ब्लॉगर्स सम्मेलन और परिकल्पना उत्सव की सफलता के लिए सभी ब्लॉगर्स मित्रों को फिर से हार्दिक बधाई देना चाहता हूँ|हिन्दी साहित्य निकेतन और परिकल्पना उत्सव के समारोह के दौरान कई नये-पुराने मित्र मिलें जिनसे मिलकर बहुत खुशी हुई|साथ ही साथ ये भी पता चला की कुछ लोग हमसे नाराज़ बैठे है कि आजकल ब्लॉग लेखन में मेरी सक्रियता कुछ कम हो गई है|मित्रों,इस बात के लिए माफी चाहता हूँ,दरअसल आजकल व्यस्तता कुछ ज़्यादा ही बढ़ गई है|उम्मीद है आप लोग मुझे माफ़ करेंगे और इस वादे के साथ की अब आगे ऐसा नही होगा एक छोटी बहर की ग़ज़ल प्रस्तुत कर रहा हूँ|धन्यवाद|
दिल की बात बताती आँखें
आँखों को समझाती आँखें
नफ़रत,प्रीत व दर्द खुशी सब
बिन बोले कह जाती आँखें
अंधेरो से घिरे भवन में
जैसे दीया-बाती आँखें
छोटी जलपरियों के जैसे
इधर उधर मंडराती आँखें
है नन्ही सी लेकिन सारे
जग की सैर कराती आँखें
प्यार लुटाती है अपनों पर
बदले आँसू पाती आँखें
ऐसा दौर चला है जिसमें
पल-पल धोखा खाती आँखें
बूढ़े बाबा हँस कर बोले,
शाम ढली,ढल जाती आँखें
20 comments:
@बूढ़े बाबा हँस कर बोले,
शाम ढली,ढल जाती आँखें
क्या खूब बात कही बूढे बाब ने, बधाई!
ऐसा दौर चला है जिसमें
पल-पल धोखा खाती आँखें
बूढ़े बाबा हँस कर बोले,
शाम ढली,ढल जाती आँखें
-गज़ब विनोद...बहुत समय बाद आये मगर क्या खूब आये. वाह!!
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ऐसा दौर चला है जिसमें
पल-पल धोखा खाती आँखें..
Vinod ji , This is the irony ! ..At times some beautiful words said and the feeling expressed is misconstrued and the eyes get tears in return.
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शानदार । कुछ देर बाद आए लेकिन दुरुस्त ग़ज़ल लकर आए । बधाई ।
बूढ़े बाबा हँस कर बोले,
शाम ढली,ढल जाती आँखें
बहुत खूब।
बहुत सुंदर गजल
प्यार लुटाती है अपनों पर
बदले आँसू पाती आँखें
...बहुत सुन्दर गज़ल..संवेदनशील अहसास
सच कहा आंखें बड़ी कीमती हैं ......आभार !
bahut achchha likha hai...achchhi lagi
ऐसा दौर चला है जिसमें
पल-पल धोखा खाती आँखें
बूढ़े बाबा हँस कर बोले,
शाम ढली,ढल जाती आँखें
Bahut dinon baad sahee lekin likha hai bahut khoob!
नफ़रत,प्रीत व दर्द खुशी सब
बिन बोले कह जाती आँखें ...
सच है विनोद जी आज कल आपकी सक्रियता कम हो गई है ... पर पहले काम ज़्यादा ज़रूरी है ....
आज कुछ अलग हट कर लिखी है ये ग़ज़ल ... आपका व्यंगात्मक अंदाज़त्ो क़ाबिले तारीफ़ है पर ये भी कम नही ...
vinod ji
itni sundar gazal ke liye hardik badhai sweekaren.
sach much aankho ke saare raj aapne khol diye hain par insaan ki aankhe abhi bhi nahi khul rahi .
bahut hi anupam tareeke se aankhon ka vishhleshhan kiya hai aapne
punah badhai vdhanyvaad
poonam
'प्यार LUTAATI हैं अपनों पर
बदले आँसू पाती आँखें '
............................खूबसूरत रचना
है नन्ही सी लेकिन सारे
जग की सैर कराती आँखें
सम्मोहित करती पंक्तियाँ.....
बहुत अच्छी गज़ल लिखी है भाई। इतनी अच्छी लिखना है तो और देर से लिखो ।
..बहुत बधाई।
आंखें और कुछ नहीं मन का दर्पण हैं
मन सुंदर तो जग सुंदर है
हमको यह बतलाती आंखें
विनोद बेटे, कामयाबी तुम्हारा इंतजार कर रही है, दूर नहीं है। आशीर्वाद।
विनोद जी, वास्तव में आपको बहुत दिनों बाद देखा है। वैसे भी एग्रीगेटर ना होने से बहुत सारे लोग छूटे जा रहे हैं। नया तो कुछ पढने को मिलता ही नहीं है। आज आपकी गजल पढी वाकयी में बहुत अच्छी लगी।
sach kaha aapne aakho se feeling ka pata chal jata hai. mujhe bahut pasand laga aapka gazal.
सारे रिश्ते-नाते देखे,
तुझ जैसी ना कहीं दिखे,
तेरी ममता सब पर भारी,
जिधर देखता वहीं दिखे,...
You made me emotional by this lovely creation .
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aap bahot hi sundar likhte ho...
bilkul stress burst ho jata hai padh ke ... Keep it up!
God bless,
~Varada
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