कहूँ बड़ों को क्यों भला,छोटे भी है तेज|
संस्कार से वो सभी,हैं करते परहेज||
बाबू माँ की बात का,तनिक नही सम्मान|
उल्टे कामों में सदा,रहता उनका ध्यान||
लाल कलर टी- शर्ट पर,काला-नीला शूज|
जींस छोड़ कर देह पर,बाकी सब कुछ लूज|
गाँव-मोहल्ला तंग है,ऐसे सुंदर काम|
गाली,मार-पिटाई में,फेमस इनका नाम||
पॉकेट में धेला नहीं,फिर भी सीना तान|
गलियों में हैं घूमते,वो बन कर सलमान||
अपने कक्षा चार में,छोटा पहुँचा सात|
घर में होती बाप से,डेली जूता लात||
घर-बाहर दोनो जगह,हैं भीषण बदनाम|
बड़े आदमी की तरह,फिर भी इनके काम|
महँगी मोबाइल रखें,बाइक रखें बजाज|
घर का मालिक राम जी,इन्हे नही कुछ लाज||
अपनी खुद चिंता नहीं,हैं ये ऐसे वीर|
कैसे इनको हम कहें,भारत की तस्वीर||
22 comments:
बहुत सटीक!
गाँव-मोहल्ला तंग है,ऐसे सुंदर काम|
गाली,मार-पिटाई में,फेमस इनका नाम||
बहुत खूब ,उम्दा प्रस्तुती | यही तो दुर्भाग्य है--अच्छों को सम्मान नहीं
बुरे का हर जगह मान और सम्मान
मज़ेदार भी
अर्थपूर्ण भी
बधाई !
बहुत सही! :)
majedaar and sateek..
बेहतरीन दोहे
आभार
Haan..har galee,har mohalle me inke darshan hote rahte hain..
जीन्स छोड देह पर बाकी सब कुछ लूज
यथार्थ, बहुत खूब विनोद जी !
अपनी खुद की....
वाह क्या लिखा है आपने।
यह दो लाइना पोस्ट बहुत अच्छी लगीं.....
आज के होन हारो की सच्चाई, बहुत सुंदर. धन्यवाद
अपनी खुद चिंता नहीं,हैं ये ऐसे वीर
कैसे इनको हम कहें,भारत की तस्वीर ...
सुंदर फुलझड़ियों छोड़ी हैं आपने ... सामयिक हैं सब .. आज के समाज का आईना ...
हा हा हा ! यंग जेनेरेशन पर तीखा प्रहार ।
दोहे अच्छे हैं लेकिन तकनिकी तौर पर अशुद्धता हैं ।
नये प्रतीकों के साथ एक अच्छी रचना. नये प्रतीकों का प्रयोग कविता को सरल बना देता है.
समकालीन बोध की जोरदार प्रस्तुति !
रचना की हर एक पंक्तियाँ बहुत ही सुन्दर और मज़ेदार लगा! शानदार और उम्दा प्रस्तुती!
बहुत ही सुन्दर और सटीक दोहे...
आज के परिवेश पर सही कटाक्ष करते हुए
teekha kataksh.sudrad shabdawli.
क्या बात है ? कुछ नयी बात है इस रचना में विनोद भाई ! आप ठीक तो हैं :-)
इस जमाने में ऐसी रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें
हा हा
पंडित जी इनके पास धेला नहीं और सलमान के पास संस्कार नहीं
सही कहा है.
आपका काव्य निरखता जा रहा है.
बहुत सटीक प्रस्तुती है!
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