व्यस्तता के दौर से निकली सरल और सहज शब्दों में साकार, ग़ज़ल की कुछ लाइनें आप सब के नज़र करता हूँ..आशीर्वाद दीजिएगा.
सोच रहा था तुमसे मिलता,पर आना आसान नहीं,
फुरसत के कितने पल है,यह समझाना आसान नहीं,
हैरत में हूँ,मैं यह सुनकर,की मैं बदल गया हूँ अब,
मजबूरी में कदम बँधे है, कह पाना आसान नहीं,
बातें और बहाने ये सब औरों की आदत होगी,
सच्चाई से शब्द गुथे है, बतलाना आसान नहीं,
कितना भी समझा दूँ लेकिन झूठ तुम्हे सब लगता हैं,
सच की गाथा गाते हो, सच अपनाना आसान नहीं,
वैसे तो यह मन कहता है,दूरी बस एहसास है एक,
मगर ख्यालों की दुनिया में रह पाना आसान नहीं,
फिर भी नहीं समझना की मैं,भूल गया वो बीते पल,
यादों की उन महलों का भी, ढह जाना आसान नहीं,
ढूढ़ रहा हूँ कि कुछ टुकड़ा, वक्त कहीं से मिल जाए,
बँधन ही यह कुछ ऐसा है, बच पाना आसान नहीं,
चार पंक्ति का माफीनामा, ग़ज़ल बन गई है देखो,
तुम से इतनी दूरी भी तो सह पाना आसान नहीं.