आप सभी को दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ..प्रस्तुत है एक हल्की फुल्की रचना और आप सब के आशीर्वाद का आपेक्षी हूँ.
वो भी एक दीवाली थी,ये भी एक दीवाली है.
हर्षित मन था, हृदय प्रफुल्लित,
भर उमंग से यह तन संचित,छत,आँगन व घर के द्वारे,
उछल,कूद करते थे प्यारे,
धर कर हाथों में ज्वाला,उछल,कूद करते थे प्यारे,
हमने बचपन खूब गुज़ारा,
रंग दीवाली जब चढ़ता था,
बचपन चंचलता गढ़ता था,
अद्भुत लगता था, संसार,
आज वही मध्यम त्योहार,
लालच,स्वार्थ भुला कर सब,
निच्छल प्रेम घुला कर तब,रंग दीवाली जब चढ़ता था,
बचपन चंचलता गढ़ता था,
अद्भुत लगता था, संसार,
आज वही मध्यम त्योहार,
लालच,स्वार्थ भुला कर सब,
जो पैमाना छलकाते थे,अब वो पैमाना खाली है.
सुबह-शाम उल्लास भरा,
हर चेहरा निखरा-निखरा,
लिए पटाखे फुलझड़ियाँ,
सजाते थे, दीपक की लड़ियाँ,
हर चेहरा निखरा-निखरा,
लिए पटाखे फुलझड़ियाँ,
सजाते थे, दीपक की लड़ियाँ,
हर पंक्ति जगमगा रही थी,
एक शरारत जगा रही थी,
गगन में फुलझड़ियाँ लहराते,
हाथ में लेकर बम बजाते,
खूब पटाखे तब छोड़े थे,
नये नये बंधन जोड़े थे,
बचपन-बचपन मिल उठता था,
पुष्प प्रेम का, खिल उठता था,
एक शरारत जगा रही थी,
गगन में फुलझड़ियाँ लहराते,
हाथ में लेकर बम बजाते,
खूब पटाखे तब छोड़े थे,
नये नये बंधन जोड़े थे,
बचपन-बचपन मिल उठता था,
पुष्प प्रेम का, खिल उठता था,
जो बगिया गुलजार कभी थी, आज वहीं सूखी डाली है.
धीरे धीरे उम्र बढ़ी,
भौतिक सुख की लगी हथकड़ी,धीरे धीरे उम्र बढ़ी,
पेट की ज़िम्मेदारी आई,
उपर से छाई मँहगाई.
साथ साथ कलयुग की माया,
स्वार्थ ने सबको यूँ भरमाया,
निज विकास का जादू डोला,
एकाकीपन चढ़ कर बोला,
भूल गये बचपन की मस्ती,
बुला रही अब भी जो बस्ती,
बदल गये सारे वो पलछिन,
हुई दीवाली भी बस एक दिन,उपर से छाई मँहगाई.
साथ साथ कलयुग की माया,
स्वार्थ ने सबको यूँ भरमाया,
निज विकास का जादू डोला,
एकाकीपन चढ़ कर बोला,
भूल गये बचपन की मस्ती,
बुला रही अब भी जो बस्ती,
बदल गये सारे वो पलछिन,
याद है क्यों बस अपना घर,
वो उल्लास गये हैं क्यों मर,बार बार यह प्रश्न उठे, और मन मेरा सवाली है.
वो भी एक दीवाली थी,ये भी एक दीवाली है.
20 comments:
सुबह-शाम उल्लास भरा,
हर चेहरा निखरा-निखरा,
लिए पटाखे फुलझड़ियाँ,
सजाते थे, दीपक की लड़ियाँ,हर पंक्ति जगमगा रही थी,
एक शरारत जगा रही थी,
गगन में फुलझड़ियाँ लहराते,
हाथ में लेकर बम बजाते,
खूब पटाखे तब छोड़े थे,
नये नये बंधन जोड़े थे,
बचपन-बचपन मिल उठता था,
पुष्प प्रेम का, खिल उठता था,
bachpan ki yaad aa gayi....
दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ..
