Friday, July 24, 2009

मंदी..अभी और कितने दिन

विश्व अर्थव्यवस्था पिछले डेढ़ सालों से जूझ रही है..सबके जेहन मे यहीं प्रश्न है आख़िर कब तक यही हाल रहेगा.. अभी और कितने घर को बर्बाद करेगी यह मंदी......अब तक बहुत परिवर्तित हो चुका है..अब सब चाहते है..की बस.. मंदी..अब और नही..हम भी दुआ करते है..जल्द ही हम फिर से विकास के मार्ग व्यवस्थित पर आ जाएँ.....

मंदी मे सब बदल रहे है,साधु, नेता,चोर,
सबके बिजनेस पे छाया है,इस मंदी का ज़ोर,
कहाँ मुनाफ़ा यही सोच कर, सभी लगे तैयारी मे,
साधु बाबा भी अब तो ,फँस जाते है बमबारी मे.

पर नेता को नही फ़र्क है,ना मंदी का कोई गम है.
इस मंदी के महादौर मे, जनता से मिलते ही कम है,
उन्हे सुरक्षा का डर है,इस असुरक्षित जनता से,
दुर्जन भी भयभीत हुए है,अब तो सज्जनता से.

इनकी क्या मंदी होगी, ये तो जनता का खाते है,
लूट खसोट ग़रीबो को ये,अपना माल बनाते है,
हार,जीत,मंत्री,सत्ता, सब कुछ नोटों का खेल है,
उनकी महागणित के आगे,आज गणित हर फेल है,

मंदी मंदी कहते कहते थक गयी जनता सारी,
कब तक रहेगी मंदी जैसी इतनी बड़ी बीमारी,
अब तो फिर से वही पुराना,दिन आ जाए तो अच्छा,
फिर से खुशियाँ लौट पड़े,अपने द्वारे पर ,तो अच्छा.

जब हम फिर से लहराएँगे,वो दिन लौट के कब आएँगे,
सूखे मुरझाए चेहरों पे, खिलत चंद्रमा कब छाएँगे,
कितनो के घर बिखर गये, अब भी क्या कुछ बाकी है,
डूब रही है अर्थव्यवस्था, वो कहते तैराकी है,

आएगा फिर से वो सावन, आँखे बोझिल मत होने दो,
नया सवेरा फिर से होगा,स्वाभिमान को मत रोने दो,
उलझन के चादर से निकलो,ईश्वर घर अंधेर नही,
रात घनी घनघोर गयी तो,कल आने मे देर नही.

21 comments:

निर्मला कपिला said...

आयेगा फिर से वो सावन आँखें बोझिल मत होने दो
नया सवेरा फिर से होगा स्वाभिमान मत खोने दो
उलझन की चादर से निकलो ईश्वर घर आँधेर नहीं है
रात घनी घनघोर गयी तो कल आने मे देर नहीं है
कई दिन बाद आपकी पोस्ट आयी है तो जहिर था कि जरूर कोई खास बात है और अब सा्मने है ये अद्भुत सकारात्मक सोच लिये नयी पोस्ट मुझे लगता है इस साँत्वना की इस समय सब को जरूरत है बहुत ही सुन्दर खूबसूरत सामयिक रचना बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें

Vinay said...

बहुत समसमायिक रचना है,
साधुवाद!
---
ग़ज़लों के खिलते गुलाब

सदा said...

नया सवेरा फिर से होगा, स्‍वाभिमान मत खोने दो,
बहुत ही सुन्‍दर सकारात्‍मक विचारों का स्‍वागत ।

दिगम्बर नासवा said...

मंदी के दौर मैं आपकी रचना सुखद प्रेरणा ले कर आए आई.....

Science Bloggers Association said...

काश, इसका धंधा जल्‍दी से मंदा होता।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

जनता तो होती ही लुटने पिटने के लिए है
http://kajal.tk:)

Razi Shahab said...

Behtareen soch

Prem Farukhabadi said...

आएगा फिर से वो सावन, आँखे बोझिल मत होने दो,
नया सवेरा फिर से होगा,स्वाभिमान को मत रोने दो,
उलझन के चादर से निकलो,ईश्वर घर अंधेर नही,
रात घनी घनघोर गयी तो,कल आने मे देर नही.

bahut hi sundar jagrook vichaar.badhai

समयचक्र said...

सामयिक अच्छी रचना . बढ़िया बधाई.

Renu Sharma said...

raat ghani ghanghor ho gai
kal aane main der nahi ...
waah waah
ati sundar.
renu...

PREETI BARTHWAL said...

अच्छी लिखा है आपने
हम आश लगा के बैठे हैं। ये मंदी की तंगी कब खत्म होगी।

Manish Kumar said...

आपकी उम्मीद फलीभूत हो..और मंदी के जाल से विश्व जल्दी हि मुक्त हो यही कामना है।

ओम आर्य said...

sab se pahale mai yah kahana chaunga ki .....amin
wah kal kal hi aa jaye ...........tahedil se yahi kahunga ki jitani bhi tarif ki jaaye aapaki wah kam hai .......bahut hi khubsoorat rchana hai .....bhagawan aapko lambi umara de

Rohit Khetarpal said...

बहुत ही सकारात्मक सोच|बहुत ही सुंदर लिखा आपने लेकिन भाषा में कहीं थोड़ा सुधार होना चाहिए मुझे भाषा में पिछली कविताओ के मुक़ाबले कहीं कुछ कमी लगी| एक और कदम आगे बड़ाते हुए, आपने अपनी लेखनी में समसामयिक कविता का अभिनंदन किया|

daanish said...

रचना अच्छी
और मनोरंजक है

देहरादून से छपने वाली साहित्यिक पत्रिका
"सरस्वती-सुमन" का हास्य-व्यंग्य विशेषांक
आ रहा है ...उसके लिए अपनी कोई रचना भेजिए

डॉ आनंद्सुमन सिंह (मुख्या सम्पादक)
सरस्वती-सुमन
१- छिब्बर मार्ग
(आर्य नगर )
देहरादून .
mob-094120-09000.

---MUFLIS---

निर्मला कपिला said...

विनोद जी मैने पहले भी इस रचना पर कमेन्ट दिया था वो क्यों नहीं छपा ये समझ नहीं आया आपकी ये रचना सम्सामयिक है फिर भी अने वाले कल के लिये एक आशा जगाती सकारत्मक अभिव्यक्ति है बधाई और शुभकामनायें

डॉ. मनोज मिश्र said...

सकारत्मक अभिव्यक्ति,बधाई.

Amit Kumar Yadav said...

Sarahniy Abhivyakti hai apki...badhai.

"युवा" ब्लॉग पर आपका स्वागत है.

Urmi said...

मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ख़ूबसूरत कविता लिखा है आपने! अब तो मैं आपका फोल्लोवेर बन गई हूँ इसलिए आती रहूंगी!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
http://urmi-z-unique.blogsppot.com
http://amazing-shot.blogspot.com
http://khanamasala.blogspot.com

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आयेगा फिर से वो सावन,
आँखे गीली मत होने दो।

आशा का सन्देश देती सुन्दर कविता के लिए,
बधाई स्वीकार करें।

Dileepraaj Nagpal said...

Kavita Jyada Achi Lagi Sir Jee. Badhai