रांसलेशन हुआ,"वॉटर ईज़ कोकाकोला",

यह सब टेलीविज़न का प्रभाव हैं,
पिताजी डरे,
बेटे के गाल पर दो तमाचा धरे,
फिर बीवी को बुलाए,समझाए,
कि घर में अब टी. वी. खुलने नही पाए,
यह टी. वी. ही है,जो इसे बिगाड़ रहा है,
मैं अँग्रेज़ी पढ़ा रहा हूँ,
और ई ससुरा डायलॉग झाड़ रहा है.

बच्चा है,सब ठीक हो जाएगा,
बीवी समझाई,
पर इनकी समझ में कुछ नही आई,
बातों बातों में बीवी ने,
एक और छुपी बात बोल दी,
इनकी भी एक पोल खोल दी,
बोली एक समय आप भी तो बिगड़े थे,
मैं नही जानती आप ने ही बताए थे,
सेकेंड स्टॅंडर्ड में रामायण के लेखक,
रामानंद सागर लिख कर आए थे,
क्या यह टेलीविज़न का प्रभाव नही था?,
और याद है कुछ और भी तो खास किए थे,
भारत का दिल दिल्ली की जगह वोल्टास किए थे,

आख़िर बेटा है आपका,
बाप पर ही जाएगा,
जब आप सुधर गये,
तो एक दिन वो भी सुधर जाएगा,

बोलती बंद हो गयी पातिदेव जी की,
आगे कुछ नही बोल पाए,
अपने दिन याद किए,
और मुस्कुराते हुए बाहर की ओर हो लिए.

23 comments:

  1. वाकई ,बहुत आनंद आया,आभार.

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  2. पप्‍पू का बचपन है यह
    तो
    पप्‍पू इसमें पचपन का हुआ।

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  3. बहुत सही लिखा है .. 1990 के दशक से ही टीवी का हमारे दिलोदिमाग में नशा छाया है .. जब हम नहीं बचे तो बच्‍चे कैसे बचेंगे ??

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  4. वाह विनोद भाई वाह , कितनी सरलता से आपने इतनी खूब बात कह दी , बेशक टीवी का असर दोनों पर था बाप पर भी बेटे पर भी मगर रामायण की जगह कोकाकोला ने सारी बात कह दी
    अजय कुमार झा

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  5. बाह जी! बहुत खूब!! मज़ेदार प्रस्तुति।

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  6. 'मजाकिया अंदाज' वाली हलकी-फुलकी रचना अच्छी लगी. विनोद जी धन्यवाद्.

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  7. Kaash aisee boltee ham bhi band kar saken!

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  8. बहुत खुब बेटा आखिर बाप पर जायेगा,पडोसी पर थोडे ही:)

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  9. ठंडा मतलब कोकाकोला...

    भारत का दिल वोल्टास...

    विनोद भाई एड कंपनियों को कहीं आपने तो ही नहीं ये ज़़ोरदार स्लोगन दिए थे...

    जय हिंद...

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  10. विनोद जी एकदम सही बात कही रचना के माध्यम से, यही घुन तो लग गया आज की पीढी के दिमाग में जो इतनी सारी आत्महत्या की घटनाये हो रही है !

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  11. वाह वाह नये अन्दाज़ मे आधुनिकता की पोल बहुत अच्छे से खोली है। आज कल के बच्चों के लिये सही म ठँडे पानी का अर्थ् ही कोका कोला है। बीवी की बात सही है हम ही बच्चों को सही संस्कार नहीं देते जिस दिन हम सुधर जायेंगे बच्चे भी सुधर जायेंगे। बहुत सटीक व्यंग है। धन्यवाद और शुभकामनायें। आपका ये प्रयास बहुत अच्छा लगा समाज मे फैली कुरितियों के खिलाफ एक जंग छेडना। बधाई

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  12. बाह जी! बहुत खूब..बहुत आनंद आया

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  13. दूरदर्शन के प्रभाव से ग्रसित बच्चों की बात को हलके फुलके सुन्दर अंदाज़ में कहा है....
    हास्य रचना पढ़ कर आनंद आया

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  14. बहुत ही बढ़िया...अच्छा हास्य मिश्रित व्यंग है
    .पर कोकाकोला तो ठंढा का पर्याय बन ही गया है...एक बार मैंने समोसे ऑर्डर किये...और पूछा,ठंढा है?.दुकानदार ने कहा कहा,'हाँ'....मुझे अच्छा भी लगा,अपने समोसे को ठंढा बता रहा है,बहुत ईमानदार दुकानदार है...पर समोसे गरम थे...जब मैंने पूछा,'तुमने तो कहा ठंढा है"..तो वह उलझन में बोला,'हाँ है ना..क्या चाहिए,कोकल कोला,थम्स अप?'

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  15. आनंद आ गया विनोद जी ......... सब टी वी का कसूर है .......... बहुत अच्छा हास्य है आपकी रचनाओं में ........

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  16. बहुत सुन्दर और मज़ेदार रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी ! इस लाजवाब और बेहतरीन रचना के लिए बधाई!

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  17. वाह, राकेश भाई।
    हास्य पर अच्छी पकड़ है।
    हास्य भी और सन्देश भी।
    लगे रहो।

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  18. विनोद जी कमाल करके...नया रूप भी पसंद आ गया। अपनु का भाई छा गया।

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  19. मित्र सबसे पहले तो माफ़ी बहुत दिन से आप के ब्लॉग पर नहीं आ प रहा हूँ ये मेरे खराब स्वस्थ के कारण हुआ ,,, आधुनिक पीढ़ी पर किस कदर बिगड़ रही है इस पर आप हमेशा ही अपनी कविता की अमूल्य लाय्नो के द्वारा कताक्स करते रहते है ,, आज समाज पर टी वी में दिखाए जा रहे भर्मित(मै तो इन्हें मूर्ख बनाए बाले कहूँगा ) विज्ञापनों का क्या असर पड रहा है आप ने हास्य हास्य में ही तीखी चोट की है
    धन्यवाद
    सादर प्रवीण पथिक
    9971969084
    Rrgards

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  20. आपको और आपके परिवार को वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की हार्दिक शुभकामनायें!

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