Monday, September 13, 2021

पतन हो रहा है आज - विनोद पाण्डेय

मुक्तक -2 


भारी है बीमारी न कोई दिख रहा इलाज 

संवेदनाएँ मर रहीं ग़ायब है शर्म-लाज 

हम गिन रहे हैं सिर्फ़ सियासत में कमी पर 

पूरे समाज का ही पतन हो रहा है आज




~ विनोद पाण्डेय

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