अभी कुछ दिन पहले आज की ग़ज़ल पर एक संपन्न तरही मुशायरा में प्रस्तुत मेरी एक ग़ज़ल जिसमें मैं कुछ लाइन और जोड़ कर आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ..
बैठ मेरे तू पास रे जोगी,
बात कहूँ कुछ खास रे जोगी
गेरुआ कपड़ा,चंदन,टीका,
सब कुछ है,बकवास रे जोगी
तुझे पता है,सच्चाई कि,
हर दिल रब का वास रे जोगी
फिर क्यों ऐसा वेश बनाया,
किसकी तुम्हे तलाश रे जोगी
कौन सुनेगा तेरी टेरी,
सब हैं जिंदा लाश रे रोगी
रंग बदलते इंसानों का,
नही रहा विश्वास रे जोगी
अपनों ने ही गर्दन काटी,
देख ज़रा इतिहास रे जोगी
आज ग़रीबी के आगे तो,
मंद पड़े उल्लास रे जोगी
बाँटे दर्द दूसरों का यह,
कौन करें अभ्यास रे जोगी
देख तमाशा इस दुनिया का,
होना नही उदास रे जोगी
मरहम पास हमेशा रखो,
छोड़ो अब सन्यास रे जोगी
फेंको अपनी झोला-झंडी,
हो जाओ बिंदास रे जोगी.
15 comments:
रंग बदलते इंसानों का
नहीं रहा विश्वास रे जोगी
वह बहुत खूब ,लेकिन हम कुछ अर्ज करेंगे ...
आज इन्सान नहीं बदला रे जोगी
मजबूरी ने बदला,इंसानों का जमीर रे जोगी
मजबूरों की मदद करो तो पैदा होगा इन्सान रे जोगी ....
मुझे पसन्द आया आभार
फ़ेंको अपना झोला झंडी
हो जाओ बिंदास रे जोगी
बहुत बढिया पसंद आया
आभार
फ़ेंको अपना झोला झंडी
हो जाओ बिंदास रे जोगी
है राम यह मेनका हर युग मै क्यो आती है... बेचारा भोगी... अरे नही.... बेचारा जोगी
बहुत अच्छी ग़ज़ल!
फेंको अपनी झोला-झंडी,
हो जाओ बिंदास रे जोगी.
बिन्दासपने के बिना अब काम भी नहीं चलने वाला है
बहुत सुन्दर
आज कौन है जोगी? मन को ही जोगी बनाना पडेगा।
ras aayi jogi ki kavita
bahut achha laga pad kar bahut khub
http://kavyawani.blogspot.com/
बहुत ज्यादा पसन्द आयी आपकी आज की यह पोस्ट
इस उत्कृष्ट रचना के लिये शुक्रिया जी
हरेक पंक्ति बहुत अच्छी लगी
प्रणाम स्वीकार करें
बहुत खूब..........
बढ़िया शे'र !
वाह क्या बात है! बहुत ही सुन्दर और शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने! बधाई!
bahut badhiya ji!
Kya kamal ka fan hasil hai aapko!
Are banarasi babau, aap to kabir jaise hi kau rahe hain. bahut achchha.aap ke liye ek aur jodata hun------
kahsi men ab kya rakha hai
kar tu maghar vas re jogi.
mera blog kabira bole
rakh tu apne pas re jogi
wahwa Bhatije...wah
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