वो बूढ़ा इंसान नही है,
वो तो इक भगवान है.
जो यह बात समझ न पाया,
वो पागल-नादान है|
बचपन से लेकर के अब तक,
हर पल साथ तुम्हारे है,
जब से तुम दुनिया में आए ,
हर पल तुम्हे संवारें है,
सूरज से तप रही धूप में,
वो शीतल परिधान है |
तू कुछ पा जाए इस खातिर
उसने सब कुछ खोया था,
यह मत पूछो कब-कब तेरी,
तकलीफ़ों पर रोया था,
चँदा-सूरज भी गवाह है,
लेकिन तू अंजान है|
कहते हैं उपर वाले ने,
हमको यह आकार दिया.
मगर धरा पर इस बूढ़े ने,
हमें सहज साकार किया.
गर्व हमें आता है उन पर,
वो अपना अभिमान है|
आज समय नें ली है करवट,
रिश्ते-नाते टूट रहे,
पैसों की माया के आगे,
अपने ही अब रूठ रहे,
आज आदमी की नज़रों में,
मानव इक सामान है |
जिसनें बेटे को समझाया,
मर्म मान-सम्मान का.
राह बताया था नेकी का,
धर्म-कर्म ईमान का.
आज वही बेटा कहता है,
बाबू जी बेईमान है |
दिन दूनी औ रात चौगुनी,
तुमने तो विस्तार किया,
मगर याद उनको रखना तुम,
जिसने ये आधार दिया.
भूल नही जाना उसको तुम,
जो तेरी पहचान है|
दुनिया का ऐसा रिवाज है,
सबको बूढ़ा होना है,
जब तक साँसे है यह जीवन,
फिर तो सबको सोना है,
अभी जाग जा रे तू बंदे,
तेरे भी संतान है|
"जरा, मरण और व्याधि के, बन्धन से जो दूर।
ReplyDeleteकण-कण में बसता मगर, जग से रहता दूर।।"
सार्थक व सराहनीय प्रस्तुती ,इस जीवन का आधार ही है एक हाथ दे तो दुसरे हाथ ले ....इसलिए कर्तव्य को कभी नहीं भूलना चाहिए ...
ReplyDeleteजीवन के सत्य को बताती सुन्दर रचना ....पिता की अहम भूमिका होती है...इसका स्मरण करती अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteAap jaisa putr jis pita ka ho uska jeevan saarthak hai!Warna jawani me sab bhool jate hain,ki,budhapa ek din aanaa hee aana hai!
ReplyDeleteइस उम्र में तुम्हारी यह दुर्लभ संवेदनशीलता समाज के लिए एक वरदान है विनोद ! जैसे तुम हो वैसा ही परिवार में आगे आने वाली पीढियां होती है ...खुशकिस्मत है तुम्हारे माता पिता जिन्होंने तुम जैसा बेटा पाया ! शुभकामनायें भैया !
ReplyDeleteउत्तम , सार्थक रचना । बढ़िया प्रस्तुति । बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसार्थक
प्रेरक रचना के लिये आभार
प्रणाम
अच्छी रचना ,बधाई ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteविनोद जी
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामनाएं !
अनेक बार मैं आपके यहां आ'कर भी सतही अवलोकन कर के ही लौट गया शायद …
आज मैंने छंद पर आपकी पकड़ को आंका ।
आपकी रचनाओं में लयात्मकता है ,
गति , यति , गेयता , रंजकता सब कुछ है ।
शिल्प - सौष्ठव , भाव , शब्द चयन में और सजगता ले आएं , बस …
देखें -
जिसनें बेटे को समझाया,मर्म मान-सम्मान का.
पथ दिखलाया था नेकी का,धर्म-कर्म ईमान का.
आज वही बेटा कहता ,बाबू जी बेईमान है
दिन दूना औ' रात चौगुना,तुमने तो विस्तार किया,
भूल न जाना उन्हें , जिन्होंने स्वयं तुम्हें आधार दिया.
रखना याद , तुम्हारी जिनसे इस जग में पहचान है
ठीक है या … ?
बहुत अच्छी संभावनाएं हैं !
लेकिन बंधु , ता'रीफ़ का उल्टा असर नहीं आना चाहिए ।
सद्भाव सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
पाण्डेय जी,
ReplyDeleteआप बधाई के पात्र हैं..... सन्देश देती हुई आपकी रचना चेता भी देती है के बेटा तुम्हारे भी बेटा है!
व्हाट यू सो, सो शैल यू रीप!
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फिल्लौर फ़िल्म फेस्टिवल!!!!!
जिंदगी की अटल और शास्वत सच्चाई को
ReplyDeleteबयान करता हुआ आपकी लेखनी से निकला
ये खूबसूरत गीत ... मन में कहीं घर कर गया है
मधुरिम लय और आकर्षक शैली/शिल्प में गुंथा हुआ
मनोरम गीत पढवाने के लिए आभार .
bahut sunder saarthak rachanaa hai aajakal ke sach ko bahut acche bhaav diye hain bhagavaan aapakee is samvedanaa ko banaaye rakhe| aasheervaad.
ReplyDeleteमंगलवार 10 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
bahut sundar peshkash...
ReplyDeleteMeri Nai Kavita padne ke liye jaroor aaye..
aapke comments ke intzaar mein...
A Silent Silence : Khaamosh si ik Pyaas
vinod ji..kavita ka rukh jis aur hai..uski priniti sukhad hai..sach ko aaina deti ek sundar rachna!
ReplyDeletevinod ji..kavita ka rukh jis aur hai..uski priniti sukhad hai..sach ko aaina deti ek sundar rachna!
ReplyDeletewahwa......
ReplyDeleteइस चेतावनी भरी कविता के लिए साधुवाद.
ReplyDeleteअरे वाह! इतनी प्यारी कविता पढ़ने से छूटी जा रही थी.
ReplyDelete..बधाई.
कितना प्यारा गीत रचा है विनोद आपने.. ऐसे गीत केवल सौम्य और सरल ह्रदय ही लिख पाते हैं...और इनकी रचना नहीं की जाती यह तो स्वयं झरते हैं एक निश्छल कवी की लेखनी से !
ReplyDeleteशुभकामनायें भैया !
एक और बहुत अच्छी रचना.
ReplyDeleteआप बहुत अच्छा लिखते हैं! बधाई.
satvachan... sadvachan..bahut bahdai ho apko.
ReplyDeleteआज समय नें ली है करवट,रिश्ते-नाते टूट रहे,पैसों की माया के आगे,अपने ही अब रूठ रहे,
ReplyDeleteआज आदमी की नज़रों में,मानव इक सामान है
सच कहा है विनोद जी ... अनुभव का ख़ज़ाना लिए घर के बूढ़े उचित सम्मान माँगते हैं ... इनका आदर होना ही चाहिए ....
सार्थक रचना । एक सशक्त पोस्ट |
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