मुस्कुराते पल-कुछ सच कुछ सपने
चंद लम्हें थे मिले,भींगी सुनहरी धूप में, हमने सोचा हँस के जी लें,जिन्दगानी फिर कहाँ
Wednesday, February 5, 2020
तुम डिग्री लेकर फुर्र हुईं, मैं 1st Year में डटा रहा | विनोद पांडेय की नई हास्य कविता
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