ग़ज़ल के सिलसिले को एक अल्प विराम देते है और आप सब को अपनी एक हास्य-व्यंग कविता से रूबरू करवाता हूँ...आज के ताज़ा हालत पर आधारित है....उम्मीद करता हूँ मेरा यह प्रयोग भी आप सब को अच्छा लगेगा..साथ ही साथ एक खुशी और व्यक्त करना चाहूँगा की प्रस्तुत कविता ब्लॉग पर मेरी १०० वीं पोस्ट है..मैने भी शतक लगा दिया आप सब ने मुझे पढ़ा-सुना-समझा और इतना प्यार दिया सभी का दिल से आभारी हूँ....धन्यवाद!
धत्त तेरी मँहगाई|
जब से यह सरकार बनी,
भौहें रहती तनी तनी,
भाव करें फिर जेब टटोले,
ठंडा पड़के पीछे हो ले,
पब्लिक की हालत है खस्ती,
चीज़ नही कोई भी सस्ती,
मुरझाए हरदम रहते हैं,
मन ही मन में ये कहते है,
कैसी शामत आई |धत्त तेरी मँहगाई
दाम सुने लग जाए टोना,
सब्जी जैसे चाँदी-सोना,
भिंडी-टीन्डा साग टमाटर,
लगे देखने में ही सुंदर,
आलू,बैगन,कटहल,लौकी,
झटपट भज जाती है सौ की,
सब्जी लेकर जब भी आएँ,
दाम जोड़ते ही चिल्लाएँ,
हे सरकार दुहाई |धत्त तेरी मँहगाई
बजट भी डाँवाडोल हो गई
छप्पन की पेट्रोल हो गई,
चाय की प्याली भार हुई
चीनी चालीस पार हुई,
दाम बढ़ गये गैसों के भी,
दूध,दही व भैसों के भी,
गगन छू रही दाम दाल की,
ऐसी-तैसी हुई हाल की
ये हालत पहुँचाई |धत्त तेरी मँहगाई
भीषण रोग बनी मँहगाई
जनता बस पिसने को भाई,
कैसे होगा बेड़ा पार,
कुछ तो सुन लीजे सरकार,
सब अधिकार तुम्हारे पास,
मत तोड़ों सबका विश्वास,
मँहगाई पर कसो लगाम,
खुश हो भारत की आवाम,
ऐसे बनो नही कस्साई |धत्त तेरी मँहगाई|
16 comments:
वाहइस कविता ने मंहगाई का सारा दर्द कम कर दिया। बजट तो सही मे डाँवाडोल हो गया गया है। मगर सरकार कहाँ सुनती है अगर जनता खुश हो गयी तो वोट कैसे मिलेंगे? बधाई इस रचना के लिये।
मंहगाई पर बहुत बढ़िया रचना ...
विनोद जी कविता ने इतना प्रभावित किया कि उसी मे खो गयी और 100वीं पोस्ट की बधाई देना ही भूल गयी। ये आँकडा जल्द ही 1000 तक पहुँचे इस के लियेहार्दिक शुभकामनायें,अशीर्वाद। बहुत बहुत बधाई।
aapki 100vin post ki badhai ...aur manhgaayi par bahut badhiya likha hai sabhi rozmarra ki cheezon ko samet liya hai ...badhiya rachna
अरे वाह ! व्यंग्य रचना नहीं ...हकीकत बयान की है आपने भैया !
और शतक पर हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार करो !
बजट भी डाँवाडोल हो गई
छप्पन की पेट्रोल हो गई,
चाय की प्याली भार हुई
चीनी चालीस पार हुई,
दाम बढ़ गये गैसों के भी,
दूध,दही व भैसों के भी,
गगन छू रही दाम दाल की,
ऐसी-तैसी हुई हाल की
Bahut khoob !
अरे, जिसने भी ये सरकार बनाई,
खुदा करे, भाग जाए उसकी लुगाई,
नालायको, वोट देते वक्त इतनी भी अक्ल ना लगाई
कि एकदिन ये जरूर बढ़ाएंगे महंगाई !!
आप को सब से पहले १०० वी पोस्ट की बधाई, महंगाई पर बहुत सुंदर पोस्ट लिखी, वेसे यह महांगाई हे नही बनाई गई हे हमारे नेताओ ओर व्यापारियो दुवारा. धन्यवाद
बहुत बढ़िया व्यंग रचना है ।
१०० वें पोस्ट की बधाई ---पोस्ट में न हो कभी महंगाई ।
''shatak'' jamane k liye badhai....shubhakamanayen bhi. isi tarh likhate huye sahitya-jagat ko samriddh karate rahe. yah rachan bhi sarthak vyagya hai.
roti,kapda or makan film se yahi sun rahe hain- mahngai mar gai.narayan narayan
कास इस कविता की भावना को भगवान सुन पातें..शानदार ब्लोगिंग ..
मुझे एैसे व्यंग खूब पसंद अाते है. विनोद अापने जिस प्रकार महंगाई को परोसा है, मेरा मतलब रचना से है. काबिले तारिफ है.
शतक की बधाई!!
पहले तो १० पोस्टों की बधाई विनोद जी ...
आपके व्यंग तो सच में तीखी कटार लिए होते हैं .... आपकी ग़ज़लें भी हमेशा सामाजिक मुद्दों को रख कर लिखी हुई होती हैं ... जो अंदर तक प्रहार करती हैं ... ईश्वर से प्रार्थना है आपकी लेखनी यूँ ही बनी रहे ...
mahangai ki is kavita ke roop me mano aapne aam aadami ke man ka dard samane rakh diya ho.... achhi rachna
वाह ....!
मंहगाई पर अच्छी मार मरी है विनोद जी ...
हर जगह यही रोना है ....!!
बढिया कविता है भाई। मंहगाई ने तो वाकयी में सबकी कमर तोड रखी है।
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