टीचर्स डे पर गुरूजी को समर्पित एक कविता
साढ़े नौ का घंटा बजते कक्षा में घुस जाते थे
चश्मा टिका नाक पर अपने एक नजर दौड़ाते थे
उनको था मालूम मगर हँस कर के बात उड़ाते थे
बहुत मेहनती और समर्पित थे प्रेरक, दिलदार गुरुजी
किस्मत थी जो हम पाए थे ऐसे सदाबहार गुरुजी |
बड़ी महारत थी उनको जो विषय पढ़ाने आते थे
हर टॉपिक पर प्रश्न पूछते उत्तर दे समझाते थे
जो गरीब थे बच्चे उनका भर देते थे फीस गुरु जी
व्यवहारिकता में विद्यालय में सबसे इक्कीस गुरूजी
जीवन भर के लिए रहेंगे आभारी हम सारे बच्चे
ढल जाते थे हर बच्चों की क्षमता के अनुसार गुरूजी |
क्लासरूम में सिर्फ पढ़ाई बाहर बातें दुनियाभर की
गप्प मारने में ऐसे कि खबर नहीं रहती थी घर की
लड़कों से अमरुद मँगाकर नमक लगाकर खाते रहते
लतखोरों से विद्यालय में बढ़े घास कटवाते रहते
सज्जनता की पूजा करते भावुकता में बड़े प्रबल थे
जूतों से करते थे लम्पट,लुच्चों का सत्कार गुरु जी |
डाई बाल करा रखे थे हरदम क्लीन शेव में रहते
मैडम जी से बतियाते थे नहीं भाव में लेकिन बहते
जैसे ही पेपर आता था बच्चों का उत्साह बढ़ाते
और फेल होने वालों से मिलकर के ढाढ़स बँधवाते
टॉप किये थे तब हमको वो दो सौ रूपये पकड़ाए थे
याद आ रहें आज सुबह से जाने कितनी बार गुरु जी |
शिष्य जगत भर में फैले हैं जिनको गुरु जी स्वयं सँवारे
मगर गुरु जी बरगद के नीचे लेटे हैं टाँग पसारे
कोई नहीं पूछता है अब गुरु जी कैसे बीत रहा है
भीतर भीतर संतुष्टि है वहीं मौत को जीत रहा है
रामचरितमानस पढ़ते हैं सुबह-शाम पूजा करते हैं
भूल गए हैं कर के हम पर एक भारी उपकार गुरु जी |