Thursday, April 1, 2010

कई रंग हमने जमाने के देखें,कहीं भूखमरी है,कहीं धन भरा है-----(विनोद कुमार पांडेय)

समझ में न आए,कि क्या माजरा है,
ये इंसान है,या कोई सिरफिरा है,

ये पैसा,ये रुपया,ये दौलत,ये शोहरत,
समझता है सब कुछ इसी में धरा है,

ग़रीबों की आहों पे महलें उठाता,
लगे जैसे आँखों का पानी मरा है,

वहीं आज बनता है,सबसे बड़ा,
हज़ारों दफ़ा जो नज़र से गिरा है,

मोहब्बत की ऐसी हवा लग गई,
जहाँ दर्द मिलता वहीं आसरा है,

कई रंग हमने जमाने के देखें,
कहीं भूखमरी है,कहीं धन भरा है,

ये दुनिया की सच्चाई है,मेरे भाई,
भले आप बोलो,कि थोड़ा खरा है.

23 comments:

M VERMA said...

ये पैसा,ये रुपया,ये दौलत,ये शोहरत,
समझता है सब कुछ इसी में धरा है,
क्या तंज है!!!
बहुत सुन्दर
दुनिया तो पैसे को ही सब कुछ समझती है

Satish Saxena said...

बहुत अच्छा .....वाकई में यही सच्चाई है, विनोद !
मूर्ख दिवस पर एक गंभीर रचना ...लीक से हठ कर ..
शुभकामनायें

राज भाटिय़ा said...

समझ में न आए,कि क्या माजरा है,
ये इंसान है,या कोई सिरफिरा है,
अजी यह कमीना नेता है.... ओर वो भी ....
बहुत सुंदर कविता कही आप ने
धन्यवाद

Kulwant Happy said...

बेहद संवेदनशील और बहुत कुछ कहती है रचना।

सर्वत एम० said...

शायद पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ.आप तो बहुत ही बढ़िया गजलें लिख रहे हैं. इतनी कठिन बहर में इतने सार्थक शेर पैदा कमाल है. एकाध जगह थोड़ा मात्राओं की कमी अखरी जरूर मगर यह तो जब दुबारा देखेंगे तो दुरुस्त कर ही लेंगे.
आपने सतीश जी के ब्लॉग पर मेरा समर्थन किया, भाई, शुक्रिया ही कह सकता हूँ
उम्मीद है, यह प्यार बनाए रखेंगे.

दिगम्बर नासवा said...

कई रंग हमने जमाने के देखें,
कहीं भूखमरी है,कहीं धन भरा है ...

विनोद जी .. चाहे आपके व्यंग हों या हास्य या अन्य रचना ... मानवीय संवेदना को आप गहरे छूते हैं .. बाहित ही सार्थक लिखा है ...

अन्तर सोहिल said...

कटु सत्य है जी ये तो

इस बेहतरीन रचना के लिये बधाई और हमें पढवाने के लिये आभार

प्रणाम स्वीकार करें

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह क्या बात है अच्छी गज़ल के लिए बधाई।
वहीं को वही
देखें को देखे
टंकण में बिंदी अधिक लग गई लगता है।

अंजना said...

बहुत सुंदर कविता ....

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत खरी बात,आभार.

अनामिका की सदायें ...... said...

bahut hi saarthak rachna. badhayi.

Dr. Shashi Singhal said...

कहीं भुखमरी , कहीं धन
यही हैं जमाने के रंग - बदरंग.....
बहुत बढिया.....

शारदा अरोरा said...

बहुत सही उकेरा है ..है भी ऐसा ही ...भूकमरी को भुकमरी कर लें |

संजय भास्‍कर said...

इस बेहतरीन रचना के लिये बधाई और हमें पढवाने के लिये आभार

संजय भास्‍कर said...

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर मेरी हाजरी लगा लो । समय कम है आशीर्वाद

कविता रावत said...

कई रंग हमने जमाने के देखें,
कहीं भूखमरी है,कहीं धन भरा है ...
Yatharth ke dharatal me gahari utarti rachna ..... samajik bidambana kee khaee ko darshati...
Haardik shubhkamnayne/....

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

ये पैसा,ये रुपया,ये दौलत,ये शोहरत,
समझता है सब कुछ इसी में धरा है,

विनोद भाई बहुत बढ़िया और सीधे सीधे कहा है... बहुत पसंद आये ये तेवर.

वहीं आज बनता है,सबसे बड़ा,
हज़ारों दफ़ा जो नज़र से गिरा है

और ये शेर तो मेरे एक करीबी रिश्तेदार के लिए... जो बात मैं कहना चाहता था वो आपने कह दिया.. शुक्रिया.

Urmi said...

हमेशा की तरह बेहद सुन्दर रचना! बहुत बढ़िया लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ शानदार है!

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

कई रंग हमने जमाने के देखें,कहीं भूखमरी है,कहीं धन भरा है,

यही वर्ग विभेद तो प्रताड़ित करता है मित्र ,,, और सारी समस्याओं की जननी भी यही है ,,, अब फिर एक बार आप के बारे में कहूँगा जरूर आप की रचनाये आप का ही प्रतिबिम्ब दिखाती है ,, आप के ह्रदय में आम जन और और उनकी पीड़ा के प्रति कितनी पीड़ा है
मै नतमस्तक हूँ
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084

Anonymous said...

खूबसूरत प्रस्तुति...आपका ब्लॉग बेहतरीन है..शुभकामनायें.


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kshama said...

Tabahiyon ke zimmedaar sar fire hee hote hain..kya kamal ki rachana hai..!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

Thoda kyun Bhai, POORE khare ho!
Sach hi to bola hai!