मुस्कुराते पल-कुछ सच कुछ सपने
चंद लम्हें थे मिले,भींगी सुनहरी धूप में, हमने सोचा हँस के जी लें,जिन्दगानी फिर कहाँ
Wednesday, September 15, 2021
बचपन छूट गया - विनोद पाण्डेय
मुक्तक - 5
एक पुराना सपना फिर आँखों में आया था
तभी हवा ने रुख़ बदला वो सपना टूट गया
ट्रेन बनारस से दिल्ली को जैसे ही छूटी
लगा दोबारा मिलकर जैसे बचपन छूट गया
~
विनोद पाण्डेय
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