Wednesday, September 15, 2021

बचपन छूट गया - विनोद पाण्डेय

मुक्तक - 5


एक पुराना सपना फिर आँखों में आया था
तभी हवा ने रुख़ बदला वो सपना टूट गया
ट्रेन बनारस से दिल्ली को जैसे ही छूटी
लगा दोबारा मिलकर जैसे बचपन छूट गया


~विनोद पाण्डेय

बीमार संभालें या बाजार संभालें- विनोद पाण्डेय

मुक्तक - 4


हालात बड़े ही बुरे दिखने लगे हैं अब

जनता गुहार कर रही,सरकार संभाले 

सरकार इसी कश्मकश में जूझ रही है  

बीमार संभालें या बाजार संभालें

  

---विनोद पाण्डेय



Tuesday, September 14, 2021

हिंदी दिवस की शुभकामनाएँ 2021 - विनोद पाण्डेय

मुक्तक -3


सूट-बूट हो भले विदेशी दिल देशी कहलायेगा 
हिन्दुस्तानी कहीं रहे हिंदी को गले लगाएगा 
भले झाड़ता हो कोई दिन-रात सिर्फ अंग्रेजी ही 
बाथरूम के अंदर तो हिंदी गाना ही गायेगा l








~विनोद पाण्डेय

हिंदी दिवस की शुभकामनाएँ

Monday, September 13, 2021

पतन हो रहा है आज - विनोद पाण्डेय

मुक्तक -2 


भारी है बीमारी न कोई दिख रहा इलाज 

संवेदनाएँ मर रहीं ग़ायब है शर्म-लाज 

हम गिन रहे हैं सिर्फ़ सियासत में कमी पर 

पूरे समाज का ही पतन हो रहा है आज




~ विनोद पाण्डेय

Sunday, September 12, 2021

चेहरा बदल लिया - विनोद पाण्डेय

मुक्तक - 1  


आँखें न हुई ठीक तो चश्मा बदल लिया  
हर दाग छुपा रह गया कपड़ा बदल लिया 
अपना चरित्र सिर्फ बदलना था उसे पर 
शातिर का बाप था वो, चेहरा बदल लिया

~ विनोद पाण्डेय





Friday, September 10, 2021

(बालगीत)


मम्मी वो जूता दिलवा दो

जो चूँ चूँ चूँ चूँ करता है
पापा से कह कर मँगवा दो
जो चूँ चूँ चूँ चूँ करता है


जाड़े में जो दिलवाया था
वो जूता अब टूट रहा है
पैरों में हरदम रहता था
जाने क्यों अब रूठ रहा है
मुश्किल है अब इसे पहनना
अब तो जूता नया चाहिए
इसके साथ-साथ ही सुन लो
मोज़ा भी अब नया चाहिए


चाचा जी बाज़ार जा रहें हैं
तो वो ही ले आएँगे ।
उनको ही यह सब समझा दो
जो चूँ चूँ चूँ चूँ करता है l


मेरा जूता चुप रहता है
टिंकु का चूँ चूँ करता है
सब उसको देखते ध्यान से
मेरा दिल धूँ धूँ करता है
मेरी भी अब यहीं चाह है
मेरा जूता चूँ चूँ बोले
उछलूँ-कूदूँ उसे देखकर
सबका ध्यान मुझी पर डोले


लाइट भी हो जो जलती हो
जब मैं कदम बढ़ाऊँ तो
मामा से भी यह बतला दो
जो चूँ चूँ चूँ चूँ करता है


नहीं चाहिए कपड़ा मुझको
नहीं चाहिए कोई खिलौना
जूता नहीं दिलाया तो फिर
ख़ूब करूँगा रोना-धोना
उसे पहनकर नानी के घर
छुट्टी में जब जाऊँगा
ज़ोर ज़ोर से कूद कूद कर
सबका मन बहलाऊँगा


इंतज़ार है उस जूते का
जो सबके मन भाएगा
मम्मी इसी महीने ही ला दो
जो चूँ चूँ चूँ चूँ करता है l

--विनोद पाण्डेय