मीडिया भी क्या मस्त चीज़ है,जिसे चाहे आसमान पर पहुँचा दे और जिसे चाहे उठा कर ज़मीन पर ऐसा पटके की बेचारा हड्डियाँ बटोरता फिरे, अभी आई. पी. एल. के मामले में खूब हल्ला मचा कर कई नामचीन हस्तियों को दे मारा,उसमें कुछ तो बेचारे चुपचाप माहौल समझ कर निकल लिए और कुछ अभी तक टाँग अड़ाये खड़े है..कहीं से सहारा मिलता रहे तो ठीक-ठाक वर्ना भगवान ही खैर करें. क्योंकि आज नही तो कल मीडिया का कैमरा घूमेगा ज़रूर और जब घूमेगा तो कुछ ना कुछ कहर ढाएगा, जहाँ भी उसके कोई ब्रेकिंग न्यूज में ब्रेक हुआ कि पहले से ब्रेक न्यूज़ पर फिर से रोशनी डालना शुरू कर देंगे और फिर से उस बेचारे पर शनि ग्रह का ख़तरा मंडराने लगेगा..
आप को शायद यह जानकर आश्चर्य हो पर सच्चाई यही हैं कि आज के टाइम में तो भगवान शनि भी उन्ही महाशय पर वक्री होते है,जिसे दबोचने के लिए मीडिया नामक जीव की अपनी आँखे गड़ाए रहता है..
ललित मोदी और आई. पी. एल. के बाद उठी मीडिया चर्चा ने शशि थरूर के गुरूर को ख़त्म कर दिया पर पवार के पावर के आगे थोड़ी लाचार पड़ गई पर यह मीडिया की चुप्पी नही है बस वो पवार जी की कुछ कमजोर कड़ी की तलाश में है और जैसे ही वो मिला नही कि फिर से आई. पी. एल. का जिन्न बोतल से बाहर आ जाएगा..
एक जमाना था कि युवराज सिंह को आई. पी. एल. का हीरो बना दिया था इस बार उनकी खराब परफारमेंस को लेकर पीछे पड़ गई, अब जब तक युवराज सिंह कुछ अच्छा नही करते हर रोज कुछ ना कुछ आर्टिकल आते रहेंगे, अपने युवा तेज गेंदबाज़ श्रीसंत की हाइक भी मीडिया की देन है,
ये तो रही राजनीति और क्रिकेट की बातें पर बॉलीवुड भी प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए मसाले दार न्यूज़ का बढ़िया श्रोत है.
एक खास बात बताना चाहूँगा कि अच्छा आज कल तो कुछ लोगों को ये पता भी रहता कि कैसे सुर्ख़ियों में आया जाता है मतलब बिना बुलाए मीडिया घर तक चली आए और फटाफट राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समाचार बना कर पेश कर दे इसका सीधा उदाहरण आप को देखने को मिलेगा जब प्रोड्यूसर किसी मूवी को रिलीज़ से पहले किसी छोटे मोटे विवाद में डाल दे डाइरेक्टर का हेरोइन से झगड़ा हो जाए या कॉपीराइट को लेकर किसी तीसरे बंदे से विवाद, इतना होना मतलब देश का हर नागरिक जान जाएगा फलाँ मूवी में कुछ खास ज़रूर है..और यकी मानिए ज़्यादातर मामलों में ऐसी चर्चा फिल्म प्रोड्यूसर के पक्ष में ही रहती है.
फिल्मी दुनिया हो,क्रिकेट का मैदान हो या राजनीति हर जगह मीडिया हमेशा घुसी पड़ी रहती है और जहाँ भी कही मसाले की संभावना देखी नही की बाज़ी मार ली अब बेचारे जो कल हीरो थे आज कैमरे से मुँह छिपाते फिरते रहते है.
मैं मीडिया नामक शक्ति को सलाम करता हूँ कि इनके वजह से आज बहुत कुछ बदलने लगा है कुछ नही तो कम से कम इतना तो है ही सबके अंदर डर बना रहता है जिस कारण एक सरकारी अफ़सर अब डाइरेक्ट घुस लेने से कतराता है,ट्रैफिक का नियम तोड़ने वाले बंदे से पुलिस वाले सारे समझौते किसी खंभे या पेड़ की आड़ में करते है ताकि कोई तीसरी आँख ना धर दबोचे.
तो है ना कमाल की हमारी मीडिया.... चलिए जय बोलिए मीडिया की.....जय हो मीडिया.
17 comments:
खेल हो राजनीति हो या फिल्म सबी जगह मीडिया का हौवा है ये तो दुधारी तलवार है ।
मीडिया तो है ही कमाल की चीज।
सहमत हूँ इस लेख से , वाकई जनमत को जागरूक करने में इसकी भूमिका गज़ब की है
पांडे जी बहुत ही अच्छा विषय चुना है आपने प्रस्तुती भी लाजवाब है ,दरअसल ये मिडिया अब मिडिया नहीं बल्कि मिडिया (सत्ता और भ्रष्टाचारियों की दलाल ) हो गयी है | इसलिए इसको मिडिया कहना ही मिडिया शब्द का अपमान होगा | अब तो ऐसे मिडिया का खाल हमसब को मिलकर ही उतारना होगा क्योकि इस मिडिया ने समाज में इंसानों के बिच भय व असुरक्षा का भी वातावरण बनाने का काम किया है |
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
बहुत अच्छा लगा धन्यवाद
Medea na hua hua khuda ho gaya hai!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
मीडिया का मयार अपना है, हमारा क्या है.
tusi chha gaye ji
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चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
The Vinay Prajapati
मिडिया का रोल बड़ा सशक्त है । लेकिन मिडिया अपनी जिम्मेदारी समझे तो ।
मिडिया का रोल बड़ा सशक्त है । लेकिन मिडिया अपनी जिम्मेदारी समझे तो .......
विनोद का एक सार्थक व्यंग्य, हकीकत से रूबरू कराता हुआ।
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं!
सच है ... मीडीया की जे हो .... और मीडीया से जुड़े पत्रकारों की भी जे हो ....
मीडिया भी उतना ही भ्रष्ट है जितना इस लोकतंत्र के अन्य स्तम्भ |
मीडिया पर अच्छा व्यंग है.....सच को बड़ी सफाई से पेश किया है आपने !
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