काँटों पे हमें चलने की,आदत सी हो गई
अब आग में भी जलने की,आदत सी हो गई
उँचाइयों से डर मुझे, बिल्कुल नही लगता
गिर कर के संभलने की,तो आदत सी हो गई
कैसी विडंबना है,गाँधी के देश में
डाकू टहल रहें हैं,साधु के वेश में
जनता के सच्चे सेवक,जनता को लूटकर
रखते है माल अपना,जाकर विदेश में
घोटाले,बेईमानी,भ्रष्टाचार देखिए
सिद्वांतवादिता यहाँ बीमार देखिए
चोरों की ठाठ-बाट है,मँहगाई ज़ोर पर
लाचार,मौन देश की सरकार देखिए
बाँटोगे अगर प्यार, तो फिर प्यार मिलेगा
व्यवहार के अनुसार ही, व्यवहार मिलेगा
हँस कर मिलोगे तुम तो,हँस कर मिलेंगें सब
बाजार बनोगे तो बाजार मिलेगा
7 comments:
उँचाइयों से डर मुझे, बिल्कुल नही लगता
गिर कर के संभलने की,तो आदत सी हो गई
यह सब होंसले वालों का काम है ..वर्ना मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं ...सभी बहुत सुंदर और अर्थपूर्ण हैं ..आपका आभार
वाह भई विनोद जी अच्छा लिखा है आपने
चारों बढ़िया हैं ।
बाँटोगे अगर प्यार, तो फिर प्यार मिलेगा व्यवहार के अनुसार ही, व्यवहार मिलेगा हँस कर मिलोगे तुम तो,हँस कर मिलेंगें सब बाजार बनोगे तो बाजार मिलेगा....
बेहतरीन पंक्तियाँ हैं...सभी मुक्तक अर्थपूर्ण
एकदम से सच्चाई बयान कर दी!
बाँटोगे अगर प्यार, तो फिर प्यार मिलेगा
व्यवहार के अनुसार ही, व्यवहार मिलेगा...
सही कहा...
सभी मुक्तक बहुत सुन्दर ....
sahi kaha hai...bahut badhiya....
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