Tuesday, December 15, 2009

राखी के स्वयंबर में सलामत दूबे जी..एक हास्य भरी काल्पनिक प्रस्तुति

दोस्तो. हँसने-हँसाने का दौर जारी रखते हुए आज एक और रचना आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ कविता का आधार महज कल्पना है और मनोरंजन के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ इस उम्मीद के साथ की इस कहानी के पात्र यदि कहीं होंगे भी तो अन्यथा नही लेंगे...धन्यवाद

राखी का स्वयंवर,

अयोध्या से भी गये थे एक वर,

क्योंकि,अब भी वहाँ के लोगों को ये यकीं है,

कि स्वयंवर-व्यमवर के मामले में,

अयोध्यावासी थोड़े लकी हैं,


बस फिर क्या एक थे,

राखी के प्यार में डूबे,

नाम था जिनका सलामत दूबे,

उछलते-कूदते किस्मत के सहारे,

स्वयंवर वाले स्टूडियो में इंट्री मारे,


मत पूछिए जनाब कितने खुश थे,

जैसे इराक़ जीतने के बाद वाले जार्ज बुश थे,

गये,सोफे पर बैठे ही थे,कि राखी जी आईं,

इन्हे देखी और मुस्कुराई,

ये भी मुस्कुराहट का रिएक्सन जताने लगे,

और पागलों की तरह ज़ोर ज़ोर,

ठहाके लगाने लगे,

थोड़ा करीब डोले,और चुटकी

लेते हुए बोले,

राखी जी,आपको हमने

अलग अलग वेश में देखा,

पर पहली बार आज फुल ड्रेस में देखा,

यह तुम खुद सिलाई हो,

या किसी से माँग कर लाई हो,


राखी झल्लाई पर खुद को संभाली,

एक भी फूटकर गाली मुँह से नही निकाली,

सीरियस रोल में हो ली,

और बहुत कंट्रोल कर के बोली,दूबे जी,

आप तो बड़े ही मजाकिया टाइप के है,

आइए,बैठिए,कुछ बात आगे बढ़ाते है,

और फिर आपको औकात में लाते हैं,

बताइए कैसे हालात है,

और मेरे बारे में आपके क्या जज़्बात है,


इतना सुनते ही दूबे जी,

भावनाओं में डूब गये,

खूब बहकनें लगे,

बातें बना बना कर कहने लगे,

कि राखी बचपन से तुम्हारे प्यार में पड़ा हूँ,

तुम्हारे प्यार के सहारे यहाँ जिंदा खड़ा हूँ,

आगे भी सहारा दो नही बैठ जाऊँगा,

यही सोफे पर पड़े पड़े ही ऐठ जाऊँगा,

तारीफ़ सुनकर राखी भी बड़ी खुश

जैसे लग रही थी,

वो भी कुछ लारा बुश जैसे लग रही थी,

खूब मज़े से दूबे जी बात सुनी,

फिर मुस्कुरा कर बोली,

दूबे जी सचमुच में आप भावनाओं से

भरे पड़े हैं,

पर एक समस्या है,वो ये कि

आप के बाल बहुत बड़े हैं,

मुझे बालो से कंगाल चाहिए,

वर चाहिए पर बिना बाल चाहिए,

वैसे भी शादी अभी कर नही सकती,

मजबूरी है,

प्रोग्राम की टी. आर. पी. बढ़ाना भी तो,

बहुत ज़रूरी है,

इसलिए अभी तो आप जाइए,

घर जाकर भजन कीर्तन गाइए,

वादा करती हूँ,अगली बार आप जब यहाँ आएँगे,

मुझे ऐसे ही स्वयंवर रचाते पाएँगे,

और तब तक आपके बचे-खुचे बाकी,बाल भी गिर जाएँगे.

27 comments:

समयचक्र said...

अरे वाह जोरदार व्यंग्य ... कार्यक्रम की टी.आर.पी. बढ़वाना हो तो खूब स्वयंवर कराओ

Udan Tashtari said...

TRP की मजबूरी जो न कराये बेचारी से.. :)



हा हा!!


मस्त व्यंग्य रचना!

अविनाश वाचस्पति said...

