यार सभी बेकार हो गये
दिल में सबके खार हो गये
शब्दबाण जो अपनों के थे
सीने के उस पार हो गये
स्वारथ सब रिश्तों पर भारी
मतलब के व्यवहार हो गये
ना जीने ना जीने देना
जीवन के आधार हो गये
नवयुग की परिवार प्रणाली
अम्मा-बाबू भार हो गये
लाभ मिला उनसे तो जानो
वो फूलों के हार हो गये
खून चूसने वाले अब तो
वोट जीत सरकार हो गये
शेरों के लद गये जमाने
देख गधे सरदार हो गये
18 comments:
जीओ मगर जीने मत देना
जीने के आधार हो गये
Sach main aaj ke halat hi kuch aise hain ,खून चूसने वाले अब तो
जनता के सरकार हो गये
WArtmaan shashan vyavastha per krara vyangye
Sunder post
बहुत सुंदर कविता धन्यवाद
ठीक कह रहे हो भैया ! शुभकामनाएं
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
आयी हो तुम कौन परी..., करण समस्तीपुरी की लेखनी से, “मनोज” पर, पढिए!
शब्दबाण अपने-अपनों के
सीने के उस पार हो गये
स्वारथ सब रिश्तों पर भारी
मतलब के व्यवहार हो गये
आज के व्यवहार पर सार्थक रचना ..सब स्वार्थी ही हो गए हैं
vinod ji
bahut umda hajal likhe hai aap
dhnyavad
जीओ मगर जीने मत देना
जीने के आधार हो गये
Kya baat kah dee aapne! Waise to harek pankti lajawaab hai!
प्रिय बंधुवर विनोद कुमार पांडेय जी
नमस्कार !
कुछ अंतराल के बाद मुलाकात हो रही है , आशा है स्वस्थ सानन्द हैं ।
अच्छी रचना लगाई है । बढ़िया अश'आर हैं -
नवयुग की परिवार प्रणाली
अम्मा-बाबू भार हो गये
खून चूसने वाले अब तो
जनता के सरकार हो गये
और भी श्रेष्ठ सृजन के लिए शुभकामनाएं हैं ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
achha hai.....par unhi purani galtiyon ke saath....shilp paksh ko samajhna bahut jaroori hai......sadhuwad....
शब्दबाण अपने-अपनों के
सीने के उस पार हो गये
स्वारथ सब रिश्तों पर भारी
मतलब के व्यवहार हो गये
खून चूसने वाले अब तो
जनता के सरकार हो गये
वाह बहुत अच्छी गजल लिखी है। समाज के चेहरे से नकाब उठाया है। बधाई।
कृोया मेरा ये ब्लाग भी देखें
http://veeranchalgatha.blogspot.com/
aapki samayanukul rachna achhi aayi .... badhai
नवयुग की परिवार प्रणाली
अम्मा-बाबू भार हो गये...
Very touching !
.
शेरों के लद गये जमाने
देख गधे सरदार हो गये
- शत प्रतिशत सही |
बहुत सुंदर। अब आपकी लेखनी न केवल धारदार बल्कि मीटर में भी चल रही है।
...ढेरों बधाई।
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! उम्दा प्रस्तुती!
नवयुग की परिवार प्रणाली
अम्मा-बाबू भार हो गय
शेरों के लद गये जमाने
देख गधे सरदार हो गये
विनोद जी यूँ तो हर शे'र ही उम्दा है ...पर ये दो बेहतर लगे ......
vakai gadhe sardaar ho gaye...apni prasangikta sidh karti rachna..!
विनोद, यही अापकी शैली है. बहुत सुन्दर कही.
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