नवगीत नही जब बन पाया तब मैने सोचा कुछ लिख दूँ,
आख़िर दिल के जज़्बातो को एक शब्द रूप जो देना हैं.
इस वर्ष के अंतिम संध्या पर,एक लहर उठी मन-उपवन में,
कुछ प्रश्न निरुत्तर लगे मुझे,आशाओं के अंतर्मन में,
कुछ भाव रहे उलझे उलझे,एक दर्द रहा,एक आह रही,
गत वर्षों की कुछ अनहोनी,जब साँझ भूलना चाह रही,
तब मैने भी उन प्रश्नों का दब जाना ही अच्छा समझा,
यह नया वर्ष जो आएगा उससे भी तो कुछ लेना है.
उम्मीदों के सूरज जैसे,स्वागत है, अगले दिन का,
एक नया वर्ष प्रारंभ करे, उस सुबह की पहली पलछिन का,
कुछ हर्ष-उमँगो से सज कर,नववर्ष ने परचम लहराया,
पर लाखों लोगों के मन में,है पिछले वर्ष का डर छाया,
गत वर्ष अधूरे न्याय रहे,क्या पता उन्हे पूर्णता मिले,
या अब भी इस नववर्ष में सबको,उन्ही दुखों से मरना है.
फिर भी मन ग्रसित है शंको से,क्या न्याय उन्हे मिल पाएगा,
सालों से उलझन बनी हुई,यह व्यथा कौन सुलझाएगा,
गर उन लोगों से पूछे तो,नववर्ष का क्या मतलब होगा,
जब ही दुख पहरेदार बना,तब हर्ष का क्या मतलब होगा,
पर मैं यह कहता हूँ यारों,जीवन जैसे जल में नैया,
हम सब नाविक इस नैया के,बस संभल-संभल कर खेना है.
बस यही कामना है मेरी,नववर्ष हो मंगलमय सब को,
सुख-दुख तो चलता रहता है,इसको ऐसे ही चलना है.