अभी पिछले सप्ताह समाचार पत्र मे पढ़ा की राजस्थान के एक गाँव मे अंजू नामक एक लड़की को 19 घंटों की मेहनत के बाद बोरवेल से निकाला गया. यह पहली घटना नही थी,इससे पहले ऐसे कई घटनाएँ हो चुकी थी और यही कारण था मेरे आश्चर्यचकित होने का कि इतने घटनाओं के बाद भी प्रशासन इसे रोक पाने मे असक्षम है. हमारी मीडिया जो हर खबरों को इतना बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत करती है वो भी तब तक चुप ही रहती है जब तक खुले बोरवेल मे कोई गिर ना जाए.सरकार को इस अनहोनी से पहले कदम पर ही प्रहार करना होगा अन्यथा ऐसे न्यूज़ हमेशा आते रहेंगे और हम टीवी पर देख कर बस दूसरों के प्रति एक हमदर्दी की गुहार करते रहेंगे बस इसी घटना पर मैं ध्यान दिलाना चाहता हूँ अपनी हास्यात्मक शैली में कि जो कुछ नही कर सकते वो देश सेवा मे ज़्यादा दिमाग़ ना लगाए बस कविता पढ़े और मुस्कुराएँ, बस एक प्रार्थना है उनसे कि कही कोई खुला बोरवेल दिखे तो भगवान के लिए उस पर एक ढक्कन रख दे......धन्यवाद.
घटना,जिसने सभी जनमानुष के हृदय को छुआ,
मीडिया मंत्र के तंत्र से लबालब समाचार,
ई.टीवी, यु.टीवी,जी.टीवी और अख़बार,
पर सनसनाती,सनसनीखेज बनकर छाई थी,
जब नन्हा मुन्ना राही,प्रिंस,
बाहें खोलकर,
जय बजरंगबलि बोलकर,
खुले बोरवेल मे छलाँग लगाई थी.
पूरे देश मे तब लाइव टेलीकास्ट हो रहे थे,
गाँव,घर,शहर मे प्रिंस के परिजन रो रहे थे,
पर रिपोर्टर भइया लोग,
बाकी सभी खबरों से मुँह मोड़ कर,
अन्न,जल छोड़ कर,
इसी न्यूज़ के पीछे पड़े थे,
और कैमरा लेकर उसी स्थान पर खड़े थे.
प्रिंस के सारे भूले बिसरे रिश्तेदारों को,
स्टूडियो मे बुला रहे थे,
ईमोसन की स्पीड बढ़ा कर,
पूरे देश को रुला रहे थे,
स्टूडियो मे बैठ कर दुर्घटना को हवा दे रहे थे,
पूरे देशवासीयों के दिल बखूबी दुआ दे रहे थे,
इस दुआओं के भीड़ मे जब भी सवाली पा जाते,
मुँह पर कैमरा लगा देते, जिसे भी वहाँ खाली पा जाते,
बोरवेल,ट्यूबवेल,घर,दरवाजे,
सब का फोटो खींच रहे थे,
मुखिया जी भी तन कर,
धोती,कुर्ता,पहन कर, आँखे मींच रहे थे.
मीडिया के मसालों ने धमाल कर दिया था,
प्रिंस को दुआओं से मालामाल कर दिया था,
सारी अटकलों के बात अंततः प्रिंस निकल गया,
पर प्रिंस का जादू हर एक भावुक दिल पर चल गया,
वह छोटा बालक फर्श के अर्श हो गया,
कुछ अनुयायीयों के लिए तो आदर्श हो गया,
बहुत प्रेरित हो गये आज के बच्चे,
इस घटना से,
जनता भी चिर परिचित हो गयी है,
ऐसी दुर्घटना से,
अब तो हर बच्चे ऐसे हैरतअंगेज़ खेल ढूढ़ते है,
कहीं मिले और कूद पड़े,
बड़े मन से खुला बोरवेल ढूढ़ते हैं.
सम्भावनाओं की ऐसी भयावह रात से पहले,
प्रिंस के चर्चा-ए-बरसात से पहले,
बहुत सारे बुलबुले हुए थे,
बोरवेल के ढक्कन के पहले भी खुले हुए थे,
तब चैनलों ने इतनी उत्सुकता नही दिखाई थी,
इसीलिए हमारे गाँव के चुन्नु को,
प्रिंस की तरह को सरकारी प्रोत्साहन नही मिल पाई थी.
वैसे इस प्रकरण पर सभी के ध्यान,
मीडिया के ध्यान दिलाने के बदौलत ही गये,
इस अभूतपूर्व योगदान से सैकड़ों प्रिंस जी गये,
पर ऐसी जानलेवा हरकत खेल खेल मे क्यों?.
नन्ही सी जान बार बार बोरवेल मे क्यों?.
प्रिंस,चिराग,बलवीर,अंजू आगे और भी आते रहेंगे,
कुछ बचा लिए जाएँगे,
कुछ मौत के मुँह मे समाते रहेंगे,
ये प्रशासन का ढीलापन है,
या बच्चों के परिवार का लचीलापन,
शरारत,उछलकूद तो नटखट बचपन का पसंद होता है,
परंतु ये बोरवेल का ढक्कन क्यों नही बंद होता है.