नवंबर माह के यूनिकविता प्रतियोगिता में हिन्दयुग्म द्वारा सम्मानित मेरी एक कविता..
रात के आगोश में,
सितारों को छेड़ता,चाँद,
और ज़मीं पर मैं,
अपने मानवीय अस्तित्व का वहन करता हुआ,
दोनों उलझ पड़े,बातों की गहमा-गहमी में,
बादलों की परतों से,
आँखमिचौली खेलता हुआ,
चाँद आशातीत होकर मुझसे कहा,
कितनी खूबसूरत है,यह धरा,
और कितने प्यारे हो,तुम इंसान लोग,
काश,मैं भी इंसानों के बीच होता,
बादलों के साथ बरसों गुज़ारें हमनें,
कुछ पल नदी,झरनो एवम् पर्वतों के साथ भी बिताता,
शीतलता और निर्मलता मेरे अभिन्न अंग हैं,
शांति,प्रेम और भावनाओं का प्रदर्शन,
मानव से सीख लेता,मैं,
अभी तक आसमान,बादल,तारे हमारे हैं,
फिर संपूर्ण ब्रह्मांड का दिल जीत लेता,मैं,
बस इतना कहा चाँद ने, और हँसी निकल पड़ी मुझे,
सोचा,हाय रे इंसानी फ़ितरत, चाँद भी इसके झाँसे में आ गया,
थोड़ी देर सोचता ठहरा रहा,
फिर चाँद से मैने बोला,
चाँद तुम बड़े भोले और नादान हो,
प्रेम,भावनाएँ यहाँ सब दिखावा है,
रात के अंधेरे का छलावा है,
कभी फुरसत मिले तो दिन में आना,
और मानवीय कृत्यों का साक्षात सबूत पाना,
अभी सो रहे हैं, इसलिए शांति के उपासक प्रतीत हो रहे हैं,
इंसान ही इंसान की नींदे उड़ाते है,
फिर खुद चैन की नींद सोते है,
हे चाँद,वास्तव में इंसान तो पत्थर के बने होते हैं,
सूरज से पूछना, इंसानों की चाल-ढाल,रूप-रंग,
चालाकी,एहसानफरामोशी के ढंग,
तुम्हारी शीतलता और निर्मलता सलामत रहे,
शुक्र है खुदा का,तुम दिन में नही आते,
अन्यथा इंसानी फ़ितरत देख कर,
तुम भी सूरज की भाँति आग में जल जाते!!
30 comments:
अभी सो रहे हैं, इसलिए शांति के उपासक प्रतीत हो रहे हैं,
बहुत सही पंक्ति..... सम्पूर्ण कविता ने झकझोर दिया....
बहुत अच्छी लगी यह कविता .... दिल को छू गई.....
सबसे पहले तो पचासवी कविता की बधाई।
बहुत सुन्दर रचना है।मन के भावो को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई स्वीकारे।
चान्द को भी कर दिया गंजा
विनोद ने जब मारा कलम का पंजा
कहीं वो रात को भी आना बंद न करते। इतना सच क्यों बोल दिया।
बेहद खूबसूरत रचना लगी। बधाई आपको
आप को पचासवी कविता की बधाई, हमारे यहां तो बादल ही बादल है, यह चांद कहा दिखे?
५० वीं कविता की बधाई..एक बहुत ही उम्दा रचना..
शुक्र है खुदा का,तुम दिन में नही आते,
अन्यथा इंसानी फ़ितरत देख कर,
तुम भी सूरज की भाँति आग में जल जाते!!
-क्या बात कही है.
Sach kaha,insaan hee insaan kee needen udate hain!
50 kavita pe badhyi ho!
बन्धु !
'हाफ सेंचुरी' की बधाई !!!
चाँद से आपकी गुफ्तगू पसंद आयी ..
पसंद आया , चाँद के बहाने 'धरती' पर कह जाना !
पचासवीं कविता की बधाई।
बहुत अच्छी कविता।
चाँद क्या ...ये इंसान तो भगवान् को भी धोखा दे दें ....
50 वीं कविता के लिए बहुत बधाई और 100 वीं कविता के लिए अग्रिम शुभकामनायें ...!!
सुरज से पुछ्ना- जोरदार
पचासवीं कविता के लिए शुभकामना
बढियां रचना की साथ ही आपको बहुत बधाई भी.
