Sunday, March 14, 2010

उतर गया था बुखार सारा,पड़े जो जूते तेरी गली में-------(विनोद कुमार पांडेय)

आदरणीय पंकज सुबीर जी द्वारा होली के तरही मुशायरे के लिए दिए गये मिसरे पर आधारित एक मजेदार रचना.


सुबह सवेरे जो घर से निकले, खुमारी होली थी सर पे छाई,

हज़ार रंगों से रंग चेहरा, तुम्हारे घर को कदम बढ़ाई,

यूँ झूमते हम निकल पड़े थे, इब्न-बतूता का गीत गाकर,

नज़र न आया वो गंदा नाला,जहाँ गिरे हम छटक के जाकर,


नशा वहीं पर हुआ था गायब, सुधर गये हम तेरी गली में,

उतर गया था बुखार सारा, पड़े जो जूते तेरी गली में,


वहाँ से जैसे बढ़े थे आगे, जो देखे हमको लगे खिझाने,

छटांक भर के वो सारे लड़के,लगे हमारी हँसी उड़ाने,

फटी बनियान, फटी थी टोपी,व चेहरा जैसे कोई निशाचर,

पड़ी जो भाभी मेरे सामने, मैं भागा सरपट नज़र झुकाकर,


लजाती नज़रें बता रहीं थी, मेरी कहानी तेरी गली में,

उतर गया था बुखार सारा, पड़े जो जूते तेरी गली में,


तुम्हारी अम्मा ने हमको देखा,लगी थी बाबू जी को बुलाने,

खड़ा है देखो भिखारी कोई, इसे दिला दो दो-चार दाने,

वो गुझिया-पापड़ दिया था तुमने,समझ के कोई भिखारी टोली,

तुम्हारे अब्बा के डर से हमने, तनिक न अपनी ज़ुबान खोली,


गली के कुत्ते भी मेरे पीछे,निकल लिए थे तेरी गली में,

उतर गया था बुखार सारा, पड़े जो जूते तेरी गली में.


रहेगी हमको ये याद होली,ज़रा सी ग़लती क्या गुल खिलाई,

कई बरस हमने खेली होली,न ऐसी नौबत कभी थी आई,

बना था ज़ीरो जो कल था हीरो,नशे ने सब कुछ बिगाड़ डाली,

की जैसे पहुँचा मैं अपने घर पर,मिली थी स्वागत में माँ की गाली,


न पूछो कैसे मनाया हमने, हमारी होली तेरी गली में,

उतर गया था बुखार सारा, पड़े जो जूते तेरी गली में.



34 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

क्या क्या हो गया साहब तेरी गली में!

DR. ANWER JAMAL said...

my vote for u.
i like ur words.

M VERMA said...

विनोद भाई यह गली कौन सी थी बता दें
बाकी मैं यह स्थिति दुबारा नही आने दूँगा.

बहुत खूब मनाया होली
सुन्दर

राज भाटिय़ा said...

उतर गया था बुखार सारा, पड़े जो जूते तेरी गली में.
अरे विनोद बाबू दुनिया चाहे कितने जुते मारे, लेकिन माशुका के दर्शन तो कर आये, इस लिये यह जुते फ़ुलो से कम मत समझो, फ़िर डां का खर्चा भी बच गया..."उतर गया था बुखार सारा :)

Udan Tashtari said...

हा हा!! बहुत मस्त रही यह गली भी. :)

Pratik Maheshwari said...

हाहा..
बहुत कुछ गलत हुआ उसकी गली में..
और कमबख्त उसी की गली में सब गड़बड़ होना था?

Unknown said...

hello sir...
mi to aap ki poems ka waise hi fan hoo...dis is nice one,keep it up sir ji...

shashiKant said...

Beautiful...........

thi uski gali, aisa lagta hai,
tabhi to aap bhatak gaye

aur meri gali se uski gali me holy manane pahunch gaye...

Sunder, Ati Sunder

Atul Verma said...

oho kaun si gali me chale gaye the pandey ji.....

In galiyo se dur hi raha karo... nice one

kshama said...

Ha,ha,ha....bahut badhiya!

