Tuesday, February 28, 2012

क्या से क्या हो गया----(विनोद कुमार पांडेय)

आज ऐसे ही अपने कॉलेज के दिनों को याद करते-करते आज के वक्त से तुलना कर बैठे और पाया की आज सभी के पास पैसे तो हो गये लेकिन वो पहले जैसे मस्ती नही है और पहले जैसी खुशी भी नही जो स्कूल और कॉलेज के दौर में हुआ करती थी|

कॉलेज का दौर,मत पूछिए,
पढ़ाई से अधिक और कामों में मशहूर होते थे,
और वो सबसे बड़े हीरो बनते थे,
जो शक्ल से लगभग लंगूर होते थे|

जूता,पैंट,शर्ट,टाई,
सस्ती पर देखने में हाई-फ़ाई,
क्लास से ज़्यादा कैंटीन की गपशप भाती थी,
और लेक्चर से अधिक मज़ा कोल्ड ड्रिंक के साथ,
समोसे गटकने में आती थी|

पढ़ाकू पढ़ाई में बिज़ी,लड़ाकू लड़ाई में बिज़ी,
कोई सिनेमा की बात में बिज़ी,कोई किसी के साथ में बिज़ी
कोई सचिन-सहवाग के करामात में बिज़ी,कोई जूतालात में बिज़ी
कोई पड़ोसी के ख़यालात में बिज़ी और कोई अपने ही जज़्बात में बिज़ी|

क्लास में नज़रें तो बस घड़ी पर होती थी,
और पढ़ाई तब होती थी, जब एग्जाम खोपड़ी पर होती थी,
इतने पर भी कॉन्फिडेन्स चेहरे पर चमकता रहता था
जितना आता था उससे कहीं ज़्यादा ही छाप आते थे
फिर भी कुल मिला जुला कर नंबर भी ठीकठाक आते थे|

वक्त बदला धीरे-धीरे सब बदल गये,
खरे-खोटे हर आइटम मार्केट में चल गये,
काम मिला,पैसे मिले,लाइफ अपटूडेट हो गई,
कल की टॉफ़ी,आज चॉकलेट हो गई|

जूता,पैंट,शर्ट,टाई,
सेल में खरीदी गई पर हाई-फ़ाई,
गजब की उछाल सभी के पर्सनॉयलिटी में आने लगा,
और कल पाँच रुपये के सैंडविच से,
काम चलाने वाला आज पाँच सौ रुपया का पिज़्ज़ा खाने लगा|

कभी पाँच रुपये के ऑटो में घूमने में वाला इंसान,
आज पाँच लाख के कार में झूम रहा है,
फिर भी पहले वाली खुशी नही है,
चेहरे से गायब मुस्कान है, क्योंकि
अब आदमी अपने दुख से नही
बल्कि दूसरों की तरक्की से परेशान है|

9 comments:

kshama said...

कभी पाँच रुपये के ऑटो में घूमने में वाला इंसान,
आज पाँच लाख के कार में झूम रहा है,
फिर भी पहले वाली खुशी नही है,
चेहरे से गायब मुस्कान है, क्योंकि
अब आदमी अपने दुख से नही
बल्कि दूसरों की तरक्की से परेशान है|
Badee patekee baat kahee!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अब तो ज़माना बदल गया है ... अच्छी प्रस्तुति

Harvinder Kaur said...

bahut badiya..keep it up..

डॉ टी एस दराल said...

वाह वाह ! बहुत सुन्दर तुलना की है समय की .
वाकई सब भाग दौड़ में लगे हैं .

दिगम्बर नासवा said...

वाह वीनोद जी ... ये तुलनात्मक अध्यन लाजवाब रहा ... मज़ा आ गया ...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सुन्दर प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...होली की शुभकामनाएं....

Smart Indian said...

बहुत सुन्दर!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

ANULATA RAJ NAIR said...

सुन्दर रचना....मीठा सा कटाक्ष भी......

सुविधायें बड़ी और दिल छोटे हो गए हैं........

अनु