Friday, May 16, 2025

Vinod pandey ka geet

 


एक गीत ( कवि विनोद पांडेय द्वारा रचित)


या तो साथ चलो मंजिल तक या पहले ही ना कह दो 

कोई स्वप्न अधूरा लेकर के चलना स्वीकार नहीं है 


बंधन मुझको रास नहीं है मगर प्रेम में बंध जाता हूँ 

साथ किसी का हो तो अच्छा मगर अकेले चल पाता हूँ 

भावुक हूँ पर रिक्त नहीं हूँ तुम कोई प्रयोग मत करना 

या तो हाथ पकड़ना कस कर या पगडंडी पाँव न धरना 


सोच समझ कर कदम बढ़ाना, राहों में कांटे बिखरे हैं 

मैं कुछ फूल बिछा भी दूं तो कांटों का प्रतिकार नहीं है ll 


पाँवों से सहमति लेकर के ही उनको पायल पहनाना 

काजल नहीं ठहर पाएंगे मत आंखों को तुम भरमाना 

तय करना है तूफानों में कैसे हम तुम साथ बढ़ेंगे 

मंजिल तक जो साथ चले तो यह तय है इतिहास गढ़ेंगे


फिर भी यदि संकोच कोई हो मुझे विदा मत करने आना

यदि मुझ पर विश्वास नहीं है तो यह भी अधिकार नहीं है ll


इसको एक निवेदन मानो,यह कोई अनुबंध नहीं है 

कुछ कदमों का साथ महज एक परिचय है संबंध नहीं है 

भला पुष्प का जीवन कैसा शामिल जो मकरंद नहीं है 

असमय टूट गए डाली से उन फूलों में गंध नहीं है


साथ टूटने के डर से तो बेहतर होगा एकाकीपन 

जब तक कसम उठा न लो तुम मन मेरा तैयार नहीं है ll


© कवि विनोद पाण्डेय