Anonymous said...

"उतर गया था बुखार सारा, पड़े जो जूते तेरी गली में," - ये नौबत न आती तो अच्च्छा रहता - आ गई तब भी कोई बात नहीं - होली पर तो कुछ भी हो सकता है किसी गली में.

Parul kanani said...

badhiya :)

Khushdeep Sehgal said...

तेरी गलियों में न रखेंगे कदम आज के बाद,
होली पर तो घर से भी न निकलेंगे आज के बाद...

जय हिंद...

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

मेरे मना करने के बावजूद गए तो भुगतिये...
लड्डू बोलता है....
laddoospeaks.blogspot.com

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

मेरे मना करने के बावजूद गए तो भुगतिये...
लड्डू बोलता है....
laddoospeaks.blogspot.com

डॉ. मनोज मिश्र said...

नशा वहीं पर हुआ था गायब, सुधर गये हम तेरी गली में,

उतर गया था बुखार सारा, पड़े जो जूते तेरी गली में,
वाह बन्धु वाह.

pallavi trivedi said...

mazedaar....

shikha varshney said...

ha ha ha ye bhi khoob rahi.

अजित गुप्ता का कोना said...

विनोद बाबू, एक बार में ही बुखार उतर गया? अरे इश्‍क-मोहब्‍बत में तो न जाने कितने पापड़ बेलने पडते हैं? बिल्‍कुल घबराओ नहीं, तुम्‍हारी माँ तुम्‍हारे साथ है। कोई भी गली वाली हो उसे इस बार दीवाली पर अपना बना ही लाएंगे। बस तुम तो होली का रंग छुड़ाकर राजा बाबू बन जाओ।

समयचक्र said...

बढ़िया मस्त कर देने वाली रचना ... बधाई विनोद जी ...

Arvind Mishra said...

हा हा सचमुच जबर्दस्त -विनोद जी आपको भी नवरात्र की सपरिवार मंगलकामनाएं

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई !

Unknown said...

वाह पाण्डेय जी !!
good going. मजा आ गया !!

निर्मला कपिला said...

ाप भी बाज नही आते खूब जूतों से आर्ती उतारी गयी आपकी वाह क्या सीन था । हा हा हा बहुत बडिया। आशीर्वाद इसी तरह जूते पडते रहें और आर्तियाँ उतरती रहें।

हरकीरत ' हीर' said...

बहुत खूब ...!!

ये गली के किस्से भी लुभा गए ......!!

Bhawna said...

I appreciate your humour

KESHVENDRA IAS said...

Vinod ji, pahli baar aapke blog par aaya or kafi achha mahsoos hua yahan aakar...aapka samajik sarokar wala vyangya bada hi sarthak hai. Aise hi aapki lekhni anvarat chalti rhe..

kumar zahid said...

वो गुझिया-पापड़ दिया था तुमने,समझ के कोई भिखारी टोली,तुम्हारे अब्बा के डर से हमने, तनिक न अपनी ज़ुबान खोली,
गली के कुत्ते भी मेरे पीछे,निकल लिए थे तेरी गली में,उतर गया था बुखार सारा, पड़े जो जूते तेरी गली में.
बढ़िया बहाव है आपकी कविताई में ..लगे रहें..
A nice sence of humour...

Unknown said...

nice holi flavour

shama said...

Ha,ha,ha...bada maza aaya!

Unknown said...

Kya baat pandeyji... ya khoob rahi aapki holi.. lagae raho vinod baboo....

Aman Jain said...

Pandey ji...yeh aap kis gaali ja rahe the...behke behke kadam lag rahe hain..waise bahut hi mast kavita hai...great going!!!

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

पांडे जी आज भी आप ने गजब कर दिया हाहाह हाहाह हाहाह हहह हसे ही जा रहा हूँ
सादर ३
प्रवीण पथिक
9971969084

दिगम्बर नासवा said...

वाह आपने तो सच में होली का खुमार उतार दिया ... बहुत ही लाजवाब हास्य और व्यंग का सम-आयोजन किया है ... आपके व्यंग के तो वैसे भी हम दीवाने हैं ........