Friday, August 6, 2010

वो बूढ़ा इंसान नही है,वो तो इक भगवान है.-----(विनोद कुमार पांडेय)

वो बूढ़ा इंसान नही है,
वो तो इक भगवान है.
जो यह बात समझ न पाया,
वो पागल-नादान है|



बचपन से लेकर के अब तक,
हर पल साथ तुम्हारे है,
जब से तुम दुनिया में आए ,
हर पल तुम्हे संवारें है,

सूरज से तप रही धूप में,
वो शीतल परिधान है |


तू कुछ पा जाए इस खातिर
उसने सब कुछ खोया था,
यह मत पूछो कब-कब तेरी,
तकलीफ़ों पर रोया था,

चँदा-सूरज भी गवाह है,
लेकिन तू अंजान है|


कहते हैं उपर वाले ने,
हमको यह आकार दिया.
मगर धरा पर इस बूढ़े ने,
हमें सहज साकार किया.

गर्व हमें आता है उन पर,
वो अपना अभिमान है|


आज समय नें ली है करवट,
रिश्ते-नाते टूट रहे,
पैसों की माया के आगे,
अपने ही अब रूठ रहे,

आज आदमी की नज़रों में,
मानव इक सामान है |


जिसनें बेटे को समझाया,
मर्म मान-सम्मान का.
राह बताया था नेकी का,
धर्म-कर्म ईमान का.

आज वही बेटा कहता है,
बाबू जी बेईमान है |


दिन दूनी औ रात चौगुनी,
तुमने तो विस्तार किया,
मगर याद उनको रखना तुम,
जिसने ये आधार दिया.

भूल नही जाना उसको तुम,
जो तेरी पहचान है|


दुनिया का ऐसा रिवाज है,
सबको बूढ़ा होना है,
जब तक साँसे है यह जीवन,
फिर तो सबको सोना है,

अभी जाग जा रे तू बंदे,
तेरे भी संतान है|

26 comments:

  1. "जरा, मरण और व्याधि के, बन्धन से जो दूर।
    कण-कण में बसता मगर, जग से रहता दूर।।"

    ReplyDelete
  2. सार्थक व सराहनीय प्रस्तुती ,इस जीवन का आधार ही है एक हाथ दे तो दुसरे हाथ ले ....इसलिए कर्तव्य को कभी नहीं भूलना चाहिए ...

    ReplyDelete
  3. जीवन के सत्य को बताती सुन्दर रचना ....पिता की अहम भूमिका होती है...इसका स्मरण करती अभिव्यक्ति ..

    ReplyDelete
  4. Aap jaisa putr jis pita ka ho uska jeevan saarthak hai!Warna jawani me sab bhool jate hain,ki,budhapa ek din aanaa hee aana hai!

    ReplyDelete
  5. इस उम्र में तुम्हारी यह दुर्लभ संवेदनशीलता समाज के लिए एक वरदान है विनोद ! जैसे तुम हो वैसा ही परिवार में आगे आने वाली पीढियां होती है ...खुशकिस्मत है तुम्हारे माता पिता जिन्होंने तुम जैसा बेटा पाया ! शुभकामनायें भैया !

    ReplyDelete
  6. उत्तम , सार्थक रचना । बढ़िया प्रस्तुति । बधाई।

    ReplyDelete
  7. बहुत सुंदर कविता

    ReplyDelete
  8. बेहतरीन
    सार्थक
    प्रेरक रचना के लिये आभार

    प्रणाम

    ReplyDelete
  9. अच्छी रचना ,बधाई ।

    ReplyDelete
  10. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  11. विनोद जी
    बहुत बहुत शुभकामनाएं !
    अनेक बार मैं आपके यहां आ'कर भी सतही अवलोकन कर के ही लौट गया शायद …
    आज मैंने छंद पर आपकी पकड़ को आंका ।
    आपकी रचनाओं में लयात्मकता है ,
    गति , यति , गेयता , रंजकता सब कुछ है ।
    शिल्प - सौष्ठव , भाव , शब्द चयन में और सजगता ले आएं , बस …
    देखें -
    जिसनें बेटे को समझाया,मर्म मान-सम्मान का.
    पथ दिखलाया था नेकी का,धर्म-कर्म ईमान का.
    आज वही बेटा कहता ,बाबू जी बेईमान है


    दिन दूना औ' रात चौगुना,तुमने तो विस्तार किया,
    भूल न जाना उन्हें , जिन्होंने स्वयं तुम्हें आधार दिया.
    रखना याद , तुम्हारी जिनसे इस जग में पहचान है

    ठीक है या … ?
    बहुत अच्छी संभावनाएं हैं !
    लेकिन बंधु , ता'रीफ़ का उल्टा असर नहीं आना चाहिए ।
    सद्भाव सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

    ReplyDelete
  12. पाण्डेय जी,
    आप बधाई के पात्र हैं..... सन्देश देती हुई आपकी रचना चेता भी देती है के बेटा तुम्हारे भी बेटा है!
    व्हाट यू सो, सो शैल यू रीप!
    =======================
    फिल्लौर फ़िल्म फेस्टिवल!!!!!

    ReplyDelete
  13. जिंदगी की अटल और शास्वत सच्चाई को
    बयान करता हुआ आपकी लेखनी से निकला
    ये खूबसूरत गीत ... मन में कहीं घर कर गया है
    मधुरिम लय और आकर्षक शैली/शिल्प में गुंथा हुआ
    मनोरम गीत पढवाने के लिए आभार .

    ReplyDelete
  14. bahut sunder saarthak rachanaa hai aajakal ke sach ko bahut acche bhaav diye hain bhagavaan aapakee is samvedanaa ko banaaye rakhe| aasheervaad.

    ReplyDelete
  15. मंगलवार 10 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार

    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete
  16. bahut sundar peshkash...
    Meri Nai Kavita padne ke liye jaroor aaye..
    aapke comments ke intzaar mein...

    A Silent Silence : Khaamosh si ik Pyaas

    ReplyDelete
  17. vinod ji..kavita ka rukh jis aur hai..uski priniti sukhad hai..sach ko aaina deti ek sundar rachna!

    ReplyDelete
  18. vinod ji..kavita ka rukh jis aur hai..uski priniti sukhad hai..sach ko aaina deti ek sundar rachna!

    ReplyDelete
  19. इस चेतावनी भरी कविता के लिए साधुवाद.

    ReplyDelete
  20. अरे वाह! इतनी प्यारी कविता पढ़ने से छूटी जा रही थी.
    ..बधाई.

    ReplyDelete
  21. कितना प्यारा गीत रचा है विनोद आपने.. ऐसे गीत केवल सौम्य और सरल ह्रदय ही लिख पाते हैं...और इनकी रचना नहीं की जाती यह तो स्वयं झरते हैं एक निश्छल कवी की लेखनी से !
    शुभकामनायें भैया !

    ReplyDelete
  22. एक और बहुत अच्छी रचना.
    आप बहुत अच्छा लिखते हैं! बधाई.

    ReplyDelete
  23. satvachan... sadvachan..bahut bahdai ho apko.

    ReplyDelete
  24. आज समय नें ली है करवट,रिश्ते-नाते टूट रहे,पैसों की माया के आगे,अपने ही अब रूठ रहे,
    आज आदमी की नज़रों में,मानव इक सामान है

    सच कहा है विनोद जी ... अनुभव का ख़ज़ाना लिए घर के बूढ़े उचित सम्मान माँगते हैं ... इनका आदर होना ही चाहिए ....

    ReplyDelete
  25. सार्थक रचना । एक सशक्त पोस्ट |

    ReplyDelete