Monday, September 26, 2016

चिकनगुनिया ----(विनोद कुमार पांडेय )

चिकनगुनिया चिकनगुनिया चिकनगुनिया चिकनगुनिया
इधर भी है ,उधर भी है जिधर देखो चिकनगुनिया

गयी बरसात जब से है कहर ढाने लगे मच्छर,

लगे बीमार होने सब सभी को भा रहा बिस्तर,
किसी की नाक सूजी किसी का होंठ सूजा है,
किसी की खोपड़ी ऐसे दिखती जैसे खरबूजा है,

कोई भी बच न पाया चाहे पाठक हो चाहे पुनिया | चिकनगुनिया चिकनगुनिया....


किसी की टाँगे अकड़ी है किसी को दर्द है भारी,
दवाई बेअसर लगती हुई ऐसी महामारी,
जाँच पर जांच होता है मगर कुछ भी नहीं मिलता,
कमाई इतनी है कि डॉक्टरों का तोंद है हिलता,

बड़ी आबाद दिखती डॅाक्टरों की आजकल दुनिया | चिकनगुनिया चिकनगुनिया....

पड़ोसी के दुखों में कल मजे लेते मिले दूबे ,
सुबह देखा तो चड्ढा क्लिनिक पर लेटे मिले गुप्ता,
उधर दूबाईन के घुटने में रह रह दर्द होता है,
देख यह सब मोहल्ले केअधेड़ो का दिल रोता है,

पड़े हैं ओढ़ के चादर इधर लल्ला उधर मुनिया | चिकनगुनिया चिकनगुनिया....

नहीं कर पा रहा है कुछ प्रशासन देखता रहता,
मुझे वो भी चिकनगुनिया के झांसे में फँसा लगता,
बड़े अधिकारियों के घर भी हावी हैं बड़े मच्छर,
जरा देखो लगाते है निरंतर डॉक्टर चक्कर,

जो रसगुल्ला के जैसा था वहीं अब बन गया बुनिया |
चिकनगुनिया चिकनगुनिया चिकनगुनिया चिकनगुनिया
इधर भी है ,उधर भी है जिधर देखो चिकनगुनिया |

2 comments:

Vijayendra said...

Kya baat hai

संजय भास्‍कर said...

क्या बात है बड़ा संदेश देती पोस्ट...