Saturday, June 5, 2010

अपने ही समाज के बीच से निकलती हुई दो-दो लाइनों की कुछ फुलझड़ियाँ-6-----(विनोद कुमार पांडेय)

कहूँ बड़ों को क्यों भला,छोटे भी है तेज|

संस्कार से वो सभी,हैं करते परहेज||


बाबू माँ की बात का,तनिक नही सम्मान|

उल्टे कामों में सदा,रहता उनका ध्यान||


लाल कलर टी- शर्ट पर,काला-नीला शूज|

जींस छोड़ कर देह पर,बाकी सब कुछ लूज|


गाँव-मोहल्ला तंग है,ऐसे सुंदर काम|

गाली,मार-पिटाई में,फेमस इनका नाम||


पॉकेट में धेला नहीं,फिर भी सीना तान|

गलियों में हैं घूमते,वो बन कर सलमान||


अपने कक्षा चार में,छोटा पहुँचा सात|

घर में होती बाप से,डेली जूता लात||


घर-बाहर दोनो जगह,हैं भीषण बदनाम|

बड़े आदमी की तरह,फिर भी इनके काम|


महँगी मोबाइल रखें,बाइक रखें बजाज|

घर का मालिक राम जी,इन्हे नही कुछ लाज||


अपनी खुद चिंता नहीं,हैं ये ऐसे वीर|

कैसे इनको हम कहें,भारत की तस्वीर||




22 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत सटीक!

honesty project democracy said...

गाँव-मोहल्ला तंग है,ऐसे सुंदर काम|

गाली,मार-पिटाई में,फेमस इनका नाम||

बहुत खूब ,उम्दा प्रस्तुती | यही तो दुर्भाग्य है--अच्छों को सम्मान नहीं

बुरे का हर जगह मान और सम्मान

Unknown said...

मज़ेदार भी
अर्थपूर्ण भी
बधाई !

Smart Indian said...

बहुत सही! :)

Ashutosh Kumar Mishra said...

majedaar and sateek..

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बेहतरीन दोहे

आभार

kshama said...

Haan..har galee,har mohalle me inke darshan hote rahte hain..

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

जीन्स छोड देह पर बाकी सब कुछ लूज
यथार्थ, बहुत खूब विनोद जी !

दिनेश शर्मा said...

अपनी खुद की....
वाह क्या लिखा है आपने।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

यह दो लाइना पोस्ट बहुत अच्छी लगीं.....

राज भाटिय़ा said...

आज के होन हारो की सच्चाई, बहुत सुंदर. धन्यवाद

दिगम्बर नासवा said...

अपनी खुद चिंता नहीं,हैं ये ऐसे वीर
कैसे इनको हम कहें,भारत की तस्वीर ...

सुंदर फुलझड़ियों छोड़ी हैं आपने ... सामयिक हैं सब .. आज के समाज का आईना ...

डॉ टी एस दराल said...

हा हा हा ! यंग जेनेरेशन पर तीखा प्रहार ।
दोहे अच्छे हैं लेकिन तकनिकी तौर पर अशुद्धता हैं ।

पंकज said...

नये प्रतीकों के साथ एक अच्छी रचना. नये प्रतीकों का प्रयोग कविता को सरल बना देता है.

Arvind Mishra said...

समकालीन बोध की जोरदार प्रस्तुति !

Urmi said...

रचना की हर एक पंक्तियाँ बहुत ही सुन्दर और मज़ेदार लगा! शानदार और उम्दा प्रस्तुती!

rashmi ravija said...

बहुत ही सुन्दर और सटीक दोहे...
आज के परिवेश पर सही कटाक्ष करते हुए

अनामिका की सदायें ...... said...

teekha kataksh.sudrad shabdawli.

Satish Saxena said...

क्या बात है ? कुछ नयी बात है इस रचना में विनोद भाई ! आप ठीक तो हैं :-)
इस जमाने में ऐसी रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें

Girish Kumar Billore said...

हा हा
पंडित जी इनके पास धेला नहीं और सलमान के पास संस्कार नहीं

Smart Indian said...

सही कहा है.
आपका काव्य निरखता जा रहा है.

स्वाति said...

बहुत सटीक प्रस्तुती है!