मुस्‍कुराते पल-कुछ सच कुछ सपने
हंसते ठहाके लगाते पल
सैंकडों में बीत जाते घंटे
सच न भी हो तो
सच का सामना बन जाता है
सपनों से तनातनी का दौर
खूब जम जाता है
व्‍यंग्‍य विनोद का नि:संदेह
खूब गजब ढाता है।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अयोध्या के दूबे जी को तो तुमहीं जानो
पर इहाँ बनारस में सुना था कि
एक पाण्डेजी जो बाहर पढ़ने गए रहे
राखी सांवत के चक्कर में मारे-मारे फिर रहे हैं
कहीं ऊ...........!
---मजा आ गया, हंसने हंसाने का दौर यूँ ही जारी रहे..
रोने के लिए बहुत गम हैं जमाने में।
-शुभकामनाएँ।

अजय कुमार झा said...

हा हा हा दूबे जी से कहिए तैयार रहें सुना है ईलेश बाबू का नंबर कट ही गया है....बस स्वयंवर पार्ट टू में तो दूबे जी ही होंगे पक्का ....

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

हा हा हा ह आहा हा हा ... बेचारी ..राखी ...टी आर पी बढाने के लिए क्या न कर दे..... पूरे कपडे भी पहन लेगी.....

हा हा हा ... बहुत मजेदार लगी यह रचना.....

Mishra Pankaj said...

हा हा हा मस्त है भाई

राजीव तनेजा said...

बहुत ही मज़ेदार ....

Unknown said...

ha ha ha ha ha

gazab bhayo raamaa zulum bhayo re..

ha ha ha

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया विनोद जी!
"वर तो चाहिए!
पर विना बाल चाहिए!!"
तब तो अगले स्वयंवर ने हम गंजों का बी नम्बर
आ जाएगा!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बस फिर क्या सब थे राखी के प्यार के भूखे !
अफ़सोस विनोद जी, आप और हम क्यों चूके ?
हा-हा-हा..
bahut sundar विनोद जी

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर व्‍यंग्‍यात्‍मक प्रस्‍तुति, आभार ।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

:)
बहुत ही बढिया व्यंग्य रचना....
लाजवाब्!

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wahwa....

Asha Joglekar said...

वादा करती हूँ,अगली बार आप जब यहाँ आएँगे, मुझे ऐसे ही स्वयंवर रचाते पाएँगे, और तब तक आपके बचे-खुचे बाकी,बाल भी गिर जाएँगे.
बेचारे दूबेजी ।

कडुवासच said...

... waah-waah !!!

Aman Jain said...

adbhut rachna hai pandey ji!!!!

shama said...

Ha,ha ha! Maza aa gaya!

दिगम्बर नासवा said...

वाह विनोद जी ..... करारा व्यंग है ......... इन टी वी वालों को बस अपनी टी आर पी से मतलब है ....... बहुत ही अच्छा हास्य और व्यंग ........

निर्मला कपिला said...

हा हा हा कमाल का व्यंग है । विनोद जी क्या सही तस्वीर खींची है बधाई इस सुन्दर व्यंग के लिये

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही बढिया व्यंग्य रचना....
लाजवाब्!

Pawan Kumar said...

ये टी आर पी क्या न करवाए.......दुबे जी जैसे लोग क्या करें...!

हरकीरत ' हीर' said...

वाह ....आपने तो सारा कच्चा चिटठा खोल कर रख दिया .....बहुत खूब .....!!

पूनम श्रीवास्तव said...

Bahut asardar aur seedha prahar karatee vyangya rachanaa.hardik shubhkamnayen.
Poonam

girish pankaj said...

priy vinod,meri kvita par aapki pratiukriya dekh to aap tak pahunchaa. aapke haasy ki 'gambheerata' dekhate hi banati hai. achchha yah dekh bhi laga ki aap bhi banaeas ke hai. mera janm bhi banaras ka hai.ab to chhattisgarh me hi jeena-marana hai. mai hasy nahi vyangy likhata hu. 8 vyangy sangerh, 3 vyangy upanyas prakashit hai. haan, vaise ek haasy chaaleesa bhi likhi hai bhejunga kbhi. isee tarah likhate raho. kafee sambhavana hai. shubhkamnaye.

निर्झर'नीर said...

aap hasane mein safal hue ..bandhaii

डॉ टी एस दराल said...

बढ़िया हास्य व्यंग है भाई, बधाई।