चंद लम्हें थे मिले,भींगी सुनहरी धूप में, हमने सोचा हँस के जी लें,जिन्दगानी फिर कहाँ
मेरे पैरों में जो उभरे छाले हैं
उम्मीदों को हर पल खूब उछाले हैं
देते हैं बद्दुआ उम्र बढ़ जाती है
मैने कुछ ऐसे भी दुश्मन पाले हैं
@विनोद पाण्डेय
#muktak #मुक्तक #kavivinodpandey #hindishayari #poetry #poetrycommunity
No comments:
Post a Comment