हम जनता है,
हमको तो बस शोर मचाना आता है,मुट्ठी में है लोकतंत्र,
लेकिन हम अज्ञान पड़े,
बस रोज़ी-रोटी मिल जाए,
यही हमारे लिए बड़े,
सोच यही पर सिमट गयी है,
इसीलिए कुछ नही चली,
जिधर घूमाओ घूमेंगे हम,
बने हुए बस कठपुतली,
जनता होने का हमको,
बस फर्ज़ निभाना आता है.
नही किसी को ये परवाह,
कौन दुखों में है जकड़ा,
सबकी फ़ितरत में बस ये है,
हमसे आगे कौन बढ़ा,
रोते फिरते हैं गैरों से,
जबकि अपने हाथ है सब,
बिना परिश्रम सब मिल जाए,
इतने तो उस्ताद है सब,
मूरख को भी उस्तादी का,
ढोल बजाने आता है.
भाड़ में जाए भाईचारा,
सबकी अपनी अलग कहानी,
अपनी बने, देश भट्ठी में,
यही आज के युग की बानी,
हुई पड़ोसी के घर चोरी,
हम पहुँचे चोरी के बाद,
कौन पड़े भई, इस झंझट में,
अपना घर तो, जिंदाबाद,
बीस बहाने बतला कर,
घर में छुप जाना आता है.
कैसे हो उत्थान देश का,
इसकी फ़िक्र सभी करते है,
कैसे कदम उठाया जाए,
इसकी ज़िक्र से सब बचते है,
छोटी-छोटी बात को लेकर,
करते रहते जूता-लात,
कैसे देश सुधर पाएगा,
जब होंगे ऐसे हालात,
यहाँ देश की जनता को,
बस बात बनाना आता है.
20 comments:
बहुत सही लिखा आपने !!
अच्छी रचना और आपको नव वर्ष की मंगलमय शुभकामना.
बहुत बढ़िया कटाक्ष है भाई विनोद जी,
मूरख को भी उस्तादी का
ढोल बजाने आता है
वाह! क्या बात है।
--सच लिखते वक्त किसी के बुरा मानने की बिलकुल चिंता ना करें
आप जैसे युवा अगर सच कहने में किसी के बुरा मानने की चिंता करने लगे
तो देश का रसातल में जाना निश्चित हो जाएगा।
भई साल शुरू होते ही सच बोल दिया आपने..हमारी खुमारी उतारने वाला काम है यह..गलत बात है पांडेय जी ;-)
खैर उस शोर मचाने वाली जनता मे ही हमारा नाम भी शुमार किया जाय जिसे बस बातें बनाना आता है.
हाँ शोर मचा-मचा कर हम आपको नव वर्ष की मुबारकबाद तो देंगे ही और एक सच से रूबरू कराती कविता के लिये बधाई भी :-)
हुई पड़ोसी के घर चोरी,
हम पहुँचे चोरी के बाद,
कौन पड़े भई, इस झंझट में,
अपना घर तो,
जिंदाबाद,
बहुत सटीक कविता कही आप ने. धन्यवाद
विनोद कुमार पांडे का ये अंदाज बेहद प्यारा लगता है। लिखते रहना मेरे लिए सबके लिए। बदलने रट है, बाकी तो राम राम सत्य है।
बिल्कुल सही चित्रण!
100 प्रतिशत खरी बात!
उत्कर्षों के उच्च शिखर पर चढ़ते जाओ।
पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।।
बहुत सही!!
’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
हाँ यथार्थ चित्रण हैं यह !
बहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ अनुपम प्रस्तुति ।
मूरख को भी उस्तादी का
ढोल बजाने आता है
सीधी सपाट बात.. और कविता में सच्ची बात कही है आपने...
यहाँ एक बात मैं कहना चाहूँगा... लोगों का रुझान सिखने समझने समझाने की और नहीं है... तुरंत ही फल पाने की जुगत लगाते रहते हैं...
यही समस्या की जड़ है.
आपको, परिवार व प्रियजनों को नव वर्ष की बधाई और शुभकामनाएं !!
सच्चाई बयाँ करती आपकी ये रचना मानवता के ह्रास पर तीखा व्यंग कर रही है ....भाड़ में जाये इंसानियत , कोई लुटता है तो लुटता रहे .....हमारी यही सोच ....कितना दूर ले गई है हमें अपनत्व से ......!!
हुई पड़ोसी के घर चोरी,
हम पहुँचे चोरी के बाद,
कौन पड़े भई, इस झंझट में,
अपना घर तो,
जिंदाबाद,
विनोद जी
बिलकुल वजा फ़रमाया आपने...
नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनायें.....!
ईश्वर से कामना है कि यह वर्ष आपके सुख और समृद्धि को और ऊँचाई प्रदान करे.
कविता के माध्यम से बिल्कुल यथार्थ चित्रण किया आपने.....
बहुत सच कहा है आपने......शुभकामनायें !!
नव वर्ष मंगल माय हो !!
बहुत खूब!
बिल्कुल सच कहा विनोद जी .......... बाते सब करते हैं .......... काम से सब बचते हैं ......... अच्छा व्यंग है ..........
मूरख को भी उस्तादी का,
ढोल बजाने आता है.
वाह मज़ा आ गया. सुन्दर सौगात रही. नववर्ष की शुभकामनायें.
मूरख को भी उस्तादी का
ढोल बजाने आता है
बहुत सही कटाक्ष किया है समाज पर । कई दिन की अनुपस्थिति के लिये क्षमा चाहती हूँ बहुत बहुत शुभ्यकामनायें और आशीर्वाद्
क्या कहूं भाई इधर चाँद मेरा भी कहीं छुप गया है
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