50 वीं कविता की बधाई .. आपकी ये रचना बहुत अच्छी लगी !!
अरे विनोद भाई...
अब सुनिए ब्रेकिंग न्यूज़...
चांद पृथ्वी की सुंदरता पर मोहित हुआ जा रहा था...तभी उसकी नज़र ब्लॉगिंग वाले कोने पर पड़ गई...चांद का अब कहना है...मैं जहां हूं, वैसा ही भला...
जय हिंद...
बहुत सुन्दर ख्याल-भाव मिश्रण विनोद जी ,
लेकिन आपने चाँद से यह तो का दिया होता कि चाँद जी, जो आप सोचते है वो हकीकत में है नहीं, बस आपको दूर के ढोल सुहाने लगते है !
बधाई सुन्दर रचना लिखी है आपने
कभी फुरसत मिले तो दिन में आना, और मानवीय कृत्यों का साक्षात सबूत पाना, अभी सो रहे हैं, इसलिए शांति के उपासक प्रतीत हो रहे हैं,
इंसान ही इंसान की नींदे उड़ाते है, फिर खुद चैन की नींद सोते है,..
बहुत खूब...चाँद के माध्यम से, बड़े अच्छे तरीके से मनोभावों को व्यक्त किया है..
५०वी कविता के लिया बहुत बहुत बधाई..ऐसे ही आपकी लेखनी सरपट भागती रहें और १०० का मुकाम भी जल्द ही आ जाए.
50 vi kavita ki badhayi.
bahut hi katu satya bol diya .......har pankti lajawaab.......har shabd sochne ko badhya karta hua aur yahi lekhan ki sarthakta hai...............bahut, bahut, bahut hi shandar rachna........badhayi.
तुम्हारी शीतलता और निर्मलता सलामत रहे,
शुक्र है खुदा का,तुम दिन में नही आते,
अन्यथा इंसानी फ़ितरत देख कर,
तुम भी सूरज की भाँति आग में जल जाते!!
बहुत ही सुन्दर रचना है।
हिन्द-युग्म में सम्मानित होने पर बधाई!
अच्छी भावपूर्ण कविता।
शुक्र है खुदा का,तुम दिन में नही आते,
अन्यथा इंसानी फ़ितरत देख कर,
तुम भी सूरज की भाँति आग में जल जाते....
बंधु बहुत की सटीक और हूबहू चित्रन किया है इंसान की प्रवृति का ...... आवको ५० वी पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई ......... बहुत ही शशक्त और प्रभावी रचना है ..........
आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने!
चाँद तुम बडे भोले हो
इन्सान के झाँसे मे आ जाते हो
कभी दिन मे आना
वाह बहुत सुन्दर चाँद के बहाने आज के इन्सान की सही तस्वीर पेश की है। आपकी नज़र समाज पर खूब रहती है लाजवाब रचना है बधाई
विनोद ज्वी 50 वीं कविता के लिये बधाई भी स्वीकार करें
Ardh Shatak ki badhai...sundar Rachna !!
शुक्र है खुदा का,तुम दिन में नही आते,
अन्यथा इंसानी फ़ितरत देख कर,
तुम भी सूरज की भाँति आग में जल जाते!!
पचासवी कविता अत्यंत खूबसूरत है. सच बयान करती.
बेहतरीन्
आपकी यह रचना हिंदयुग्म पर पढ़ने का सौभाग्य मिला था..मगर पुनर्पाठ आनन्ददायी रहा..जैसा कि कहा था..अपने अलग भावार्थों के बावजूद सब्जेक्ट के वजह से दिनकर के चाँद की याद दिलाती है यह कविता..और हकीकतबयानी का यह अंदाज भी
इंसानी फ़ितरत देख कर,
तुम भी सूरज की भाँति आग में जल जाते!!
Pandey ji aapki poem maine hindyugm per dekhi thi...bahut acchhi rachna he. dec. me bhi aap 2nd no. per hai.
vaha aapki snap dekhi thi...aap bahut acchha likhte hai..maine b apni post vahi di thi 14th place per hai.
mere blog per aane k liye shukriya.
५०वी कविता के साथ साथ यूनिकविता प्रतियोगिता में हिन्दयुग्म के सम्मान के लिए आपको हार्दिक बधाई.
सुन्दर भावों, उपयुक्त शब्द-चयन का निभाव - देखने वाला है.
बहुत सुन्दर रचना है.
महावीर शर्मा
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