गीत बहुत बढ़िया लगा..
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल ’समीर’
ज़िन्दगी इसी परिवर्तन का तो नाम है । यह दीवाली आती ही इसलिये है कि हम अपने अतीत को याद करे और उससे सबक लें । शुभकामनायें ।
अच्छी रचना
दीपावली की शुभकामनाएँ
Wah....
दीवाली हर रोज हो तभी मनेगी मौज
पर कैसे हर रोज हो इसका उद्गम खोज
आज का प्रश्न यही है
बही कह रही सही है
पर इस सबके बावजूद
थोड़े दीये और मिठाई सबकी हो
चाहे थोड़े मिलें पटाखे सबके हों
गलबहियों के साथ मिलें दिल भी प्यारे
अपने-अपने खील-बताशे सबके हों
---------शुभकामनाऒं सहित
---------मौदगिल परिवार
दीवाली का रंग चढ़ता था,
बचपन चंचलता गढ़ता था,
अद्भुत लगता था, संसार,
आज वही मद्धिम त्योहार,
लालच,स्वार्थ भुला कर सब,
निच्छल प्रेम घुला कर तब,
जो पैमाना छलकाते थे,
अब वो पैमाना खाली है.
बढ़िया लिखा है।
एक-आधा शब्द खटक रहा था,
अब ठीक है ना।
दीपावली, गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
सुंदर भाव है
। दिवाली की चाह लिए, खड़े हैं सब अब एक नई राह लिए। जिएं तो सदा दूसरों के लिए। अपने लिए जिए तो क्या जिए ?
है वक्त की कोई शरारत या गई फ़िर उम्र ढ़ल
आते नहीं पहले सरीखे अब मजे त्यौहार के
अच्छी रचना पर बधाई व
दीप सी जगमगाती जिन्दगी ्रहे
सुख-सरिता घर-मन्दिर में बहे
श्याम सखा श्याम
बहुत ही सुंदर रचना लिखा है आपने!दीपावली की शुभकामनायें आपको एवं आपके परिवार को!
बढ़ा दो अपनी लौ
कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,
इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ
ओम आर्य
सुंदर व्यंजनाएं।
दीपपर्व की अशेष शुभकामनाएँ।
आप ब्लॉग जगत में निराला सा यश पाएं।
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आइए हम पर्यावरण और ब्लॉगिंग को भी सुरक्षित बनाएं।
बहुत ही सुंदर रचना लिखा है आपने!दीपावली की शुभकामनायें आपको एवं आपके परिवार को
दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ...जो भी हो जैसी भी हो आपकी रचना अच्छी लगती है..बधाई!!!
बचपन-बचपन मिल उठता था,
पुष्प प्रेम का, खिल उठता था ।
बहुत ही सुन्दर शब्दों से संजोया है आपने हर पंक्ति को बेहतरीन प्रस्तुति, ।। दीपावली की शुभकामनायें ।।
जो पैमाना छलकाते थे,
अब वो पैमाना खाली है.
गहन भाव !
आपको भी दीपावली की ढेरो शुभकामनाये !
सही कहा आपने सब कुछ ही बदल गया है अब त्यौहार बस प्रतीक बन कर रह गये हैं न वोमस्ती है न समय है न ही वो प्रेमभाव है सुन्दर रवना आपको व परिवार को दीपावली की शुभकामनायें
bahut hi sundar rachna....
deewali ki hardik shubhkamnayen
कोशिश तो यही होती है कि वो जो दिवाली थी ..कम से कम अपने बच्चों को भी मनवाई जाये...मगर कहां सफ़ल हो पाती है..आपको दीपावली की शुभकामनायें
जब जीवन में कुछ नहीं था, तब त्योहार थे, उनका इंतजार था। उनके बहाने ही खुशियां आ जाती थी। लेकिन अब सब कुछ है तो खालीपन सा लगने लगा है। सचमुच अच्छी कविता है। बधाई।
वो वाली दीवाली तो अब नही आ सकती पर ये भी बुरी नही ।
मन में खुशी हो तो हर दिन दीवाली है ।
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