ग़ज़ल के पोस्ट को कुछ दिन विश्राम देते हुए इस महीने केवल कविता पोस्ट करने का निर्णय लिया. इसी क्रम को आगे बढ़ाता हूँ आज के इस भावपूर्ण कविता के साथ..धन्यवाद!!!
तेरी आँचल की छाया में,मुझको तो संसार दिखे,
याद नही पर सब कहते हैं,
जब घुटनों पर चलता था,
पथरीले आँगन में अक्सर,
गिरता और संभलता था,
चोट मुझे जब-जब लगती थी,
दर्द तुम्हे भी होती थी,
हर एक ठोकर पर मेरे,
तुम भी तो साथ में रोती थी,
सोच रहा हूँ आज बैठ कर अब तक कितनी दूर चला,
मेरे हर एक पग पे मैया, तेरा ही उपकार दिखे,
मैने बस महसूस किया,
तुम हर वो बातें जान गई,
मेरे अंदर छिपी भावना को,
झटपट पहचान गई,
कष्ट न जानें कितने झेलें,
मगर हमें इंसान बनाया,
खुद भूखे-प्यासे रह कर के,
हमको अमृत कलश पिलाया,
पहली कौर खिलायी तूने भले नही हो याद मुझे,
पर उस पहली कौर के आगे,फीका हर आहार दिखे,
मेरे हर अपराध की माता,
सज़ा तुम्हे भी मिलती थी,
दुनिया की कड़वी बातें,
पग-पग पर तुमको खलती थी,
फिर भी तुमने हँसते-हँसते,
हमको इतना बड़ा किया,
ज़िम्मेदारी हमें सीखा कर,
के पैरों पर खड़ा किया,
रक्षंबंधन,ईद,दशहरा,होली और दीवाली सब है,
आशीर्वाद नही जब तेरा,सुना हर त्योहार दिखे,
सारे रिश्ते-नाते देखे,
तुझ जैसी ना कहीं दिखे,
तेरी ममता सब पर भारी,
जिधर देखता वहीं दिखे,
अब तक जो कुछ,भी पाया हूँ,
सब कुछ आशीर्वाद तुम्हारे,
याद मुझे हैं तेरी वाणी,
सद्दविचार संवाद तुम्हारे,
जितना भी अब तक पाया हूँ,तुच्छ है सब कुछ माँ के आगे,
चुटकी जैसा यह भौतिक सुख, भारी माँ का प्यार दिखे.
तेरी आँचल की छाया में,मुझको तो संसार दिखे,
14 comments:
vaah vinod, sundar sanyog. maine bhi maan par ghazal kahi aur tumane bhi ik geet rachaa. sundar geet, badhai...
Itni sundar rachana me sirf do nazarbattu rah gaye! Dard pulling hota hai aur kaur bhi!
Kripaya anyatha na len!
सुंदर प्रस्तुति!
हिन्दी हमारे देश और भाषा की प्रभावशाली विरासत है।
बहुत अच्छी कविता।
बहुत ख़ूबसूरत गीत लिखा है आपने! हर एक शब्द दिल को छू गयी! इस भावपूर्ण गीत के लिए बधाई!
आपकी कविता की पोस्टें भी उतनी ही अच्छी हैं.
Badi hi Bhaavpurn prastuti hai.
Badhaai.
सारे रिश्ते-नाते देखे,
तुझ जैसी ना कहीं दिखे,
तेरी ममता सब पर भारी,
जिधर देखता वहीं दिखे,...
मधुर गीत ... माँ का आँचल सर पर रहे इससे आगे कुछ नही है ....
बहुत सुंदर पंक्तियाँ है विनोद जी ...
माँ को नमन.
आशीर्वाद नहीं जब तेरा सूना सब त्यौहार लगे... बहुत प्यारी रचना विनोद भैया ..हार्दिक शुभकामनायें !
सारे रिश्ते-नाते देखे,तुझ जैसी ना कहीं दिखे,तेरी ममता सब पर भारी,जिधर देखता वहीं दिखे...
मां की ममता का कोई मोल नहीं ...किन किन परिस्थियों से गुज़र कर एक मां अपने बच्चे का पालन करती है ...wah एक मां ही जानती है ....
पर जब बड़े होकर बच्चे उसइ मां से ऊंची आवाज़ में बात करें तो उस मां पे क्या गुजरती है वही जानती है ....
आपने मां की ममता को इसी रूप में ही सही पहचाना तो है .......शुक्रिया ....!!
रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएं.
vinod ji jab baat 'maa' ki ho..to kuch bhi kehna kam hai...beautiful1
आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
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